हिंदी सिनेमा – होगा न कोई ओर, जैसे जुगल किशोर
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अढ़ाई दशक तक हिंदी सिनेमा में अपने हुनर का लोहा मनवाया
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हिमाचल प्रदेश को आउटडोर शूटिंग का बेस्ट डेस्टिनेशन बनाया
विनोद भावुक/ पालमपुर
हिंदी सिनेमा से जुड़ी यह कहानी बिलकुल फिल्मी है। गरीबी के चलते घर से अमृतसर गया पालमपुर के ठाकुरद्वारा के एक पुरोहित का आठ पढ़ा बेटा एक रोज मुंबई के हिंदी सिनेमा का चमकता सितारा बन जाता है। अभिनेता, निर्देशक और फिर निर्माता बन कर अपने दौर की एक से बढ़ कर एक हिंदी और पंजाबी फिल्मों का निर्माण करता है।
इस दौरान न जाने कितने लोगों को हिंदी सिनेमा के बड़े पर्दे पर एंट्री कारवाई, कितनों को रोजगार दिया। सबसे बड़ा योगदान तो यह कि पच्चीस सालों तक कांगड़ा को आउटडोर शूटिंग का बेस्ट डेस्टिनेशन बना देता है।
हिंदी सिनेमा में एक के बाद एक फिल्म की कामयाबी का आनंद लेते हुए उसका सपना यह कि पालमपुर में फिल्म स्टुडियो बने। सब ठीक चल रहा था कि एक रोज दिल ने दगा दे दिया और एक दौरे ने 21 जुलाई1979 को जान ले ली।
जुगल किशोर ने नाम हिंदी सिनेमा की जितनी शोहरत रही, दूसरे किसी हिमाचली की उड़ान वहां तक नहीं पहुंची। बात करते हैं उनके जीवन और उनके फिल्मी सफर के बारे में।
अमृतसर के रास्ते मुंबई की उड़ान
आठवीं पास जुगल किशोर काम-काज की तलाश में अमृतसर पहुंचे तो एक रोज जम्मू-कश्मीर की पूंछ रियासत के राजा बलदेव सिंह से मुलाक़ात हुई तो उनको होटल में काम मिल गया। उसके बाद लाहौर से अमृतसर और अमृतसर से लाहौर तक डाक लाने ले जाने की ज़िम्मेदारी मिल गई।
राजा ने मुंबई में गुजराती निर्देशक नानू भाई वकील से जुगल किशोर को फिल्म मेकिंग का काम सीखाने का अनुरोध किया और उसके बाद जुगल किशोर का हिंदी सिनेमा में फिल्मी सफर शुरू बतौर सहायक निर्देशक शुरू हो गया।
‘भंगड़ा’ के हिट होने से आया टर्निंग पॉइंट
बाद में वे हिंदी सिनेमा के मशहूर निर्माता-निर्देशक विमल राय के सहायक निर्देशक हो गए। ‘गुलाम बेगम बादशाह’ और ‘टेन ओ’ क्लॉक’ के बाद आई उनकी तीसरी फिल्म और पंजाबी में पहली फिल्म ‘भंगड़ा’ उनके हिंदी सिनेमा करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुई।एक लाख साठ हजार रुपए बनी इस फिल्म ने सात लाख से अधिक की कमाई की और उनका सिक्का चल निकला।
जुगल किशोर ने हिन्दी और पंजाबी में कई सफल फिल्में बनाई। निर्देशन के साथ अभिनय में भी हाथ आजमाया। उनकी आखिरी फिल्म ‘दादा’ थी। 1979 में आई यह फिल्म सुपर हिट रही।
आउटडोर शूटिंग के लिए हिमाचल बना पसंद
हिंदी सिनेमा में स्थापित होने के बाद जुगल किशोर अपनी ज्यादातर फिल्मों की आउटडोर शूटिंग हिमाचल प्रदेश में करते थे। एक तो इससे घर जैसा माहौल मिलता, दूसरा यहां के लोगों को भी काम मिलता।
1966 में पहली बार उनकी फिल्म ‘लाल बगंला’ की शूटिंग अपनी जन्मभूमि पालमपुर की हसीन वादियो में हो रही थी। फिल्म को कागंडा धर्मशाला, पालमपुर, बैजनाथ और जोगिंदरनगर में फिल्माया गया था।
1968 मे हिंदी सिनेमा की फिल्म ‘फरेब’ का फिल्मांकन भी धोलाधार के आंचल में हुआ। यह श्री ओम प्रोडक्शन के बैनर तले बनी थी। इसके निर्माता जुगल किशोर के भाई ओम प्रकाश शर्मा थे।
