महात्मा गांधी ने 10 बार क्यों की थी शिमला की यात्रा?
विकास चौहान/ शिमला
ब्रिटिश हुकूमत के दौरान महात्मा गांधी 10 बार शिमला की यात्रा पर आए थे। पहली बार वे शिमला मदन मोहन मालवीय और लाला लाजपत राय के साथ 12 मई 1921 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड रीडिंग से मिलने आए थे। वे जाखू इलाके में स्थित लाला मोहनलाल के बंगले पर रुके थे। अब इस कुटीर को शांति कुटीर के नाम से जाना जाता है।
महात्मा गांधी क्लीवलैंड और चैडविक बिल्डिंग में भी रुके थे। 1931 में वे वायसराय लार्ड वेलिंग्टन से मिलने वाइसरीगल लॉज भी आए थे। इस भवन में अब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज चल रहा है। इमरसन से मिलने उसी साल बापू बल्लभ भाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू के साथ शिमला पहुंचे थे।
साल 1935 में शिमला प्रवास के दौरान महात्मा गांधी राजकुमारी अमृत कौर के संपर्क में आए। उस समय मैनौर विला राजकुमारी अमृत कौर की संपत्ति थी। अमृत कौर ने उन्हें मैनर विला में ठहरने को कहा। उसके बाद मैनर विला ही महात्मा गांधी का नियमित ठहराव बन गया।
शिमला में गांधी और मानव रिक्शा
आजादी से पहले शिमला में सिर्फ तीन ही गाड़ियां होती थी। ज्यादातर लोग मानव रिक्शा से ही सफर किया करते थे। महात्मा गांधी मानव रिक्शा के भी खिलाफ थे। इस रिक्शा को चलाने में पांच लोगों की जरूरत पड़ती थी। चार लोग रिक्शा को खींचते थे, जबकि एक आदमी रिक्शा के पीछे दौड़ा करता था। जब कोई एक व्यक्ति थक जाता, तो दौड़ रहा व्यक्ति उसकी जगह ले लेता था। महात्मा गांधी को जब स्वयं मानव रिक्शा से सफर करना पड़ा तो, वे बेहद निराश हुए थे।
गांधी जी की बकरी और शिमला
ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड वेवल के समय उनके एडीसी पीटर कोट्स ने गांधी जी की एक यात्रा के विवरण में लिखा है कि उन्हें गांधी जी की बकरी के लिए एक गैराज का इंतजाम करना पड़ा। जून 1945 में शिमला कान्फ्रेंस की शुरुआत की बात है। कोट्स ने लिखा- मुझे यहां कई काम करने हैं। इन अनगिनत कार्यों की सूची में मुझे गांधी जी के लिए निवास की व्यवस्था करनी है। एक निवास अलग से नेहरू के लिए चाहिए, क्योंकि वे किसी के साथ नहीं रहेंगे और एक गैराज का इंतजाम गांधी जी की बकरी के लिए भी।
गांधी मेहमान, गोडसे कैदी
पहले विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना ने बड़ी संख्या में आयरिश सैनिकों को बंदी बना कर डगशाई जेल में बंद करके कठोर यातनाएं दी। आयरिश सैनिकों ने जेल की प्रताडना के खिलाफ अनशन भी किया था। वर्ष 1920 को महात्मा गांधी उन्हीं सैनिकों से मिलने डगशाई आए थे। वे जिस सेल में रुके थे, आज भी उसके बाहर उनकी तस्वीर लगी हुई। उस सेल में एक कुर्सी, मेज, और चरखा भी रखा है।
गांधी की हत्या करने के बाद जब गोडसे पर केस चला, तो उसकी सुनवाई शिमला के कोर्ट में हुई। जब गोडसे को ट्रायल के लिए शिमला लाया गया था, तो उसे डगशाई में रखा गया। नाथूराम गोडसे डगशाई जेल का अंतिम कैदी था।
आजादी के बाद शिमला नहीं आ सके बापू
शिमला के रिज मैदान पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। प्रतिमा के नजदीक ही पट्टिका में महात्मा गांधी की शिमला यात्राओं का विवरण भी दिया गया है। गांधी ने आजादी से पहले दस बार शिमला की यात्रा की, लेकिन पट्टिका में दिए गए विवरण में साल 1939 की दो यात्राओं का जिक्र नहीं है। आजादी से पहले दस बार शिमला की यात्रा करने वाले गांधी देश आजाद होने के बाद एक भी बार शिमला की यात्रा नहीं कर सके थे।
गांधी की शिमला यात्राएं और मकसद
12 से 17 मई 1921:
वायसराय लॉर्ड रीडिंग से खिलाफत आंदोलन, पंजाब में अशांति, सविनय अवज्ञा और स्वराज पर चर्चा की। आर्य समाज मंदिर लोअर बाजार में महिला सम्मेलन में गए। इसके साथ ही उन्होंने एक ईदगाह में रैली को भी संबोधित किया था।
13 से 17 मई 1931 :
गांधी-इरविन समझौते से उत्पन्न समस्याओं पर वायसराय लॉर्ड विलिंग्डन, गृह सचिव एच. डब्ल्यू एमर्सन आदि से चर्चा।
15 से 22 जुलाई 1931 :
वायसराय लॉर्ड विलिंग्डन से लंदन में प्रस्तावित गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर चर्चा।
25 से 27 अगस्त 1931:
वायसराय लॉर्ड विलिंग्डन से भेंट, दूसरा समझौते पर हस्ताक्षर।
4 से 5 सितंबर 1939:
अंग्रेजी हुकूमत की ओर से दूसरे विश्वयुद्ध में हिंदुस्तान को शामिल करने पर वायसराय लिनलिथगो से बातचीत।
26 से 27 सितंबर 1939 :
वायसराय लिनलिथगो के निमंत्रण पर द्वितीय विश्वयुद्ध से उत्पन्न स्थिति पर चर्चा।
29 से 30 जून 1940:
वायसराय लिनलिथगो के निमंत्रण पर द्वितीय विश्वयुद्ध से उत्पन्न स्थिति पर फिर चर्चा।
27 से 30 सितंबर 1940:
वायसराय लिनलिथगो के निमंत्रण पर द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद भारत की आजादी पर मंत्रणा।
24 जून से 16 जुलाई 1945:
वायसराय लॉर्ड वेवल की ओर से बुलाई गई शिमला कॉन्फ्रेंस में वायसराय के आग्रह पर गांधी की बतौर सलाहकार शिरकत की थी।
2 मई से 14 मई 1946:
कैबिनेट मिशन के आमंत्रण पर शिमला आगमन।
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