अर्जुन ने कहां लिया था चक्रव्यूह को भेदने का ज्ञान?
वीरेंद्र शर्मा ‘वीर’/चंडीगढ़
महाभारत में चक्रव्यूह का उल्लेख बेहद महत्वपूर्ण है। चक्रव्यूह में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुए। अर्जुन के अलावा अभिमन्यु ही एकमात्र ऐसे योद्धा थे जो चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश करना जानते थे। अभिमन्यु चक्रव्यूह में प्रवेश तो करना जानते थे, लेकिन बाहर निकलना नहीं जानते थे।
अर्जुन ने इस चक्रव्यूह का ज्ञान कहा से लिया था, ये बहुत से लोगों को नहीं मालूम है। चक्रव्यूह की रचना के प्रमाण आज भी हमीरपुर जिले के राजनौण इलाके में मौजूद हैं।
पांडवों ने बिताया अज्ञातवास
कहा जाता है कि संभवत अर्जुन ने चक्रव्यूह को समझने के लिए यहां पर एक शिला व्यूह की थी। यहां पर इसे व्यूह चक्र के नाम से जाना जाता है। हजारों वर्ष पूर्व पांडव काल के प्रमाण आज भी यहां मौजूद हैं। पांडवों ने अज्ञातवास का अधिकतर समय उत्तरी भारत में ही गुजारा था।
पांडवों के यहां पर समय व्यतीत करने के प्रमाण कई जगह देखने को मिलते हैं। हमीरपुर जिला मुख्यालय से करीब 45 किमी दूर धनेटा इलाके के राजनौण में भी पांडवों ने अपना समय व्यतीत किया था।
विलुप्त होने लगी ऐतिहासिक धरोहर
राजनौण में अर्जुन ने चक्रव्यूह, के अलावा विशाल टियाले, पानी पीने के लिये नौंण और अधूरे मंदिर का निर्माण किया था, जिसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं।
इन्हें देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं, लेकिन अनदेखी के कारण यह ऐतिहासिक धरोहर विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। पुरातत्व विभाग को इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण की पहल करनी चाहिए।
शिला पर उकेरा चक्रव्यूह
राजनौण हमीरपुर की सोहलासिंगी धार में स्थित है। यह हजारों वर्ष पुरानी धरोहर है, जिसका दीदार करने के लिए सैकड़ों लोग राजनौण पहुंचते हैं।
6 हजार वर्ष पूर्व पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान राजनौण में अर्जुन द्वारा चक्रव्यूह को समझने के लिए चक्रव्यूह को पत्थर की शिला पर उकेरा जो आज भी राजनौण में मौजूद है।
पांडवों ने राजनौण में कराए थे कई निर्माण
राजनौण में एक विशाल नौंण का निर्माण पांडवों द्वारा पीने के पानी के लिए किया गया था। जो आज भी इस स्थान पर देखा जा सकता है। मौजूदा समय में इस नौण से जल शक्ति विभाग द्वारा विभिन्न गांवों के लिए पेयजल मुहैया करवाया जाता है।
राजनौण में पांडवों ने विशाल टियाले का भी निर्माण करवाया था, जो अभी भी मौजूद है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर चढ़ाया जाने वाला जल इस चक्रव्यूह से होकर गुजरता है।
पांडवों ने इसे इस रूप में क्यों बनाया था, यह किसी को नहीं पता। मंदिर में आज भी पौराणिक बहुत बड़ी-बड़ी पत्थर की शिलाएं देखी जा सकती हैं।
एक चक्रव्यूह कुरुक्षेत्र में, दूसरा हमीरपुर में
इतिहासकार बताते हैं कि एक चक्रव्यूह कुरुक्षेत्र में है और दूसरा हमीरपुर के राजनौण में स्थित है। राजनौण का इतिहास पांडवकाल से है और इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं।
कुरुक्षेत्र की तरह हमीरपुर के राजनौण में भी चक्रव्यूह बना हुआ है। कुरुक्षेत्र का और इस जगह का कोई न कोई संबंध जरूर है। यह शोध का विषय है।
अर्धनारीश्वर शिवलिंग
टियाले के बिलकुल पीछे एक विशाल पीपल के पेड़ के नीचे दो खंडों में विभक्त शिवलिंग है जिसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग पुकारते है। यह जिला हमीरपुर में एकमात्र ऐसा शिवलिंग है।
