मेजर सोमनाथ शर्मा : आर्मी मेसों में सुनाई जाती  प्रेरक कहानी

मेजर सोमनाथ शर्मा : आर्मी मेसों में सुनाई जाती  प्रेरक कहानी
नेशनल वार मेमोरियल के त्याग चक्र पर अंकित शहीद मेजर सोमदत्त शर्मा का नाम।

 

  • पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ के पिता रहे मेजर जनरल

  • एक भाई लेफ्टिनेंट जनरल, दूसरे भाई चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ बने

  • बहन आर्मी में मेडिकल अफसर, दो बहनोई इंडियन आर्मी के अफसर

विनोद भावुक/ धर्मशाला

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला के डाढ़ गांव से संबंध रखने वाले भारत के पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा के अदम्य साहस और दिलेरी के किस्सों के बारे में तो आप परिचित हैं।  क्या आपको पता है कि उनके पिता एक मेडिकल कोर में ऑफिसर थे, जो मेजर जनरल के पद पर पहुंचे थे।

मेजर सोमनाथ शर्मा के एक भाई सुरेंद्र नाथ शर्मा थे, जो भारतीय सेना के इंजीनियर इन चीफ बने और लेफ्टिनेंट जनरल के पद से सेवानिवृत हुए। उनके सबसे छोटे भाई विश्वनाथ आर्मी कोर में थे, जो साल 1988 में चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ बने।
जयंती पर शहीद मेजर सोमदत्त शर्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करते उनके भाई रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल सुरिंद्र नाथ शर्मा। इन्सेट में तीनों भाई।

मेजर सोमनाथ शर्मा के एक भाई सुरेंद्र नाथ शर्मा थे, जो भारतीय सेना के इंजीनियर इन चीफ बने और लेफ्टिनेंट जनरल के पद से सेवानिवृत हुए। उनके सबसे छोटे भाई विश्वनाथ आर्मी कोर में थे, जो साल 1988 में चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ बने।

मेजर सोमनाथ शर्मा की दो बहनों में एक मेजर कमला बतौर डॉक्टर भारतीय सेना में शामिल हुई और उन्होंने एक आर्मी ऑफिसर से शादी की जो बाद में मेजर जनरल बने। उनकी दूसरी बहन मनोरमा ने भी आर्मी के एक ब्रिगेडियर से शादी की थी।
मेजर सोमनाथ शर्मा की बहनें और बहनोई।

मेजर सोमनाथ शर्मा की दो बहनों में एक मेजर कमला बतौर डॉक्टर भारतीय सेना में शामिल हुई और उन्होंने एक आर्मी ऑफिसर से शादी की जो बाद में मेजर जनरल बने। उनकी दूसरी बहन मनोरमा ने भी आर्मी के एक ब्रिगेडियर से शादी की थी।

बर्मा युद्ध की सबसे खतरनाक लड़ाई

9 माह की ट्रेनिंग के बाद साल 1942 में सोमनाथ शर्मा कमीशंड ऑफिसर बन गए। महज 19 साल की उम्र में 8/19 हैदराबाद रेजिमेंट जिसे अब 4 कुमाऊं रेजिमेंट कहा जाता है, के सेकेंड लेफ्टिनेंट बने।
स्मारक : मेजर सोमनाथ का बलिदान हमेशा प्रेरित करता रहेगा।

मसूरी के हैंपटन कोर्ट कॉन्वेंट से स्कूली पढाई करने के बाद सोमनाथ शर्मा ने प्रिंस ऑफ़ वेल्ज इंडियन मिलिटरी कॉलेज जिसे अब राष्ट्रीय इंडियन मिलिटरी कॉलेज कहा जाता है, में दाखिले के लिए आवेदन किया और परीक्षा पास कर साल 1941 में इंडियन मिलिटरी अकादमी ज्वाइन की।

