एक ब्रिटिश चित्रकार जिसने धौलाधार से किया प्यार

एक ब्रिटिश चित्रकार जिसने धौलाधार से किया प्यार
British Painter Hallet

हिमाचल बिजनेस/ धर्मशाला

ब्रिटिश चित्रकार अल्फ्रेड डब्ल्यू हैलेट धौलाधार के रंगों में ऐसे रंगे कि ब्रिटिश राज खत्म होने और भारत विभाजन के बावजूद वे इंग्लैंड नहीं लौटे। ताउम्र यहीं रहे। लोक संस्कृति के रंगों में ऐसे रंगे कि बोली और लिबास तक पहाड़ी हो गया। वे एक साधक की तरह यहां की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विविधता को अपने रंगों में ढालते रहे। जीवन का अधिकतर हिस्सा यहीं गुजारा और एक रोज यहां की मिट्टी में दफन हो गए।

ब्रिटिश चित्रकार हैलेट के बनाए चित्रों में धर्मशाला और उसके आस-पास के क्षेत्रों की प्राकृतिक सुंदरता, तिब्बती और हिमाचली संस्कृति और स्थानीय जीवनशैली की खूबसूरती को पढ़ा जा सकता है।
British Painter Hallet

ब्रिटिश चित्रकार हैलेट के बनाए चित्रों में धर्मशाला और उसके आस-पास के क्षेत्रों की प्राकृतिक सुंदरता, तिब्बती और हिमाचली संस्कृति और स्थानीय जीवनशैली की खूबसूरती को पढ़ा जा सकता है।

प्रकृति के प्रति प्रेम और संस्कृति के प्रति उनकी गहरी समझ उनके चित्रों की ताकत है। हैलेट ने अपनी कला के माध्यम से धौलाधार को एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में दुनिया के सामने पेश किया।

लंदन में पढ़ाई, ब्रिटिश भारत में नौकरी

अल्फ्रेड डब्ल्यू हैलेट का जन्म 1914 में इंग्लैंड में हुआ था। वे बचपन से ही कला के प्रति आकर्षित थे और उन्होंने लंदन में अध्ययन किया।
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अल्फ्रेड डब्ल्यू हैलेट का जन्म 1914 में इंग्लैंड में हुआ था। वे बचपन से ही कला के प्रति आकर्षित थे और उन्होंने लंदन में अध्ययन किया। साल 1937 और 1939 में रॉयल अकादमी, लंदन में दो चित्र प्रदर्शनियों में भाग लिया। इस कालखंड में श्रीनगर के एक होटल मालिक ने पेंटिंग करने के लिए उन्हें भारत बुलाया।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हैलेट ने ब्रिटिश सरकार को अपनी सेवाएं दीं और पंजाब में मुख्य सेंसर के पद पर पहुँचे।  युद्ध के बाद वे पंजाब के धारीवाल में न्यू एगर्टन वूलन मिल्स के बिक्री और डिजाइन के प्रबंधक बन गए।

धर्मकोट का ‘कार्लटन कॉटेज’

भारत विभाजन के बाद हैलेट अक्सर गर्मियों में धर्मशाला आने लगे। ब्रिटिश चित्रकार हैलेट ने धर्मकोट में देवदार के जंगलों में बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच स्थित 1840 के दशक में एक सेवानिवृत्त अंग्रेज मेजर द्वारा बनाई चर्च की संपत्ति खरीदी।

भारत विभाजन के बाद हैलेट अक्सर गर्मियों में धर्मशाला आने लगे। ब्रिटिश चित्रकार हैलेट ने धर्मकोट में देवदार के जंगलों में बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच स्थित 1840 के दशक में एक सेवानिवृत्त अंग्रेज मेजर द्वारा बनाई चर्च की संपत्ति खरीदी।

सुंदर पत्थर की इमारत की मरम्मत करवाकर उन्होंने इसे ‘कार्लटन कॉटेज’ का नाम दिया और स्थाई तौर पर यहीं पर बस गए। इसका कुछ भाग विदेशियों को किराए पर दिया था।

ब्रिटिश चित्रकार, स्थानीय और तिब्बती संस्कृति की समझ

 

ब्रिटिश चित्रकार हैलेट का स्थानीय संस्कृति और लोगों के साथ गहरा संबंध बन गया। साल 1959 में दलाई लामा भारत आए तो हैलेट का संपर्क तिब्बती शरणार्थियों से हुआ।
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यह संपर्क तिब्बती संस्कृति और बौद्ध धर्म को समझने में बड़ा काम आया।

14वें दलाई लामा के साथ उनकी दोस्ती के खूब चर्चे रहे। अक्सर वे दलाई लामा से मुलाक़ात करते थे और बागवानी और फोलों की बातें जम कर होती थी।

ब्रिटिश चित्रकार हैलेट एक आम चित्रकार की तरह अपने चित्रों का निर्माण करते रहे। जब उनके चित्रों की प्रदर्शनी भारत और विदेशों में आयोजित की गई, तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और स्थानीय स्तर पर लोगों का ढेर सारा स्नेह और प्यार।

 ‘नाम आर्ट गैलरी’ में प्रदर्शित चित्र

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ब्रिटिश चित्रकार हैलेट ने ‘कार्लटन कॉटेज’  में अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा बिताया और 26 अप्रैल 1986 को धर्मकोट में उनके घर पर उनकी मृत्यु हो गई। हैलेट फूलों की खेती और पेंटिंग के लिए प्रसिद्ध थे।

धर्मशाला के सिद्धबारी में स्थित  ‘नाम आर्ट गैलरी’ में उनके कुछ चित्र प्रदर्शित हैं। अमृतसर के कैथोलिक चर्च में भी उनकी पेंटिंग प्रदर्शित हैं।

अल्फ्रेड डब्ल्यू हैलेट का जीवन और काम धर्मशाला की कला, संस्कृति, और इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उनके बनाए चित्रों ने तिब्बती समुदाय की सुंदरता और संघर्ष को एक नई पहचान दी है।

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