1969 में बनी हिंदी सिनेमा की दमदार फिल्म ‘शिमला रोड’ की शूटिंग भी हिमाचल प्रदेश में कई लोकेशनों पर हुई थी।
बैजनाथ मंदिर में कलर फिल्म के लिए क्लैप
हिंदी सिनेमा का यह भी एतिहासिक पल था। 1970 में जुगल प्रोडक्शन की पहली कलर फिल्म के लिए भोले बाबा बैजनाथ के दरबार में पहला क्लैप लिया गया था। 1972 में जुगल प्रोडक्शन के बैनर तले बनी ‘मूनीमजी’ की शूटिंग पालमपुर, बैजनाथ और मछयाल में हुई थी।
निर्देशन के साथ शुरू की फिल्मी पारी
हिंदी सिनेमा में ‘गुलाम, बेगम बादशाह’ के निर्देशन के साथ जुगल किशोर का फिल्मी करियर शुरू हुआ था। इस फिल्म का निर्माण 1956 में हुआ था। यह नियाग्रा फिल्म प्रॉडक्शन की फिल्म थी। हिन्दी सिनेमा का वह दौर अरेबियन बेकड्राप पर आधारित फंतासी फिल्मों का था।
1958 में उन्होंने हिंदी सिनेमा में ‘10 ओ क्लॉक’ का निर्देशन किया। 1959 में उन्होंने पहली पंजाबी फिल्म ‘भंगड़ा’ का निर्देशन किया जो उत्तरी भारत की सुपर हिट फिल्म रही।
1960 मे जुगल किशोर के निर्देशन में बनी दो फिल्में रिलीज हुईं। एक हिंदी में ‘गुड नाइट’ और दूसरी पंजाबी में ‘दो लछियां’। 1961 मे पंजाबी फिल्म ‘गुडी’ का और 1962 में पंजाबी फिल्म ‘खेड़न दे दिन चार’ बनाई। 1963 में ‘गुले वकावली’ और पंजाबी में ‘लाजो’ का निर्देशन हिंदी सिनेमा में अपना लोहा मनवाया।
निर्देशन के बाद फिल्म निर्माण का काम
‘गुले वकावली’ के साथ जुगल किशोर हिंदी सिनेमा में निर्माता बन गए। जुगल प्रोडक्शन के बैनर तले यह उनकी पहली फिल्म थी। 1964 मे जुगल किशोर निर्देशन मे आई पंजाबी मूवी काफी लोकप्रिय हुई थी। यह नेशनल अवार्ड फॉर बेस्ट पंजाबी फिल्म अवार्ड से सम्मानित हुई थी।
1964 मे ही जुगल प्रोडक्शन की मूवी ‘एक दिन का बादशाह’ में जबरदस्त भूमिका निभा कर जुगल किशोर हिंदी सिनेमा के एक्टर भी बन गए।
1965 मे जुगल किशोर के निर्देशन में ‘फैसला’ और ‘मैं हूं जादूगर’ फिल्में बनी।
‘फैसला’ में मुख्य भूमिका में खुद जुगल किशोर थे। 1966 उनके निर्देशन में ‘बहादुर डाकू’ और ‘लाल बगंला’ फिल्में बनीं। 1969 मे जुगल प्रोडक्शन की दो फिल्मों ‘शिमला रोड’ और ‘नतीजा’ का निर्माण हुआ।
आखिरी फिल्म ‘दादा’ रही सुपर- डुपर
हिंदी सिनेमा में 1971 में जुगल प्रोडक्शन के बैनर तले बनी ‘खोज’ को मुम्बई में फिल्माया गया था।
1972 में में जुगल प्रोडक्शन के बैनर तले ‘मूनीमजी’, 1973 में बहुत प्यारी और चर्चित मूवी ‘सबक’ आई । 1974 में चित्कारा प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले जुगल किशोर के निर्देशन में ‘अपराधी’ फिल्म आई थी।
1975 में जुगल प्रोडक्शन ने ‘अनोखा’ और पंजाबी फिल्म ‘मोरनी’ का निर्माण किया। जुगल प्रोडक्शन के बैनर तले 1976 में आई ‘दो खिलाड़ी’ में जुगल किशोर ने एक यादगार भुमिका निभाई थी।
हिंदी सिनेमा में यह भी रिकॉर्ड है कि जुगल प्रोडक्शन के बैनर की अतिंम फिल्म 1978 में बनी ‘दादा’ सुपर डुपर हिट रही थी। जुगल किशोर की मृत्यु के बाद 1980 के फिल्म फेयर में ‘दादा’ फिल्म को अलग अलग कैटेगरी में तीन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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