9 माह की ट्रेनिंग के बाद साल 1942 में सोमनाथ शर्मा कमीशंड ऑफिसर बन गए। महज 19 साल की उम्र में 8/19 हैदराबाद रेजिमेंट जिसे अब 4 कुमाऊं रेजिमेंट कहा जाता है, के सेकेंड लेफ्टिनेंट बने।

सैन्य ऑफिसर के तौर पर उन्होंने अराकान तट पर जापान के साथ बर्मा युद्ध की सबसे खतरनाक लड़ाई लड़ी। इसमें तीन भारतीय बटालियनों में ब्रिटिश कमांडो बटालियन के साथ भाग लिया।

इस लड़ाई में जापानी गोलाबारी के बीच एक घायल सैनिक को पीठ पर लाद कर सुरक्षित जगह पहुंचाने की सोमनाथ शर्मा की बहादुरी का किस्सा बहुत मशहूर है।

पंजाब- दिल्ली में शांति स्थापना

पत्रकार रचना विष्ठ अपनी शोधपरक पुस्तक शूरवीर परमवीर चक्र विजेताओं की कहानियां में लिखती हैं कि 4 कुमाऊं में बतौर मेजर एवं एडजुटेंट भारत लौटने पर सोमनाथ शर्मा को पंजाब के अंदरूनी हिस्सों में सुरक्षा की ड्यूटी दी गई।

साल 1947 की अशांति में उन्हें दिल्ली में पुलिस और प्रशासन की मदद के लिए तैनात किया गया। उन्हें जीप के फ्लाइंग स्क्वायड का इंचार्ज बनाया गया जो दिल्ली में फ़ैली असहंति को नियंत्रित करने में पुलिस की मदद करता था।

अशांति के माहौल में राशन की स्पलाई और सुरक्षित आवाजाही के लिए उन्होंने लाजवाब सांगठनिक क्षमता का परिचय दिया।

कलाई में फ्रेक्चर, श्रीनगर ने तैनाती

साल 1947 में पाकिस्तानी छपामारों में कश्मीर में अशांति फैला दी। भारत ने कश्मीर में सेना भेजने का फैसला किया। उस वक्त मेजर सोमनाथ शर्मा की बांई कलाई में फ्रेक्चर के कारण प्लास्टर चढ़ा हुआ था, लेकिन उन्होंने अपनी कंपनी के साथ जाना जरूरी समझा। उन्हें 4 कुमाऊं की दो कम्पनीज का जिम्मा सौंपा गया और श्रीनगर एयरफील्ड की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी।

पाकिस्तानी छापामारों का लश्कर बड़गांव में छोटी-छोटी टुकड़ियों में जमा हो रहा था, ताकि किसी को शक न हो। पकिस्तान सेना का एक मेजर उनकी अगुवाई कर रहा था।

उनका इरादा 1000 पर छापामारों के जमा होते कि बड़गांव पर हमला बोलने का था और फिर उसके बाद उसे फिर श्रीनगर एयरपोर्ट पर हमला कर इंडियन आर्मी की सप्लाई लाइन को काटकर जम्मू और कश्मीर को अपने कब्जे में लेने की योजना थी।

90 भारतीय फ़ौजी, 700 पाकिस्तानी छपामार

दोपहर दो बजे के करीब जब 4 कुमाऊं की ए कंपनी बडग़ांव छोड़ चुकी थी और पकिस्तान के 700 छपामार बड़गांव पहुँच चुके थे, पाकिस्तान ने हमला बोल दिया।

सोमनाथ शर्मा की कंपनी में 90 फ़ौजी थे जिन्हें 700 छपामारों से मुकाबला करना था।मेजर सोमनाथ शर्मा और उनके सैनिकों ने साहस और संकल्प से शुरुआती हमलों को नाकाम कर दिया।

पठान छापामारों की बड़ी तादाद को देखते हुए मेजर सोमनाथ शर्मा ने ब्रिगेड कमांडर से गोला- बारूद और अतिरिक्त सैनिक भेजने को कहा। उन्हें बताया गया की 1 पंजाब को उनकी मदद के लिए भेज दिया गया है।

