प्रेम की प्रतिमा : आंख नम कर देती है ‘मेम की कब्र’

प्रेम की प्रतिमा : आंख नम कर देती है ‘मेम की कब्र’

विनोद भावुक/ सोलन 

यह सच्ची कहानी उस प्रेम की प्रतिमा की है, जिसे लोग ‘मेम की कब्र’ के नाम से जानते हैं। सफ़ेद संगमरमर से बनी लाजवाब प्रेम की प्रतिमा को देखकर हर किसी का दिल पसीज जाता है और आंखें नम हो जाती हैं। इस प्रेम की प्रतिमा में मां-बच्चे का प्रेम तथा फरिश्ते का आशीर्वाद झलकता है।

सोलन के डगशाई में ब्रिटिश मां-बच्चे को इस स्मारक में आराम करते एक सदी गुजर चुकी है, लेकिन प्रेम की प्रतिमा की कशिश आज भी बरकरार है। जीवन, मृत्यु से परे प्रेम रूह का रिश्ता है। दैहिक जीवन के न रहने के बाद भी प्रेम की महक मौजूद रहती है। पहाड़ पर अमर प्रेम की यह ऐसी कहानी हैं, जिनमें प्रेमी के बिछुड़ने पर प्रेम की तपिश कम नहीं हुई, बल्कि यह एहसास और गहरा होता गया।

सोलन के डगशाई में ब्रिटिश मां-बच्चे को इस स्मारक में आराम करते एक सदी गुजर चुकी है, लेकिन प्रेम की प्रतिमा की कशिश आज भी बरकरार है। जीवन, मृत्यु से परे प्रेम रूह का रिश्ता है। दैहिक जीवन के न रहने के बाद भी प्रेम की महक मौजूद रहती है। पहाड़ पर अमर प्रेम की यह ऐसी कहानी हैं, जिनमें प्रेमी के बिछुड़ने पर प्रेम की तपिश कम नहीं हुई, बल्कि यह एहसास और गहरा होता गया।

अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ब्रिटिश छावनी डगशाई में कार्यरत रहे ब्रिटिश दंपति डॉक्टर मेजर जॉर्ज ऑस्वाल्ट वाटसन व उनकी नर्सिंग ऑफिसर पत्नी मैरी रीबैका के ऐसे ही अमर प्रेम और करुणा की कहानी की गवाही देती प्रेम की प्रतिमा डगशाई में ‘मेम की कब्र’ के रूप में मौजूद है।

पत्नी की मौत से बदला मेजर का जीवन

इस वियोग में डॉक्टर मेजर जॉर्ज ऑस्वाल्ट वाटसन का जीवन बदल गया। उन्होंने अपनी पत्नी तथा अजन्मे बच्चे के प्रति प्रेम, करूणा तथा मनोभाव के लिए कब्र पर संगमरमर की प्रेम की प्रतिमा बनाने का संकल्प लिया। इसके लिए ब्रिटेन से संगमरमर मंगवाया गया।

ब्रिटिश हुकूमत के दौरान देश की सबसे पुरानी ब्रिटिश छावनी डगशाई में यह ब्रिटिश दंपति मजे से जीवन यापन कर रहा था। मेजर वाटसन की पत्नी गर्भवती थी और मेजर को ड्यूटी पर इंग्लैंड जाना पड़ा।

मेजर के लौट कर आने पर गर्भवती पत्नी की मृत्यु हो गई। पत्नी और अजन्मे बच्चे को 10 दिसंबर,1909 को डगशाई के कब्रिस्तान में दफनाया गया।

इस वियोग में डॉक्टर मेजर जॉर्ज ऑस्वाल्ट वाटसन का जीवन बदल गया। उन्होंने अपनी पत्नी तथा अजन्मे बच्चे के प्रति प्रेम, करूणा तथा मनोभाव के लिए कब्र पर संगमरमर की प्रेम की प्रतिमा बनाने का संकल्प लिया। इसके लिए ब्रिटेन से संगमरमर मंगवाया गया।

प्रेम की प्रतिमा का रोज स्नान

उन्हें भी पत्नी के समीप ही डगशाई कब्रिस्तान में दफनाया गया। वर्ष 1947 तक तो इस प्रेम की प्रतिमा ‘मेम की कब्र’ की रखवाली होती रही, लेकिंग अंग्रेजों के जाने के उपरांत प्रेम की प्रतिमा की अनदेखी होती गई।

