सबसे पुराना रोप-वे : दुनिया का इकलौता हौलेज सिस्टम

विनोद भावुक/ जोगिंद्रनगर
मंडी जिला के जोगिंद्रनगर उपमंडल मुख्यालय से मात्र सात किलोमीटर की दूरी पर विन्च कैंप स्थित है। विन्च कैंप एक खूबसूरत ट्रेकिंग डेस्टिनेशन है। यहां पहुंचने के लिए देश की सबसे पुरानी रोप-वे की सुविधा है। रोप-वे से जोगिंद्रनगर से यहां एक घंटे में पहुंचा जा सकता है। यह रोप-वे हौलेज सिस्टम से चलता है। हौलेज सिस्टम रस्सियों की सहायता से चलने का ढुलाई मार्ग होता है।
जोगिंद्रनगर में स्थापित हौलेज सिस्टम संभवत: दुनिया का एकमात्र सिस्टम है। 4150 फीट की ऊंचाई पर स्थित बफर स्टॉप के बाद इस हौलेज सिस्टम में कई ठहराव स्थल है। इस हौलेज सिस्टम का अंतिम ठहराव स्थल बरोट है।
हौलेज सिस्टम रोप वे से यह स्थान जोगिंद्रनगर से नौ किलोमीटर दूर है, जबकि जोगिंद्रनगर से बरोट की सडक़ की दूरी लगभग 40 किलोमीटर है। हौलेज सिस्टम के चलते पर्यटन के दृष्टिगत अहम स्थान होने के बावजूद यह स्थान पर्यटकों की नजरों से ओझल ही रहा है।
हैडगियर से जीरो प्वाइंट तक सफर
विन्च कैंप लगभग 8800 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। पहाड़ी की दूसरी ओर हौलेज सिस्टम का स्टेशन स्थित है, जिसे हैडगियर के नाम से जाना जाता है। यह स्थान 8300 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। हैड गेयर से हौलेज सिस्टम का रास्ता नीचे खड़ी ढलान से होकर जाता है।
इस स्थान को खूनी घाटी के नाम से जाना जाता है। अगला आने वाला स्थान कठेरू है, जो समुद्र तल से लगभग 7000 की फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यात्रा करने के लिए ट्रैक स्थल जीरो प्वाइंट समुद्र तल से 6050 फुट की ऊंचाई पर स्थित है।
रोप वे से चढ़ाई के पांच चरण
हौलेज सिस्टम से पॉवर हॉउस (4150 फुट) से ऑडिट जक्शन ( 6000 फुट) तक पहला चरण शामिल है, जिसकी 5 किमी लंबाई की लंबाई है और इस चरण में 5 से 35 डिग्री तक चढ़ाई है। ऑडिट जंक्शन से विन्च कैंप (8000 फुट) तक दूसरा चरण आता है जिसकी लंबाई 1.5 किमी है और इस चरण में 10 से 35 डिग्री तक की चढ़ाई है।
विन्च कैंप से पहाड़ के दूसरी ओर हेड गियर (8300 फुट) तक तीसरे चरण का 1.5 किमी का पैदल सफर, हेड गियर से कथेरु तक चौथे चरण की 48 डिग्री तक की उतराई और कथेरु से जीरो पॉइंट (6050 फुट तक बरोट) तक अंतिम चरण की उतराई है।
शिकार खेलते आया आइडिया
वर्ष 1932 में शानन विद्युत परियोजना बनकर तैयार हुई। यह भारतवर्ष की प्रथम वृहद् जल विद्युत परियोजना है और विश्व में प्राचीन परियोजनाओं में से एक है। इसका श्रेय पंजाब संयुक्त प्रांत के निर्माण विभाग में कार्यरत इंजीनियर कर्नल बेसिल कांडन बैट्टी को जाता है।
बताया जाता है कि कर्नल बैट्टी मंडी राजा जोगिंद्र सेन के बुलावे पर शिकार के लिए बरोट घाटी पहुंचे। चूंकि वे इंजीनियर थे, इसलिए 6050 फुट की ऊंचाई और ऊहल नदी को देखकर उन्हें जल विद्युत परियोजना की संभावना नजर आई। परियोजना के लिए ढुलाई के दृष्टिगत ही यह हौलेज सिस्टम बनाया गया था।
इंगलैंड की कंपनी की मंजूरी
कर्नल बैट्टी नौकरी से त्यागपत्र देकर इस परियोजना को साकार करने में जुट गए। कर्नल बैट्टी ने परियोजना की प्राथमिक रिपोर्ट ब्रिटिश सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजी, लेकिन नामंजूर कर दी गई।
बैट्टी ने रिपोर्ट ब्रिटेन की एक प्राइवेट कंपनी को भेजी, जिसने अपनी मंजूरी दे दी। कर्नल बैट्टी पूरे मनोयोग से परियोजना के विस्तृत कार्यान्वयन में लग गए। परियोजना का कार्य सन 1925 में शुरू हुआ और 12 वर्ष के बाद 1932 में पूर्ण हुआ। हौलेज सिस्टम का निर्माण भी इस परियोजना का एक अहम हिस्सा था।
लोकार्पण के दिन कर्नल बैट्टी की मौत
इस बिजली परियोजना की महत्वपूर्ण बात यह है कि उन दिनों लाहौर बड़ा शहर था, जहां बिजली ले जाई गई थी। परियोजना का दुखद पक्ष कि सन 1932 में जिस दिन परियोजना का उद्घाटन होना था, उसी दिन इसके नायक कर्नल बैट्टी का सडक़ हादसे में मौत हो गई।
1982 में परियोजना की स्वर्ण जयंती मनाई गई। परियोजना के नायक के प्रति श्रद्धा स्वरूप विश्ववियात चित्रकार शोभा सिंह ने कर्नल बैट्टी की पेंटिंग बनाई, जो जोगिंद्रनगर पॉवर हाउसमें रेजिडेंट इंजीनियर के ऑफिस में लगी है। हौलेज सिस्टम से भी कर्नल बैट्टी की कई यादें जुड़ी हैं।
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