धरोहर : जालिम सेन को राजपाठ, विजय सेन का टूटा घमंड

धरोहर : जालिम सेन को राजपाठ, विजय सेन का टूटा घमंड

विनोद भावुक/ मंडी

मंडी जिला के द्रंग के नगरोटा गांव  के शिव और लक्ष्मी नारायण मंदिर आपने आप में एक लम्बे इतिहास को संजोये हुए है। इन धरोहर मंदिरों के ऐतिहासिक पक्ष का वर्णन विनोद हिमाचली द्वारा लिखित ‘मंडी राज्य की कहानी’ और रूप शर्मा द्वारा लिखित ‘अंधकार से प्रकाश की ओर’ पुस्तकों में मिलता है।

बताया जाता है कि नगरोटा गांव में स्थित इस धरोहर का निर्माण द्रंग के राणा ने करवाया था। इन मंदिरों का उल्लेख राजा साहिब सेन (1534 – 1554 ई०) के शासनकाल में भी मिलता है। इन मंदिरों की पुनः प्रतिष्ठा राजा जालिम सेन (1826 -1839 ई०) ने करवाई थी।

द्रंग के राणा के बनवाए मंदिर

नगरोटा गांव के बीचोंबीच अति प्राचीन शैली के ये धरोहर मंदिर श्रद्धालुओं को आज भी आमंत्रित करते हैं। इन मंदिरों का निर्माण यहां के राणा ने करवाया था। जालिम सेन प्राय नगरोटा आकर इन धरोहर मंदिरों में आराधना करता रहता था।

मंडी नगर से 18 किलोमीटर दूर जोगिंद्रनगर की ओर द्रंग नामक स्थान है। द्रंग से आईआईटी कमांद की तरफ जाने वाली संपर्क सड़क पर दो किलोमीटर दूर नगरोटा गांव के बीचोंबीच अति प्राचीन शैली के ये धरोहर मंदिर श्रद्धालुओं को आज भी आमंत्रित करते हैं। इन मंदिरों का निर्माण यहां के राणा ने करवाया था।

बताया जाता है कि कभी मंडी राज्य के समीप का गांव नगरोटा बड़ा ही समृद्ध होता था। इसकी गलियों और सड़कों के नाम भी वही थे जो आज मंडी नगर के हैं।

निसंतान मरा ईश्वरी सेन, एक्टिव हुआ जालिम सेन

राजा जालिम सेन के भाई राजा ईश्वरी सेन निसंतान ही स्वर्ग सिधार जाने से मंडी राज्य की राजगद्दी रिक्त हो गई। अपने जीवनकाल में जालिम सेन अपने भाई के विरुद्ध रहा था।

भाई के मरने के उपरांत सकीय हुए जालिम सेन ने गद्दी खातिर मंडी की प्रजा को जताने के लिए कि वह अपने भाई का बड़ा ही आज्ञाकारी था, सारे मृति संस्कार कार्य संपन्न करवाए। इधर, ईश्वरी सेन के वंशज भी मंडी राज्य की गद्दी प्राप्त करने के लिए काफी दौड़-धूप कर रहे थे।

राजगद्दी के लिए अराधना

जालिम सेन मंडी से अपने गांव हुलु लौट आया जो कि नगरोटा के समीप ही था। जालिम सेन प्राय नगरोटा आकर इन धरोहर मंदिरों में आराधना करता रहता था।

एक दिन जालिम सेन ने लक्ष्मी नारायण जी के मंदिर में आकर अपनी आराधना के उपरांत कहा, ’हे भगवान मेरी पुकार भी सुनो।’ उसने भगवान शिव से भी प्रार्थना की कि अगर वह मंडी का राजा बन गया तो इन धरोहर मंदिरों की पुनः प्रतिष्ठा करेगा।

हाथी पर सवार हो पहुंचा राजा

जालिम सेन अमूल्य भेटों के साथ पंजाब के महाराजा महाराणा रणजीत सिंह के पास पहुंचा। रणजीत सिंह ने जालिम सेन से कहा कि जिस दिन वह मंडी रियासत के तीन लाख शाही खजाने में जमा करवाएगा, उसी दिन मंडी की राजगद्दी उसकी होगी। जालिम सेन ने ये पूरा कर दिखाया और मंडी का राजा नियुक्त हो गया।

राजगद्दी संभालने के बाद खुश होकर राजा जालिम सेन हाथी पर सवार होकर नगरोटा गांव में पहुंचा तथा यहां पूजा- अर्चना कर मंदिरों को पुनः प्रतिष्ठित किया।

मंदिरों में टूटा विजय सेन का घमंड

इन धरोहर मंदिरों के संदर्भ में बताया जाता है कि एक समय मंडी के राजा विजय सेन (1851 – 1902 ) का अभिमान भी नगरोटा आकर टूटा था। पूजा अर्चना करने के बाद जब पुजारी ने राजा को सुफल के रूप में पुष्प दिये तो राजा ने कहा कि मुझे ठाकुर के हाथों सुफल लेना है।

राजा ने मूर्ति के आगे हाथ कर दिए। मूर्ति के गले में पड़ी पुष्प माला में से एक पुष्प राजा के हाथ में आ गिरा। उसी रोज से जन साधारण में लक्ष्मी नारायण के प्रति आस्था और विश्वास और भी गहरा हो गया।

कश्मीर घाटी से बुलाये गए पंडित

कभी इस गांव के ब्राह्मण राजा के राज पुरोहित हुआ करते थे। बताया जाता है कि इन धरोहर मंदिरों में पूजा- अर्चना के लिए पंडित कश्मीर घाटी से विशेष तौर से बुलाये गए थे।

होली के अवसर पर लक्ष्मी नारायण को सुखपाल पर बैठा कर मसेरन गांव में स्थित महामाई चामुंडा के दरबार में ले जाया जाता था। वहां वे महामाई चामुंडा के साथ होली खेलते थे।

बद्रीनाथ मंदिर जैसी मूर्तियां

कहा जाता है कि इन धरोहर मंदिरों की मूर्तियां बद्रीनाथ की मूर्तियों से मेल खाती हैं। नगरोटा स्थित शिव मंदिर को लेकर गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि यह मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर से भी पुरातन है। वर्तमान में मंदिर में पूजा- अर्चना और रखरखाव पुजारी स्वर्गीय पदमगर्भ के पौत्र और मंदिर कमेटी के सदस्य करते हैं।

धरोहर मंदिरों का संरक्षण

इन मंदिरों को उनके मूल स्वरूप में संरक्षित करने के लिए हिमाचल प्रदेश के भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग ने श्री लक्ष्मी नारायण शिव मंदिर कमेटी को नौ लाख की राशि उपलब्ध करवाई है।

इन मंदिरों के संरक्षण का कार्य भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग के सेवानिवृत मुख्य अभियंता सी एल कश्यप और वास्तुकार हरिंद्र उपाध्याय के निर्देशन में हो रहा है। इन ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण से प्रदेश की देव संस्कृति का भी संरक्षण हो रहा है।

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