करनैल राणा : आठवीं में दो बार फेल, लोकगायिकी में टॉपर 

करनैल राणा : आठवीं में दो बार फेल, लोकगायिकी में टॉपर 

विनोद भावुक/ कांगड़ा

लोकगायन के फलक पर अपनी विशेष चमक बिखेरने वाले करनैल राणा आठवीं क्लास में दो बार फेल हुए थे, लेकिन हिमाचल प्रदेश में  लोकगायिकी में वे टॉपर हैं। बात अगर लोकगायन की हो तो करनैल राणा हिमाचली लोक संस्कृति के सबसे बड़े संरक्षक के तौर पर पहचान रखते हैं।

हिमाचल प्रदेश सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के जिला सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी के पद से सेवानिवृत होने के बाद करनैल राणा सुभाष नगर, अपर सकोह, धर्मशाला में बस गए हैं। वे अपनी गायिकी के नए- नए प्रयोग कर रहे हैं और यूट्यूब पर धड़ाधड़ उनके लोकगीत रिलीज हो रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के जिला सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी के पद से सेवानिवृत होने के बाद करनैल राणा सुभाष नगर, अपर सकोह, धर्मशाला में बस गए हैं। वे अपनी गायिकी के नए- नए प्रयोग कर रहे हैं और यूट्यूब पर धड़ाधड़ उनके लोकगीत रिलीज हो रहे हैं।

आवाज की कायल हुई सरकार

करनैल राणा ने साल 1986 में राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला से स्नातक की पढ़ाई की। उसके बाद उन्होंने कोटा, राजस्थान से पत्रकारिता और जनसंचार में डिग्री भी और आल इण्डिया रेडियो स्टेशन, शिमला से बी-ग्रेड में लोक संगीत की मुखर परीक्षा उत्तीर्ण की है।

करनैल राणा ने साल 1986 में राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला से स्नातक की पढ़ाई की। उसके बाद उन्होंने कोटा, राजस्थान से पत्रकारिता और जनसंचार में डिग्री भी और आल इण्डिया रेडियो स्टेशन, शिमला से बी-ग्रेड में लोक संगीत की मुखर परीक्षा उत्तीर्ण की है।

साल 1994 में करनैल राणा की पहली एल्बम, ‘चंबे पतने दो बेडियां’ को  जबरदस्त सराहना मिली। उन्होंने 150 से अधिक एल्बमों के लिए गाया और एक स्टार लोकगायक बन गए।

उनकी गायन प्रतिभा के चलते दिसंबर 1988 में उन्हें हिमाचल प्रदेश सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में थियेटर यूनिट में एक कलाकार के रूप में नियुक्त किया गया था।

पिता की गायकी से प्रभावित

करनैल राणा का जन्म 30 अप्रैल 1963 को गांव रकवाल लाहड, ऊपरी घल्लौर, तहसील ज्वालामुखी, जिला कांगड़ा में हुआ। उनके पिता का नाम स्वर्गीय स्वर्ण सिंह राणा और उनकी माता का नाम इंदिरा देवी है। उनके पिता को भी भारतीय लोक संगीत पसंद था।

करनैल राणा का जन्म 30 अप्रैल 1963 को गांव रकवाल लाहड, ऊपरी घल्लौर, तहसील ज्वालामुखी, जिला कांगड़ा में हुआ। उनके पिता का नाम स्वर्गीय स्वर्ण सिंह राणा और उनकी माता का नाम इंदिरा देवी है। उनके पिता को भी भारतीय लोक संगीत पसंद था।

उनके पिता की लोक गायन में गहरी रुचि थी और खुद भी एक बढ़िया लोक गायक थे।  इसलिए करनैल राणा की लोक संगीत में बचपन से ही उनकी भी रुचि हो गई। किशोरावस्था से ही करनैल राणा को पारिवारिक समारोहों में शामिल होकर गाना और वाद्य यंत्र बजाना अच्छा लगता है।

प्रताप चंद शर्मा को आदर्श मानते हैं करनैल राणा

जीणा कांगड़े दा जैसे कालजयी गीत के रचियाता कांगड़ा के प्रसिद्ध लोक स्वर्गीय गायक प्रताप चंद शर्मा को करनैल राणा अपना आदर्श मानते हैं।

जीणा कांगड़े दा जैसे कालजयी गीत के रचियाता कांगड़ा के प्रसिद्ध लोक स्वर्गीय गायक प्रताप चंद शर्मा को करनैल राणा अपना आदर्श मानते हैं।

उनके एक जोड़ा सूटे दा, कजो नैन मिलाये, फौजी मुंडा आई गेया छुट्टी, दो नारां, डाडे दी ये बेडिये, बिंदु नीलू दो सखियां, होरना पतनां और ओ नौकरा अंब पाके ओ घर आ और निंद्रे पारे-पारे चली जायां जैसे विभिन्न गीत आज भी सदाबहार लोकगीत हैं।

उन्होंने धूड़ू नचया जटा ओ खलारी हो और हुण ओ कतां जो नसदा धुडुआ सहित देवी-देवताओं से संबंधित कई पहाडी गीत और भजन गाये हैं।

करनैल राणा ने बढ़ाई हिमाचली गीतों की पहुंच

‘फुलां दी बरखा लाई बाबे ने’, ‘निंदरे पारें – पारें ओ चली जायां’, ‘बिंदु नीलू दो सखियां’, ‘चंबे पत्तने दो बेड़ियां‘ और ‘कजो नैन मिलाए ओ दिल मेरया’ जैसे अनेक सदाबहार नगमे देने वाले करनैल राणा का हिमाचली लोक गायन को प्रदेश की सीमाएं लांघ कर देश दुनिया में लोकप्रिय बनाने में बड़ा योगदान है।

उन्होंने हिमाचली गीतों की पहुंच बढ़ाने के लिए उत्कृष्ट कार्य किया है। लोक संस्कृति के संरक्षण में उनका काम सराहनीय है।

लोकगायन को घर से बाहर दी पहचान

करनैल राणा ने दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़, जालंधर, लुधियाना, गोवा, राजस्थान, गुजरात, पंजाब और जम्मू-कश्मीर के विभिन्न सार्वजनिक मंचों पर प्रतिनिधि कलाकार के रूप में राज्य का संचालन भी किया है और अपने लोकगीतों से लोगों के दिलों में जगह बनाई है।

लोकसंस्कृति और लोक गायन के संरक्षण के लिए करनैल राणा को विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों ने सम्मानित किया गया है।

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