लोककथा : बचपन में थामा हाथ, मर कर हुए साथ

लोककथा : बचपन में थामा हाथ, मर कर हुए साथ

लोककथा/ चंबा

रावी के तट पर बसे चंबा के दो प्रेमियों फूलमू-रांझू की दुखांत प्रेमकथा सदियों से पहाड़ के लोकगीतों में ढाल कर सुनाई जा रही है।

लोककथा का सार यही है कि अमीरी- गरीबी के खेल के चलते पारिवारिक और सामाजिक बंधनों के कारण बेशक फूलमू-रांझू जीते जी नहीं मिल पाते, लेकिन मर कर एक हो जाते हैं। उनका अमर प्रेम दुनिया के लिए एक मिसाल बन जाता है।

लोककथा का सार यही है कि अमीरी- गरीबी के खेल के चलते पारिवारिक और सामाजिक बंधनों के कारण बेशक फूलमू-रांझू जीते जी नहीं मिल पाते, लेकिन मर कर एक हो जाते हैं। उनका अमर प्रेम दुनिया के लिए एक मिसाल बन जाता है।

बचपन की दोस्ती

AI Generated Symbolic Picture Just to Tell  Folklore Story

लोककथा के अनुसार रांझू एक बड़े जमींदार का बेटा था। उसके पास बहुत सी भेड़ें और जमीन थी। जमींदार की भेड़ें चराने वाला एक गडरिया था, फुलमू उसी की बेटी थी। एक बार गडरिया अपनी बेटी को साथ लेकर जमींदार का काम करने जाता है।

गड़रिया काम में जुट जाता है, जबकि छोटी सी बच्ची फुलमू अपने हमउम्र रांझू के साथ खेलने लग जाती है। इस एक मुलाक़ात में दोनों के बीच दोस्ती हो जाती है।

दोस्ती जो प्रेम में बदल गई

लोककथा कहती है कि फुलमू और रांझू जैसे- जैसे किशोर और फिर जवान होने लगते हैं, बचपन की दोस्ती आकर्षण और फिर चाहत में बादल जाती है। एहसास दोनों तरफ है, लेकिन वे प्यार का इजहार नहीं कर पाते हैं।

एक दिन रांझू बांसुरी बजा रहा होता है तो फुलमू उसके पास आकार कहती है कि वह बांसुरी न बजाया करे। उसकी बांसुरी की मधुर धुन सुन वह बेचैन हो जाती है।

इस मुलाक़ात में रांझू भी अपनी भावनाएं फुलमू को बता देता है और दोनों प्यार का इजहार कर बैठते हैं। दोनों का प्रेम परवान चढ़ने लगता है और छिप- छिपकर रोज मुलाकातें होने लगती हैं। रांझु इतनी मधुर बांसुरी बजाता है कि फुलमू उसमें खो जाती है।

जिनते मुंह, उतनी बातें

लोककथा के अनुसार इस प्रेम कहानी में नया मोड तब आता है जब एक रोज जब दोनों मिल कर जीने-मरने की कसमें खा रहे थे तो जमींदार का एक आदमी यह सब देख लेता है।

बात जमींदार को पता चलती है तो वह बेटे रांझू को डांटता है और उसको फुलमू से न मिलने की हिदायत देता है। प्यार कहां छुपाए छिपता है। जीतने मुंह, उतनी बातें। गांव में भी दोनों के बारे में कई तरह की बातें होने लगती हैं।

प्रेमियों के हिस्से बन्दिशों की जिंदगी

लोककथा के अनुसार अधिकतर प्रेम कहानियों की तरह इस प्रेमकथा में भी बन्दिशें लड़की पर लग जाती हैं। फुलमू के पिता बेटी का घर से निकलना बंद कर देते हैं।

तमाम खतरे के बावजूद रांझू रात के अंधेरे में छिपकर फुलमू को मिलने चला जाता है। फुलमू उसे समझाती है कि ऐसे में दोनों का मिलना सही नहीं है और उसको अपने घरवालों की बात मान लेनी चाहिए। फुलमू रांझू खुद को संभाल लेने का भरोसा देते हुये रांझू को उसको भूल जाने का अनुरोध करती है।

प्रेमी की जबरन शादी की तैयारी

इस लोककथा में जमींदार को जब यह बात पता चलती है तो वह रांझू को एक कमरे में कैद कर देता है। अगले दिन कुल पुरोहित को बुला कर रांझू के रिश्ते की बात चलाई जाती है।

कुल पुरोहित एक जमींदार की बेटी के साथ उसी हफ्ते का एक शुभ मुहूर्त शादी के लिए देख लेता है। शादी की बात पक्की होने पर रांझू की शादी की तैयारियां शुरू हो जाती हैं।

मर कर एक हुए दो प्रेमी

लोककथा का मार्मिक पक्ष कुछ इस तरह है कि फुलमू को जब जब रांझू की शादी की बात का पता चलती है तो वह इसे सहन नहीं कर पाती और जहर खाकर अपने जान दे देती है। इधर रांझू की रांझू की बारात धूमधाम से निकलती है और दूसरी तरफ फुलमू की अर्थी जा रही होती है।

रांझू पालकी को रोकने को कहता है और फुलमू को अग्नि देने पहुंच जाता है। फुलमू की चिता को अग्नि देकर वह उसी चिता में खुद भी कूदकर जान दे देता है।

लोकगीतों में ढल गई लोककथा

फुलमू-रांझू की इस अमर प्रेम कहानी पर बहुत से लोकगीत लिखे गए हैं। इस लोककथा पर सबसे लोकप्रिय गीत कुछ इस तरह से है।

ग्वाड़ूएं पूछाड़ूएं तूं कजो झांकदी, झांकां कजो मारदी,
दो हत्थ बुटणे दे ला ओ फुलमू गल्लां होई बीतियां।

बुटणा जे लाण तेरियां ताईयां चाचियां, ओ रांझू सकी पाबियां,
जिनां दे मने बिच्च चा ओ रांझू, गल्लां होई बीतियां।

कुनी जे परोते तेरा ब्याह पढेया ओ रांझू ब्याह लिखेया,
कुनी ओ कित्ती कुड़माई ओ रांझू, गल्लां होई बीतियां।

कुलजें परोते मेरा ब्याह पढेया, ओ मेरा ब्याह लिखेया,
बापूएं कित्ती कुड़माई फुलमू, गल्लां होई बीतियां।

वारें वारें रांझूए दी जंज जाए, लोकों जानी जाए,
पारें पारें फुलमू दी लोथ लोकों, गल्लां होई बीतियां।

रक्खा वो कहारों मेरिया पालकिया, मेरिया पालकिया,

फुलमू जो लकड़ी मैं पाणी लोकों, गल्लां होई बीतियां।

इक्की हत्थे फुलमू जो लकड़ी पाई, लोकों लकड़ी पाई,
दूए हत्थे लांबू ते लाया लोकों, गल्लां होई बीतियां।

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