कौन थी कश्मीर की बिल्लौरन रानी, चंबा से क्या कनेक्शन ?
विनोद भावुक/ धर्मशाला
डोगरा राजवंश जम्मू – कश्मीर के आखिरी महाराजा हरि सिंह ने चार शादियां की थीं। उनको राजवंश चलाने के लिए संतान सुख बेशक उनकी चौथी पत्नी रानी तारा से मिला, लेकिन वे अपनी दूसरी पत्नी बिल्लौरन रानी की मौत के सदमे को कभी नहीं भूल पाए। उनकी चौथी पत्नी रानी तारा का मायका कांगड़ा, जबकि दूसरी दूसरी पत्नी बिल्लौरन रानी का मायका चंबा रियासत में था।
हरि सिंह की पहली शादी अठारह साल की उम्र में 7 मई 1913 को सौराष्ट्र के राजकोट में हुई थी। उनकी पहली पत्नी श्री लाल कुंवरेवा साहिबा के नाम से जानी जाती थी। दस महीने बाद ही उनकी पत्नी की मौत हो गई। पहली पत्नी की मौत के कुछ महीने बाद ही साल 1914 की फरवरी में हरि सिंह की दूसरी शादी हुई।
बिल्लौरन रानी : कांच की तरह पारदर्शी
हरि सिंह की दूसरी शादी चंबा में 8 नबंवर 1915 को हुई। दूसरी पत्नी चंबा रानी साहिबा के नाम से जानी जाती थी। डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री अपनी पुस्तक, ‘जम्मू – कश्मीर के जननायक महाराजा हरि सिंह’ में लिखते हैं कि राजमहल में बिल्लौरन रानी (कांच की तरह पारदर्शी) कहलाती थी।
हरि सिंह अपनी बिल्लौरन रानी को अथाह प्यार करते थे। बिल्लौरन रानी के नाम से पहचान रखने वाली चंबा रानी साहिबा की मौत शादी के कुछ ही साल बाद 3 जनवरी 1920 में हो हो गई थी।
गर्भवती रानी की मौत का सदमा
बिल्लौरन रानी मौत के समय रानी गर्भवती थी। उस समय हरि सिंह अपनी रियासत में नहीं थे। प्रसव के दौरान हरि सिंह की ताई महारानी चडक ने बिल्लौरन रानी को जहर दे दिया, जिससे बच्चे समेत उसकी मौत हो गई थी। पैदा होनेवाला बच्चा लड़का था।
बिल्लौरन रानी को जहर देकर मारा गया था, इसकी पुष्टि हरि सिंह के एडीसी कैप्टन दीवान सिंह भी की थी। हरि सिंह के खुद के शब्द हैं,’ ‘मेरी पत्नी गर्भवती थी। गर्भाधान के बाद मेरी ताई महारानी चडक ने मुझे कभी उससे मिलने नहीं दिया और उसे जहर देकर मार दिया।‘
तीसरी रानी से नहीं हुई संतान
वंश परंपरा चलाने के लिए निसंतान महाराजा प्रताप सिंह के दबाव में हरि सिंह ने 30 अप्रैल 1923 को सौराष्ट्र की धर्मकोट रियासत की राजकुमारी से तीसरी शादी की। धनवंत कुंवेरी बाईजी साहिबा के नाम से जानी गई महारानी दयालु, निश्छल और दैवी गुणों वाली थीं।
दूसरी पत्नी बिल्लौरन रानी की मौत के सदमे में गमगईं महाराजा का नई रानी से मन नहीं मिल पाया। शादी के बाद हरि सिंह राजकुमार से महाराजा जरूर हो गए, लेकिन इस महारानी से भी महाराजा को कोई संतान प्राप्त नहीं हुई।
तीसरी रानी के दबाव में चौथी शादी
वंशबेल के लिए तीसरी पत्नी महारानी धनवंत कुंवेरी बाईजी साहिबा के दबाव में महाराजा हरि सिंह ने साल 1928 में कांगड़ा जिला के विजयपुर गांव की तारा देवी से शादी की, जो जम्मू-कश्मीर के इतिहास में महारानी तारा के नाम से जानी जाती है।
तारा देवी से पहले हरि सिंह की तीन शादियां हो चुकी थीं, जिनमें से पहली दो पत्नियों की मौत हो चुकी थीं और तीसरी पत्नी जिंदा थी। हरि सिंह अब भी दूसरी पत्नी बिल्लौरन रानी की मौत को नहीं भूल पाए थे।
चौथी रानी से पुत्र रत्न
चौथी शादी डोगरा राजवंश के लिए शुभ सिद्ध हुई। तारा देवी से महाराजा हरि सिंह को साल 1931 में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम कर्ण सिंह रखा गया।
कर्ण सिंह के जन्म के कुछ समय बाद ही महारानी धनवंत कुंवेरी बाईजी साहिबा की उपचार के दौरान मुंबई में मौत हो गई। शायद वे राजवंश में संतान को ही देखने के लिए जीवित थी।
महाराजा हरि सिंह अपने जीवन के आखरी पल जम्मू में अपने हरि निवास महल में बिताए। 26 अप्रैल 1961 को 65 साल की उम्र में मुंबई में उनकी मौत हो गई। उनकी इच्छा के उनकी राख को जम्मू लाकर तावी नदी में बहा दिया गया।
डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि महाराजा हरि सिंह अंत तक अपनी दूसरी पत्नी बिल्लौरन रानी की मौत के सदमे को भूल नहीं पाए और उसकी याद से महाराजा की आंखें भर आती थीं।
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