भरमाणी के दर्शन बिना क्यों नहीं मिलता मणिमहेश यात्रा का फल?
हिमाचल बिजनेस, चंबा
चंबा जिला अपने कई मशहूर मंदिरों के लिए देश दुनिया में जाना जाता है। चंबा के भरमौर उपमंडल में स्थित चौरासी मदिंर समूह न केवल धार्मिक आस्था का बड़ा प्रतीक है, बल्कि निर्माण कला में भी शिखर पर है।
भरमौर उपमंडल में ही पवित्र डल झील है, जिसमें स्थान कर पुण्य की चाह में हर साल मणिमहेश यात्रा के दौरान लाखों शिवभक्त कठिन परिस्थितियों में यह यात्रा करते हैं।
हर साल होने वाली मणिमहेश यात्रा के साथ कई धार्मिक प्रसंग जुड़े हैं। भरमौर के पवित्र भरमाणी माता मंदिर का इस यात्रा के दौरान विशेष महत्व है। चौरासी सिद्धों व भगवान शंकर के माता भरमाणी को मिले वरदानों से जुड़ी कई मान्यताएं इस मंदिर को खास बनाती है।
पहले भरमाणी के दर्शन, फिर मणिमहेश यात्रा
भरमौर वासियों की कुलदेवी माता भरमाणी के प्रति लोगों में गहरी आस्था है। मान्यता है कि पवित्र भरमाणी माता के दरबार में हाजिरी न भरने वाले श्रद्धालु की मणिमहेश यात्रा पूरी नहीं होती।
हर साल चंबा की पवित्र मणिमहेश यात्रा पर आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले माता भरमाणी के दर्शन करने पहुंचते हैं। भरमाणी माता मंदिर परिसर में स्थित पवित्र कुंड में दर्शन करने के बाद ही मणिमहेश की आगे की यात्रा शुरू होती है।
पूजा- अर्चना के बाद यात्रा
समुद्रतल से 9 हजार फीट की ऊंचाई पर मां भरमाणी माता मंदिर एक पवित्र धाम है। भरमौर से भरमाणी मंदिर तक तीन किलोमीटर दूर ऊंचाई पर स्थित है।
हालांकि मंदिर स्थल तक पहुंचने के लिए जीप मार्ग है और भरमौर से यहां तक रोप वे भी प्रस्तावित है, लेकिन मणिमहेश यात्रा के दौरान अधिकतर यात्री भरमौर से भरमाणी तक पैदल ही पहुंचते हैं। मंदिर परिसर में स्थित पवित्र कुंड में स्नान और मंदिर में पूजा- अर्चना के बाद ही आगे की यात्रा शुरू की जाती है।
लकड़ी से बने पुराने घर
माता भरमाणी मंदिर के लिए पैदल यात्रा के दौरान कुदरत की खूबसूरती में बसा मलकौता गांव आता है। इस गांव में अब भी लकड़ी से बने कई पुराने मकान देखे जा सकते हैं। इन छतनुमा लकड़ी के मकानों के नीचे लोग अपने पशु बांधते हैं और पहली मंजिल पर खुद रहते हैं।
अब यहां तेजी से पक्के मकान भी बनने शुरू हुए हैं, लेकिन वे भी छतनुमा ही बनाए गए हैं। छुतनुमा मकान बनाए जाने की वजह यह भी है कि सर्दियों में यहां खूब बर्फबारी होती है। गांव में अखरोट के अलावा दालों में माह और राजमाह पैदा किए जाते हैं। इस गांव में हनुमान जी का मंदिर भी स्थापित है, जहां पर सुबह-शाम पूजा अर्चना होती है।
भरमाणी के नाम पर भरमौर की स्थापना
भरमौर की पहाड़ियों के एक छोर पर डूग्गा सार नामक स्थान पर स्थापित माता भरमाणी के दर्शनों के लिए यूं तो साल भर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन मणिमहेश यात्रा के दौरान तो यहां लोगों का तांता लग जाता है और लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ती है।
कहा जाता है कि माता भरमाणी को नवदुर्गा में ब्रह्माचारिणी का रूप स्वीकारा गया है और माता भरमाणी के नाम पर ही ब्रह्मपुर यानी भरमौर की स्थापना हुई थी।
भरमौर वासियों की कुलदेवी माता भरमाणी
