कांगड़ी भाषा है अनमोल, अमरीकी ने बताया मोल
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‘कांगड़ी इन कान्टेक्स्ट: एन एरियल प्रसपेक्टिव’ पर रॉबर्ट डी ईटन ने साल 2008 में टेक्सास विश्वविद्यालय से की है पीएचडी
विनोद भावुक/ धर्मशाला
कांगड़ी भाषा के व्याकरण और उच्चारण पर अमेरिका के प्रतिष्ठित टेक्सास विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट कर अमेरिका निवासी रॉबर्ट डी ईटन ने इस भाषा की मिठास को दुनिया के सामने पेश किया है। ‘कांगड़ी इन कान्टेक्स्ट: एन एरियल प्रसपेक्टिव’ विषय पर ईटन ने साल 2008 में पीएचडी की है।
उन्होंने कांगड़ी भाषा के हिंदी, पंजाबी और डोगरी के साथ तुलनात्मक अध्ययन, शोध और विशलेषण के बाद पालमपुर क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली की विशेषताओं से सारी दुनिया को परिचय करवाया है।
उनका दावा है कि एक भाषा के तौर पर कांगड़ी व्याकरण और उच्चारण के लिहाज से पंजाबी और डोगरी दोनों से कहीं ज्यादा वैज्ञानिक भाषा है।
कांगड़ी भाषा में साहित्यकर्म करने वालों के लिए उनकी यह रिसर्च बड़े काम की है। यह सुखद है कि ग्लोबलाइज़ेशन के जिस दौर में पहाड़ की कई बोलियों के वजूद पर संकट है, एक अमरीकी रिसर्चर कांगड़ी भाषा की वैज्ञानिकता की विश्वव्यापी चर्चा कर रहा है।
ईटन का काम, कई लोगों का नाम
ईटन के इस शोध को पूरा करने में भारतीय भाषाविद डॉ. एसआर शर्मा व डॉ. जेसी शर्मा का खूब सहयोग मिला। उनके इस शोध कार्य में स्वर्गीय बदलेव सिंह ठाकुर, प्रवीण गोडस्मिथ, कर्ण डोगरा, पवन कौंडल, डॉ.बीना गुप्ता, डॉ. शशी पठानिया, डॉ. शिवदेव मन्हास, सादिक मसीह व सुरेश कुमार ने उनकी दिल से मदद की।
शोध में सहयोग करने वाले हर स्थानीय व्यक्ति का उल्लेख ईटन ने अपने शोध ग्रंथ में किया है।
कांगड़ी भाषा में संवाद करता ईटन का परिवार
ईटन ने अपने शोध कार्य को पूरा करने के लिए न केवल कांगड़ा की लोक संस्कृति और रहन- सहन को अपना लिया, बल्कि उनका परिवार भी ठेठ कांगड़ी बोलना सीख गया।
ईटन के इस शोध के बाद उनके परिवार के सदस्य आपस में कांगड़ी भाषा में ही बातचीत करते हैं। शोध के बाद भी ईटन ने कांगड़ा से अपना नाता जोड़े रखा है और सोशल मीडिया पर अपने यहां के मित्रों के साथ कांगड़ी भाषा में संवाद स्थापित करते हैं।
कंप्यूटर प्रोग्राम और कनवर्टर किए डवलप
ईटन ने साल 1988 में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद एक कंपनी में सेवाएं देनी शुरू की, लेकिन साल 1990 में क्लोबलैंड विश्वविद्यालय से कप्यूटर सांइस में मास्टर डिग्री के लिए प्रवेश ले लिया।
साल 1994 में टेक्सास विश्वविद्यालय के समर इंस्टीच्यूट ऑफ लिंगयुइस्टिक में प्रवेश लेकर भारतीय भाषा पर केंद्रित पीएचडी की पढ़ाई शुरू की।
अपने अध्ययन के लिए उन्होंने दस साल तक पालमपुर में हिंदी और कांगड़ी भाषा का अध्ययन किया और इस भाषा के ज्ञान के लिए कई कप्यूटर प्रोग्राम और कनवर्टर डवलप किए।
पालमपुर में दस साल, कांगड़ी भाषा की स्टडी
ईटन ने अपने शोध कार्य को पूरा करने के लिए करीब दस साल कांगड़ा जिला के पालमपुर उपमंडल में गुजारे और अब तक का इतिहास का सबसे विस्तृत एवं वैज्ञानिक शोध प्रस्तुत किया।
यह उनके ही शोध का प्रतिफल हैं कि कांगड़ी भाषा की कई विशेषताओं का पहली बार पता चला। ईटन को टेक्सास विश्वविद्यालय ने मई 2008 में डॉक्टरेट की उपाधि से समानित किया।
ईटन ने साल 1988 में इलेक्ट्रानिक इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद साल 1990 में क्लोबलैंड विश्विद्यालय से कप्यूटर सांइस में मास्टर डिग्री की और फिर भारतीय भाषाओं की पढ़ाई शुरू की, जो उन्हें पालमपुर ले आई।
कांगड़ी में सृजन करने वाले लेखकों से दोस्ती
कांगड़ी भाषा पर शोध करने वाले बॉब ईटन के स्थानीय बोली में सृजन करने वाले लेखक, साहित्यकार एवं शिक्षक राजीव त्रिगर्ती और भूपेंद्र जवाल ‘भूपी’ के साथ ख़ासी दोस्ती रही है, जो सोशल मीडिया के जरिये अब भी कायम है।
एक अमेरिकी की जुबान से ठेठ देसी बोली में गप-शप करना एक अलग तरह का अनुभव होता है। ईटन का गहन अध्ययन कांगड़ी बोली के संरक्षण की पहल में अहम भूमिका अदा करेगा।
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