विधानसभा भवन शिमला : विट्ठलभाई की गरिमा, नेहरू की हुंकार
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अंग्रेजों का बनाया हुआ काउंसिल चैंबर, बर्मा सरकार की दी हुई कुर्सी
विनोद भावुक/ शिमला
शिमला के जिस ब्रिटिशकालीन काउंसिल चैंबर में हिमाचल प्रदेश विधानसभा भवन स्थित है, उसका अतीत और वर्तमान गर्व करने काबिल है। विधानसभा भवन शिमला का निर्माण 1920 में ‘कैनेडी हाउस’ के पास शुरू हुआ था, जिसे शिमला के संस्थापक मेजर कैनेडी ने बनाया था।
कौंसिल चैंबर जिसमें विधानसभा भवन शिमला है, अंग्रेजों द्वारा बनाई गई आखिरी महत्वपूर्ण इमारतों में से एक थी। इस पर लगभग दस लाख रुपये की लागत आई थी। ऐतिहासिक काउंसिल चैंबर ने भाग्य के कई उतार-चढ़ाव देखे हैं और कई युगांतरकारी घटनाओं का चश्मदीद गवाह रहा है।
ऐतिहासिक काउंसिल चैंबर कभी केंद्रीय विधानसभा भवन रहा, फिर पंजाब विधानसभा भवन और वर्तमान में हिमाचल प्रदेश विधानसभा भवन है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा की वेबसाइट पर इस ब्रिटिशकालीन भवन के अतीत से जुड़ी यादों को सहेज कर रखा गया है।
राजधानी के चलते बना भवन
अंग्रेजों को इस इमारत की आवश्यकता इसलिए पड़ी, क्योंकि अंग्रेजों ने दिल्ली की चिलचिलाती गर्मी से खुद को बचाने के लिए शिमला को शाही सरकार की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में चुना। इसलिए केंद्रीय असेंबली को एक उपयुक्त आवास प्रदान किया जाना था। 27 अगस्त, 1925 को भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड रीडिंग ने भवन का निर्माण पूरा कर इसका उद्घाटन किया था।
145 सेंट्रल असेंबली सदस्यों के लिए व्यवस्था
उस समय के मुख्य हॉल में 145 सेंट्रल असेंबली सदस्यों (104 निर्वाचित और 41 मनोनीत) के लिए सीटें उपलब्ध थीं, जिसमें प्रेजिडेंट (अध्यक्ष को तब प्रेजिडेंट कहा जाता था) की डायस वायसराय (जिसे अब गवर्नर का बॉक्स कहा जाता है) के बॉक्स के बाईं ओर पार्श्व में और दाईं ओर अधिकारियों के बैठने के लिए बॉक्स बनाया गया था।
कहा जाता है कि प्रेजिडेंट के लिए कुर्सी बर्मा सरकार द्वारा भेंट की गई थी। यह एक सिंहासननुमा कुर्सी है, जिसकी पीठ ऊंची होती है, किनारों पर दो स्तंभ होते हैं और शीर्ष पर फूलों की तरह सजावट होती है। यह प्रसिद्ध बर्मा सागौन की लकड़ी से बनी है और अभी भी हिमाचल प्रदेश विधानसभा शिमला में उपयोग में है।
हालांकि, स्वतंत्रता के बाद शाही साम्राज्य के प्रतीक के रूप में सिंहासननुमा कुर्सी के शीर्ष पर स्थित मुकुट को ‘अशोक चक्र’ से बदल दिया गया था।
पहले विधानसभा अध्यक्ष श्री जयवंत राम
स्वतंत्रता के बाद विभाजन के समय पंजाब सरकार को शिमला स्थानांतरित कर दिया गया और पंजाब विधानसभा ने काउंसिल चैंबर भवन में अपनी बैठकें कीं। जब पंजाब विधानसभा को चंडीगढ़ में स्थानांतरित कर दिया गया, तो हिमाचल की ‘सी’ स्टेट असेंबली को काउंसिल चैंबर में अपनी बैठकें करने का गौरव प्राप्त हुआ।
इससे पहले ‘सी’ स्टेट असेंबली की बैठकें वाइस-रीगल लॉज (जिसे बाद में ‘राष्ट्रपति निवास’ नाम दिया गया) में आयोजित होती थीं। श्री जयवंत राम विधानसभा भवन शिमला की इस कुर्सी पर बैठने वाले पहले विधानसभा अध्यक्ष थे।
आगजनी के चलते सचिवालय स्थानांतरित
31 अक्टूबर, 1956 को राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट के बाद सरकार ने राज्य की विधानसभा को भंग कर दिया। साल 1957 के मध्य में इस भवन में आग लगने पर सचिवालय को ‘हिमाचल धाम’ (जिस भवन में सचिवालय स्थित था) में स्थानांतरित कर दिया गया।
इस अवधि के दौरान मुख्य कक्ष को अस्थायी केबिन जैसी संरचनाओं में परिवर्तित कर दिया गया था। इसे कुछ वर्षों के लिए ऑल इंडिया रेडियो इमारत के निचले हिस्से में रखा गया था।