लोगों की मान्यता है कि यदि सूखे की संभावना हो तो स्थानीय लोग नौण से पानी निकालकर अखंड जलधारा इस शिवलिंग पर लगाएं और तब तक पानी चढ़ाते रहें जब तक वह नाले के पानी से न मिल जाए, तो 24 घंटे के अंदर बारिश शुरू हो जाती है।
नाले पर ऐतिहासिक धरोहर
रास्ते की दूसरी ओर दक्षिण की तरफ व नौण के सामने एक ऐतिहासिक धरोहर स्थापित है, जिस पर विशाल मंदिर का निर्माण कर दिया गया है। यह ऐतिहासिक धरोहर विशेष प्रकार की शैली से बनाई गई है। इसका निर्माण एक नाले के ऊपर किया गया है। इस धरोहर के प्रांगण में गोलाकार व आयताकार विशाल शिलाएं हैं।
गर्भगृह के प्रवेशद्वार पर गणेश व द्वारपाल बनाए गए हैं। गर्भगृह से पानी की निकासी गौमुख से की गई है। हालांकि पहले यहां कोई मूर्ति नहीं थी, लेकिन मंदिर कमेटी ने विशाल मंदिर का निर्माण करके मूर्तियां स्थापित की हैं।
पांडवों ने पत्थरों पर उकेरा चक्रव्यूह
मान्यता है कि पांडव अज्ञातवास के समय इस स्थान पर आए थे और चक्रव्यूह अध्ययन यहां किया गया था। पाषाण पर बनाए गए चक्रव्यूह को पांडवों ने बनाया था और नौण का भी निर्माण पांडवों द्वारा किया गया, जिसका जीर्णोद्धार बाद में नादौन के राजा द्वारा करवाया गया।
प्रसिद्ध बाबा बालक नाथ मंदिर से यह महज 40 किलोमीटर दूर है और जिला मुख्यालय से इसकी दूरी महज 35 किलोमीटर है। यदि इस जगह अच्छे साधन मुहैया कराए जाएं तो पर्यटन की दृष्टि से यहां पर विलेज टूरिज्म के लिए इस साइट को विकसित किया जा सकता है।
बैसाखी में आती है मां गंगा
स्थानीय लोगों का मानना है कि प्रत्येक वर्ष बैसाखी वाले दिन अढ़ाई घड़ी के लिए गंगा माता इस नौण में आती है। यह भी मान्यता है कि यदि किसी महिला को संतान सुख प्राप्त न हो तो नौण का पानी चक्रव्यूह से निकालकर उसे पिलाया जाए तो महिला की गोद भर जाती है।
इसलिए इसे गर्भजून भी कहते हैं। नौण, टियाला व चक्रव्यूह एक सीध में बनाए गए हैं। टियाले के मध्य विशाल पेड़ है। टियाले को चढ़ने के लिए उत्तर व दक्षिण से सीढियां लगाई गई हैं। वैसा ही नौण बरामदे में बनाया गया है, जहां पर चक्रव्यूह स्थापित है। नौण में बाहरी पानी न आए, इसके लिए तीनों ओर से नालियां बनाई गई हैं।
शोधार्थियों के लिए संभावनाओं भरी जगह
शोधार्थियों के लिए भी यह जगह संभावनाओं से भरी हुई है। यहां पर पर्यटन को विकसित करने के लिए अभी तक कारगर प्रयास नहीं किए गए हैं। इस ऐतिहासिक स्थल को धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से विकसित किए जाने की संभावना है।
अफसोस की बात है कि किसी भी सरकार ने इसके उद्धार के लिए कोई कदम नहीं उठाया। अगर कोशिश की जाती तो क्षेत्र के विकास के साथ-साथ स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के साधन भी पैदा होते।
प्राकृतिक रूप से छेड़छाड़
वर्तमान में इसके प्राकृतिक रूप से छेड़छाड़ होने के कारण कई तथ्यों को समझाना मुश्किल हो रहा है। नौण के ऊपर सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग ने लेंटर डाल कर इसके वास्तविक रूप को बदल दिया है, वहीं मंदिर कमेटी ने धरोहर पर विशाल मंदिर का निर्माण करके इसके वास्तविक रूप को बदल दिया है। विशाल टियाले, मंदिर और नौण का प्राकृतिक स्वरूप बदल दिया गया है।
यदि सरकार इस क्षेत्र को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करे तो जहां एक ओर इस धरोहर के संरक्षण को बल मिलेगा, वहीं पर्यटक व आम जनता अपनी संस्कृति, इतिहास व सभ्यता से परिचित होगी।
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