सोमनाथ शर्मा मदद पहुँचने तक दुश्मन को उलझाए हुए रखना चाहते थे, ताकि वे कहीं एयरफील्ड तक पहुँच कर श्रीनगर पर कब्ज़ा न कर लें।

आख़िरी राउंड, आख़िरी सिपाही संग लड़ने का फैसला

मेजर सोमनाथ शर्मा में अपने सिपाहियों को आखिरी सांस तक लड़ने का हुक्म दिया। जब एक एक कर भारतीय सैनिक मारे जाने लगे तो वे खुद प्लास्टर लगे हाथ से मशीनगन लोड कर अपने सिपाहियों को देने लगे।

उन्होंने पांच घंटों तक दुश्मन को उलझाए रखा, लेकिन जब गोला- बारूद खत्म होने लगा तो उन्होंने इसकी सूचना ब्रिगेड मुख्यालय को दी।

मुख्यालय से उन्हें पीछे हटने के लिए कहा गया, तो मेजर सोमनाथ शर्मा ने कहा कि मैं एक कदम भी पीछे नहीं हटुंगा और आख़िरी राउंड खत्म होने और आख़िरी सिपाही के मारे जाने तक लडूंगा।

मोर्टार शेल के धमाके में शहादत

कुछ ही मिनटों बाद जब मेजर सोमनाथ शर्मा ब्रेन गनर की बगल में उसकी गन लोड कर रहे थे, तभी एक खुले हुए बारूद के बक्से के अंदर एक मोर्टार शेल आकर गिरा और जोरदार धमाका हुआ।

इस धमाके में मेजर सोमनाथ, उनके सहायक, मशीनगन चलाने वाले सिपाही और जूनियर कमांडिंग ऑफिसर को उड़ा दिया।

अपने मेजर की शहादत के बावजूद नॉन कमीशंड ऑफिसर्स ने लड़ते रहने का फैसला किया और दुश्मनों को एक घंटे तक उलझाए रखा।

डी कंपनी के लांस नायक बलवंत सिंह और तीन सिपाहियों ने मोर्चा संभाले रखा और बाकि सैनिकों को पहाड़ी के पीछे से सुरक्षित निकल दिया। वे चारों मारे गए लेकिन अपने साथियों को बचाने में कामयाब रहे।

आजाद भारत के पहले परमवीर

5 नवंबर की भारतीय सेना ने हमला कर बड़गांव पर कब्ज़ा कर लिया। जब लड़ाई खत्म हुई तो 300 हमलावर ढेर हो चुके थे। बड़गांव की लड़ाई में मेजर सोमनाथ शर्मा, सूबेदार प्रेम सिंह मेहता और बीस सिपाहियों को खोया और 26 अन्य सिपाही जख्मी हुए।

मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरान्त उनकी बहादुरी और बेहतर नेतृत्व के लिए आजाद भारत के पहले परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

पहाड़ की यादों में गहरे बसे शहीद

मेजर सोमनाथ शर्मा की प्रेरक कहानी आर्मी मेसों में सुनाई जाती है। रानीखेत में कुमाऊं रेजिमेंटल सेंटर के ट्रेनिंग ग्राउंड का नाम उनके नाम पर रखा गया है।

यहां लाल पत्थर से बना एक बड़ा सा गेट सोमनाथ द्वार कहलाता है। लाल पत्थर से बना एक बड़ा सा गेट सोमनाथ द्वार कहलाता है। पालमपुर में मेजर सोमनाथ शर्मा की यादगार स्थापित की गई है।

इस विषय से संबन्धित अन्य पोस्टें – 

  1. कारगिल विजय दिवस : शहीद के पिता को पाकिस्तानी ने भेजी कुरान
  2. विक्रम बतरा : पिता की जुबानी, बेटे की वीरता की कहानी 

himachalbusiness1101

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *