विक्रम बतरा : पिता की जुबानी, बेटे की वीरता की कहानी
विनोद भावुक/ पालमपुर
कारगिल विजय दिवस पर परमवीर चक्र विजेता शहीद कैप्टन विक्रम बतरा के बारे में उनके पिता गिरधारी लाल बतरा की जुबानी। विक्रम बतरा को शेरशाह के नाम से संबोधित किया जाता था। उनके व्यक्तित्व की वे खूबियां, जिनके बारे में आप कम ही जानते हैं।
शहीद विक्रम बतरा के पिता गिरधारी लाल बतरा ने अपनी पुस्तक ‘कारगिल के परमवीर – विक्रम बतरा’ में अपने बेटे के बचपन से लेकर शहादत तक के तमाम प्रसंगों को सचित्र मार्मिक ढंग से पेश किया है।
सलेक्शन के बावजूद छोड़ी मर्चेन्ट नेवी
विक्रम बतरा ने हांगकांग की एक शिपिंग कंपनी में मर्चेंट नेवी की नौकरी के लिए मुंबई में लिखित परीक्षा और साक्षात्कार दिए थे। उन्हें जॉब के लिए चुन लिया गया था। प्रशिक्षण के लिए वे चेन्नई जानेवाले थे। टिकट भी बुक हो गई थी, लेकिन उन्होंने अपना मन बदल दिया।
मर्चेंट नेवी में जाने का विचार उन्होंने छोड़ ही दिया और अपनी मां से कहा, ‘जिंदगी में पैसा ही सबकुछ नहीं है। मुझे जिंदगी में कुछ बड़ा करना है, कुछ अलग करके दिखाना है, जिससे मेरे देश का गौरव बढ़े।’ शहादत के बाद इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने अपने एक विज्ञापन में विक्रम को श्रद्धांजलि अर्पित की थी।
बचपन में मार डाला था जहरीला सांप
गिरधारी लाल बतरा लिखते हैं, ‘बचपन से ही विक्रम बतरा जरूरतमंदों की सहायता करना अपना कर्तव्य समझता था। एक दिन उसने एक जहरीले सांप को मार डाला था, जिसे देखकर उनके होश उड़ गए थे।
बहादुरी और निर्भीकता से लबालब विक्रम बतरा ने अपने स्कूल के दिनों में एक बार एक लड़की को स्कूल बस से नीचे गिरने से बचाया था और मरहम-पट्टी के लिए अस्पताल ले गया था। विक्रम ने घर आकर पूरी घटना के बारे में सभी को बताया था। विक्रम ने अपने नए नए कॉलेज के आए एक लेक्चरर के लिए एलपीजी गैस सिलेंडर का इंतजाम कर दिया था।
खिलाड़ी के तौर पर बनाई पहचान
गिरधारी लाल बतरा लिखते हैं, ‘जन्मजात अदम्य साहस से भरपूर विक्रम बतरा अपने स्कूल के दिनों में पालमपुर स्केटिंग क्लब का सबसे अच्छा हुआ करता था। मनाली में कराटे के लिए आयोजित एक राष्ट्रीय स्तर के कैंप में भी उन्होंने हिस्सा लिया था। उन्होंने स्क्वॉश भी सीखा था। अकसर कड़ाके की सर्दी में विक्रम अपने मित्रों के साथ धौलाधर पर सैर के लिए जाया करता था।‘
दिल्ली में यूथ पार्लियामेंटरी कंपीटीशन के दौरान उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपने स्कूल का नेतृत्व भी किया था। टेबल टेनिस, कराटे में वह अपने संस्थान का प्रतिनिधित्व किया करता था।
टेबल टेनिस में तो विक्रम बतरा पालमपुर की पहचान बन गया था। पालमपुर रोटरी क्लब ने उसे सम्मानित भी किया था। साल 1990 में उसने ऑल इंडिया केवीएस. नेशनल्स में अपने स्कूल का प्रतिनिधित्व किया था।
सभी को आकर्षित करने का हुनर
गिरधारी लाल बतरा लिखते हैं, ‘विक्रम बतरा सभी को आकर्षित कर लेता था। होस्टल के मेस में काम करनेवाले लड़कों के साथ भी वह मित्रवत व्यवहार रखता था और अकसर उन्हें अपनी मोटरबाइक चलाने के लिए दे दिया करते था। मेस के लड़के भी बदले में उनकी जरूरत के अनुसार उनके लिए लंच और टिफिन का इंतजाम कर दिया करते थे।’
एक बार वे शाम4 बजे विक्रम से मिलने होस्टल गए तो उसने तुरंत आमलेट वाले नूडल्स की एक प्लेट और एक कप चाय मँगवा ली। मेस बंद होने के समय लंच का इंतजाम मेस के लड़कों के साथ उनकी दोस्ती का नतीजा था।
शहादत के बाद लोकप्रियता
शहादत के बाद विक्रम की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इंडिया टुडे पत्रिका ने अपने एक संस्करण में ऑल इंडिया स्तर के एक कंटेस्ट में चार अन्य महान व्यक्तियों इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी (ऑपरेशन शक्ति के लिए) और राकेश शर्मा (अंतरिक्ष यात्री) के नाम के साथ विक्रम का नाम भी शामिल किया था।
इसमें पाठकों को 1975 के बाद से लेकर अब तक देश को गौरवान्वित करनेवाली इन हस्तियों को वरीयता क्रम में रखने के लिए कहा गया था।
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