1 जुलाई, 1963 को जब विधानसभा को बहाल किया तो काउंसिल चैंबर भवन परिसर का अंततः मूल स्थिति में जीर्णोद्धार किया गया।
आयताकार से यू आकार हुआ हॉल
विधानसभा भवन शिमला के जीर्णोद्धार के बाद प्रथम सत्र 1 अक्टूबर, 1963 से काउंसिल चैंबर में आयोजित किया गया। काउंसिल चैंबर का सर्वप्रथम साल 1963 में जीर्णोद्धार किया गया था।
साल 1988 में जब राज्य विधानसभा की रजत जयंती मनाई गई तो विधानसभा भवन शिमला के सदन का पूरा फर्नीचर बदल दिया गया। भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए 72 सदस्यों के बैठने की क्षमता वाले हॉल के आकार को आयताकार से यू आकार में बदल दिया गया है।
विठ्ठलभाई पटेल के चुनाव की गवाह
काउंसिल चैंबर ने वायसराय की भव्यता तो केंद्रीय विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) के पहले निर्वाचित अध्यक्ष विट्ठलभाई पटेल की गरिमा, अनुग्रह और गौरव को देखा है।
वास्तव में काउंसिल चैंबर में हुई पहली ऐतिहासिक घटना भारत अधिनियम,1919 के मुताबिक ब्रिटिश संसद की संयुक्त चयन समिति की सिफारिशों के अनुसार पहले गैर-आधिकारिक उम्मीदवार के रूप में अध्यक्ष के लिए विट्ठलभाई पटेल का चुनाव था। विठ्ठलभाई पटेल ने साल 1925 से साल 1930 तक पद संभाला था।
गैर-दलीय अध्यक्ष की पैरवी
विठ्ठलभाई पटेल को सच में मुखर होने और एक स्वतंत्र/निष्पक्ष कुर्सी की नींव रखने के लिए जाना जाता है। उन्होंने इस सदन में घोषणा की थी कि सभा में इस आसन पर बैठने वाला व्यक्ति सभी संदेहों से परे होना चाहिए अथवा अनजाने में भी किसी पार्टी या सरकार के पक्ष में पक्षपाती नहीं होना चाहिए।
काउंसिल चैंबर में ही उन्होंने एक गैर-दलीय अध्यक्ष की आवश्यकता पर जोर दिया और अध्यक्ष पद के लिए अपने पहले चुनाव पर उन्होंने कहा था, ‘इस क्षण से, मैं एक पार्टी का आदमी नहीं रहा। मैं किसी पार्टी से संबंधित नहीं हूं। मैं सभी पार्टियों से संबंधित हूं ..।.’
आजाद चुनाव लड़े थे पटेल
स्पीकर के कार्यालय की स्वतंत्रता को मजबूत करने की दृष्टि से विठ्ठलभाई पटेल ने केंद्रीय विधानमण्डल के लिए पुन: निर्वाचन के लिए किसी भी दल के टिकट को स्वीकार नहीं किया।
वह एक स्वतंत्र सदस्य के रूप में चुनाव लड़े, जीते और जल्द ही अध्यक्ष पद के लिए सर्वसम्मति से फिर से चुने गए। दुर्भाग्य से एक गैर-दलीय लोकसभा अध्यक्ष की परिपाटी का देश के राजनीतिक उत्तराधिकारियों ने पालन किया और न ही देश के सत्ताधारी दलों के नेतृत्व ने इसे प्रोत्साहित किया।
विधानसभा सचिवालय के लिए प्रस्ताव
काउंसिल चैंबर में ही विठ्ठलभाई पटेल ने स्वयं अध्यक्ष के अधीन एक अलग विधानसभा विभाग के लिए केंद्रीय विधानमंडल द्वारा एक प्रस्ताव पारित करवाया था।
उन्होंने कहा था,’ मैं विधानसभा के प्रति उत्तरदायी हूं और किसी अन्य प्राधिकरण के लिए नहीं।‘ उनके प्रयासों के कारण ही आज प्रत्येक विधानमंडल के पास एक अलग और कम या ज्यादा स्वतंत्र सचिवालय है। इस संबंध में बाद में संविधान के अनुच्छेद 98(1) और अनुच्छेद 187(1) के तहत प्रावधान भी किए गए थे।
मोतीलाल नेहरू ने सरकार को याद दिलवाया संकल्प
काउंसिल चैंबर केंद्रीय विधानमंडल द्वारा पारित किए गए विभिन्न महत्वपूर्ण प्रस्तावों का भी साक्षी रहा है। इनमें से एक संकल्प द्वारा पं. मोतीलाल नेहरू ने ब्रिटिश सरकार को याद दिलाया कि भारतीयों का अंतिम लक्ष्य स्वतंत्रता है।
संकल्प की सामग्री इस प्रकार है, ‘भारत स्वतंत्रता जीतने के लिए दृढ़ संकल्पित है। तरीके, उपाय और समय या तो आप एक उचित भावना में निर्धारित करें अन्यथा वह स्वयं निर्धारित करेगा।’
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