माता भरमाणी भरमौर वासियों की कुलदेवी है और यहां पर साल भर यज्ञ एवं भंडारों का आयोजन होता रहता है। कहा जाता है कि माता कमी चौरासी मंदिर भरमौर के प्रांगण में विराजमान हुआ करती थी और यहां स्थित एक विशालकाय देवदार वृक्ष के समीप तपस्या किया करती थी।
एक दिन स्वयं भगवान भोलेनाथ अपने 84 सिद्धों के साथ यहां आए और इस स्थान पर एक रात बिताने के लिए रुक गए। माता ब्रह्माणी जब भ्रमण के बाद यहां लौटी, तो यहाँ विराजमान 84 सिद्धों को देखकर क्रोधित हो उठी।
स्थापित हो गए 84 शिवलिंग
माता के पूछने पर भगवान भोले नाथ स्वयं प्रकट हुए और कहा कि माता निराश हो। मेरे ये 84 सिद्ध केवल एक रात यहां ठहरेंगे, लेकिन, सुबह होने पर माता ने देखा कि उसके परिसर में 84 सिद्धों के स्थान पर 84 शिवलिंग स्थापित हो गए हैं।
माता के क्रोधित होने पर भोलेनाथ पुनः प्रकट हुए और माता से कहा कि अब यह स्थान चौरासी धाम के नाम से प्रख्यात होगा और माता आप किसी दूसरी जगह पर चली जाएं।
शिव ने दिया भरमानी को वरदान
शिव ने माता भरमाणी को वरदान दिया कि आज के बाद जो भी भक्त मेरे दर्शन के लिए चौरासी धाम या मणिमहेश यात्रा के लिए आएगा, वह सबसे पहले माता ब्रह्माणी अर्थात भरमाणी के दर्शन करेगा तभी उसकी यात्रा संपूर्ण मानी जाएगी। भोले नाथ के इस वचन के साथ माता भरमाणी डुग्गा सार नामक स्थान पर चली गई।
भरमौर की ऊंची पहाड़ी पर स्थित इस स्थान से चौरासी मंदिर बिलकुल नहीं दिखता है क्योंकि माता ने कह था कि अब मैं ऐसे स्थान पर डेरा लगाउंगी, जहां से चौरासी परिसर बिलकुल भी दिखाई न दे।
स्नान करने से दूर होती व्याधियां
मंदिर के पुजारियों के अनुसार मंदिर परिसर में माता के चरणों से होकर निकलने वाला जल एक कुंड में एकत्रित होता है और इसमें न करने से लोगों की कई व्याधियां दूर होती हैं। यह भी माना जाता है कि कुंड के शीतल जल से स्नान करने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है।
खासकर मणिमहेश यात्रा के दौरान यहां लोगों को लाइनों में लगकर कुंड में स्नान करना पड़ता है और माता के दर्शन के लिए भी लंबी कतारें लगती हैं। यह मंदिर ट्रस्ट के अधीन है। यहां ठहरने के लिए सराय का निर्माण भी करवाया गया है।
चंबा के पर्यटन को लगेंगे नए पंख
भरमौर भरमाणी रज्जू मार्ग की योजना योजना कई सालों से लंबित है। यह योजना सिरे चढ़ती है तो भरमौर की दिलकश वादियों का नजारा लेते हुए भरमाणी के मंदिर तक रज्जू मार्ग के जरिये पहुंचा जा सकेगा।
भरमौर से भरमाणी माता मंदिर तक रज्जू मार्ग बनाने की घोषणा प्रदेश सरकार की ओर से की गई थी। इस कोलकता की एक संस्था ने भी इस प्रोजेक्ट में रुचि दिखाते हुए प्रस्ताव उपमंडल प्रशासन को भेजा था, जिस पर आगामी कार्रवाई करते हुए प्रशासन की ओर से मामले को प्रदेश सरकार के समक्ष भेजा है।
मंदिर तक ऐसे पहुंचे
चंबा जिला मुख्यालय तक हिमाचल व पंजाब के हर मुख्य शहर से बस सेवा उपलब्ध है। भरमौर से यहां से अगर पैदल जाना हो, तो क्या मलकोता गांव होकर हम तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़कर माता भरमाणी के मंदिर पहुंच सकते हैं।वाहन से भी वाया संचूई या मलकोता से होकर माता भरमाणी के मंदिर पहुंचा जा सकता है।
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