स्थानीय बुजुर्गों को अभी भी याद है कि ब्रिटिशकाल में इस प्रतिमा को रोज नहलाया जाता था। कब्र पर मां-बच्चे की लेटी प्रतिमा तथा उन्हें आशीर्वाद देती परी की प्रेम की प्रतिमा देखकर हर किसी का दिल पसीज जाता था।

उस वक्‍त भारतीयों के यहां जाने पर पूर्ण पाबंदी थी। भारतीय इस प्रेम की प्रतिमा वाली कब्र को ‘मेम की कब्र’ के नाम से जानते थे।

ब्रिटेन नहीं लौटे मेजर, पत्नी के साथ दफन

रॉयल आर्मी मेडिकल कॉप एसोसिएशन से मेजर वाटसन वर्ष 1936 में सेवानिवृत्त हुए। वे लौटकर अपने वतन नहीं गए और अंबाला में अपने रिश्तेदारों के साथ रहने लगे। वर्ष 1937 में वे भी स्वर्ग सिधार गए।

उन्हें भी पत्नी के समीप ही डगशाई कब्रिस्तान में दफनाया गया। वर्ष 1947 तक तो इस प्रेम की प्रतिमा ‘मेम की कब्र’ की रखवाली होती रही, लेकिंग अंग्रेजों के जाने के उपरांत प्रेम की प्रतिमा की अनदेखी होती गई।

औलाद के मोह में प्रतिमा को नुक्सान

कहा जाता है कि उक्त अंग्रेज दम्पति को स्थानीय पीर बाबा ने एक ताजीब दिया, जिससे वाटसन की पत्नी गर्भवती हुई थी। लोगों में भ्रांति फैली कि कि उक्त कब्र के संगमरमर के टुकड़े को ताजीब में डाला जाये या खाया जाए तो महिला गर्भवती हो जाती है। इस अंधविश्वास के प्रेम की इस प्रतिमा को बदसूरत बना दिया।

किसी ने फरिश्ते के पंख तोड़ दिए तो किसी ने प्रेम की प्रतिमा की मूर्तियों के चेहरे को तोड़ दिया। रखवाली न हो पाने के कारण मौसम की मार तथा लोगों की बेरुखी ने इस स्मारक को बदसूरत कर दिया। कब्रिस्तान के रखवाले स्थानीय चर्च के नुमाइंदे भी इसे बचाने के लिए कुछ न कर सके।

प्रेम की प्रतिमा के संरक्षण की पहल

स्वर्गवासी मां-बच्चे तथा पिता की आत्माओं को सुकून मिल सके, इसके लिए स्थानीय निवासी आनंद सेठी तथा उनकी धर्मपत्नी ने इस प्रेम की प्रतिमा के जीर्णोद्धार का फैसला लिया।

इंग्लैंड में मेजर वॉटसन के परिवार जनों के साथ संपर्क साधने का प्रयास किया गया। जिस रॉयल मेडिकल एसोशिएशन में मेजर वाटसन नौकरी करते थे, उसके प्रतिनिधियों ने इस प्रेम की प्रतिमा के जीर्णोद्धार की अनुमति प्रदान कर दी।

तपन पाल में फिर से दाल दी प्रतिमा में जान

आनंद सेठी के इस संकल्प को पूरा करने के लिए उनके दोस्तों तथा शुभचिंतकों ने आर्थिक मदद की। प्रेम की प्रतिमा के जीर्णोद्धार के लिए कोलकाता के तपन पाल की सेवाएं ली गईं। जीर्णोद्धार में संगमरमर, प्लास्टर ऑफ पैरिस और फाइबर ग्लास का उपयोग किया गया। जून, 2017 को इस स्मारक का जीर्णोद्वार हुआ।

तपन पाल ने मानो एक बार फिर से मूर्ति में जान डाल दी है। जीर्णोद्वार के बाद प्रेम की प्रतिमा के इ्दगिर्द लोहे की छत वाला लोहे का पिंजरा लगा कर इसे संरक्षित किया गया है।

प्रेम का एक पाठ यह भी

पहाड़ों पर प्रेम की प्रतिमा का ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता, जहां किसी ब्रिटिश सेना अधिकारी ने अपनी पत्नी तथा अजन्मे बच्चे के प्रति प्रेम, ममता को तरोताजा रखने के कलाकृति का निर्माण करवाया हो।

पर ऐसा भी कहा दिखाई देता है कि जब किसी ब्रिटिश दंपति की आत्मा की शांति के लिए स्थानीय लोग प्रेम की प्रतिमा के संरक्षण को आगे आए हों। इसे प्रेम ही कहते हैं, जिसके वश में होकर सेठी परिवार ने इस कलाकृति का जीर्णोद्धार करवाया।

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