शिव मंदिर बैजनाथ : पत्थरों पर नक्काशी को लेकर वर्ल्ड फेस्म
विनोद भावुक / बैजनाथ
शिव मंदिर बैजनाथ आस्था का केंद्र होने के साथ एक पुरातात्त्विक महत्व का राष्ट्रीय स्मारक है। इस मंदिर का बाहरी आकार शिव मंदिर बजौरा से भी आकर्षक है। प्रतिहार शैली का यह मंदिर अपनी बेजोड़ कलाकृतियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
एक स्मारक के रूप में शिव मंदिर बैजनाथ का उल्लेख अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरातत्व विशेषज्ञो और कला इतिहासकारों फर्गुसन, सर ऑरल स्टेन, फ्लीट, कनिंघम ने अपने लेखन में किया है।
बेशक देवभूमि के कई मंदिरों को आक्रांताओं ने लूटा, लेकिन शिव मंदिर बैजनाथ तक कोई आक्रमणकारी नहीं पहुंच पाया। 1905 के कांगड़ा के विनाशकारी भूकम्प में भी यह मंदिर अपनी शान से खड़ा रहा। इस मंदिर का रखरखाव भारत सरकार के केन्द्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है।
शिव को समर्पित किए दस सिर
शिव मंदिर बैजनाथ को लेकर किवदंति है कि यहां लंकापति रावण ने तपस्या की थी और अपने दस शीश शिव को समर्पित किए थे। यह भी कहा जाता है कि महाभारत के समय जब पाण्डवों को लाक्षागृह में जलाने का षड्यंत्र रचा गया तो वे सुरंग के रास्ते यहां आ निकले और मंदिर निर्माण किया।
धौलाधार के आंचल में, बिनवा नदी के किनारे
धौलाधार के आंचल में बिनवा नदी के किनारे स्थित अद्वितीय शिव मंदिर बैजनाथ उत्तर भारत में वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। भव्य मंदिर के चारों ओर किले की भांति दीवार बनी हुई है।
मुख्य द्वार पश्चिम की ओर मुंह किए है। मंदिर के भीतर जाने के लिए प्रवेश द्वार वर्तमान बाजार की ओर है। एक मार्ग सीढ़ियों से पीछे निकलता है, जहाँ एक तालाब है, जो अब सूख गया है।
शिव मंदिर बैजनाथ के मुख्य कक्ष में दो शिलालेख
शिव मंदिर बैजनाथ के गर्भगृह में शिवलिंग है। बाहरी दीवारों पर अनेकों चित्रों की नक्काशी हुई है। मंदिर के मुख्य कक्ष में शिला पर दो लंबे शिलालेख हैं। ये शिलालेख शारदा लिपि में संस्कृत और टांकरी लिपि में हैं।
शिव मंदिर बैजनाथ की दीवारों पर भगवान गणेश, भगवान हरिहर, भगवान शिव और देवी पार्वती की शादी और भगवान शिव का असुर को हराने की मूर्तियां बनी हुईं हैं। इनमें से कुछ मुर्तियां एवं प्रतिमाएं वर्तमान मंदिर से पहले बनी हुई हैं।
राजा का गढ़ रहा बैजनाथ !
शिव मंदिर बैजनाथ की स्थिति व दीवारों से प्रतीत होता है कि यह परिसर आगे तक फैला हुआ था। बैजनाथ शिव मंदिर के निर्माण काल के बारे में इतिहासकारों तथा पुरातत्त्ववेत्ताओं में मतभेद हैं।
इतिहासकार कहते हैं, बारहवीं शतान्दी में यह स्थान राजा का गढ़ था और मंदिर के साथ एक दुर्ग था। उस दौर में यह स्थान निश्चित रूप से सामरिक महत्त्व का रहा होगा। आज भी मंदिर की दीवार तथा पूरा क्षेत्र किले का आभास देता है।
स्थानीय व्यापारियों ने बनवाया मंदिर
शिव मंदिर बैजनाथ में उपलब्ध शिलालेखों के अनुसार मंदिर का निर्माण यहां के स्थानीय व्यापारियों ने किया। नागर शैली के इस मंदिर का निर्माण 1204 ईस्वी में अहुका और मन्युका नामक दो स्थानीय व्यापारियों ने करवाया था।
यह चिकित्सकों के देवता के रूप में भगवान शिव को समर्पित मंदिर है। शिलालेखों के अनुसार वर्तमान बैजनाथ मंदिर के निर्माण से पूर्व इसी स्थान पर भगवान शिव के पुराने मंदिर का अस्तित्व था।
जालन्धर या त्रिगर्त के अधीन बैजनाथ
जब शिव मंदिर बैजनाथ बनाया गया, तब यहां का राजा लक्ष्मण चन्द्र था। उनके पूर्वजों की आठ पीढ़ियों ने यहां शासन किया जो जालन्धर या त्रिगर्त के अधीन थे।
शिलालेख में त्रिगर्त के राजा का नाम जयचन्द, जयपाल चन्द ही था, जिसने नौवीं शताब्दी में राज्य किया। हचिसन व वोगल ने ‘हिस्ट्री ऑफ पंजाब हिल्ज स्टेट्स’ में इसे जयसिंह चन्द माना है, जो पृथ्वीसिंह से पूर्व तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हुआ।
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