अंदरेटा में शोभा सिंह की मेहमान अमृता प्रीतम 

अंदरेटा में शोभा सिंह की मेहमान अमृता प्रीतम 
अंदरेटा आर्ट गैलरी में सरदार शोभा सिंह और अमृता प्रीतम। इन्सेट में अंदरेटा में मोहिन्दर सिंह रंधावा, नोरा रिचर्ड और अमृता प्रीतम।

विनोद भावुक/ धर्मशाला

दुनिया के नक्शे पर पंजाबी साहित्य की अलग पहचान बनाने वाली अमृता प्रीतम बचपन से ही महान चित्रकार सरदार शोभा सिंह के सृजन से प्रभावित थीं। कभी अमृता प्रीतम लाहौर के अनारकली बाजार में स्थित उनके स्टूडियो में अपने पिता के साथ जाती थी और उन्हें चाचा जी कहकर बुलाती थी।

देश के बंटटवारे के बाद शोभा सिंह ने अंदरेटा में अपना स्टूडियो बनाया तो अमृता प्रीतम यहां भी उनसे मिलने आती रही और इस मशहूर लेखिका ने शोभा सिंह और उनकी कला के बारे में अपने आलेखों में विस्तार से लिखा।

सृजन की दुनिया के दो महान फनकारों की मुलाकातों का जो सिलसिला लाहौर से शुरू हुआ था, वह कांगड़ा के अंदरेटा तक आते- आते और भी गहरा हो गया था।

लाहौर में एक छोटी बच्ची की जिस उभरते हुए चित्रकार से मुलाक़ातें हुई थीं, वे अब संत चित्रकार के तौर पर जाने जाते थे और अमृता प्रीतम भी अब पंजाबी की विख्यात लेखिका के तौर पर स्थापित हो चुकी थीं।

अमृता के संस्मरण में अंद्रेटे के दस दिन

हिमाचली साहित्य की संवाहक पत्रिका ‘हिमप्रस्थ’ ने महान चित्रकार शोभा सिंह की जन्म शताब्दी पर नवंबर 2001 में प्रकाशित विशेष अंक और अमृता प्रीतम की जन्म शताब्दी पर सितंबर 2021 के विशेष अंक में सरदार शोभा सिंह और अंदरेटा को लेकर अमृता प्रीतम का एक आलेख और एक संस्मरण प्रकाशित किए हैं।
अंदरेटा आर्ट गैलरी में सरदार शोभा सिंह के साथ अमृता प्रीतम।

हिमाचली साहित्य की संवाहक पत्रिका ‘हिमप्रस्थ’ ने महान चित्रकार शोभा सिंह की जन्म शताब्दी पर नवंबर 2001 में प्रकाशित विशेष अंक और अमृता प्रीतम की जन्म शताब्दी पर सितंबर 2021 के विशेष अंक में सरदार शोभा सिंह और अंदरेटा को लेकर अमृता प्रीतम का एक आलेख और एक संस्मरण प्रकाशित किए हैं।

आलेख और संस्मरण इस बात की गवाही देते हैं कि अपने- अपने हुनर में माहिर अपने- अपने दौर के दो महान सृजक सृजन की एक खास डोर से बंधे थे। अमृता प्रीतम का ‘अंद्रेटे के वोह दस दिन’ एक मशहूर संस्मरण है, जो चित्रकार और लेखिका की आत्मीयता का बोलता दस्तावेज़ है। इस संस्मरण के चंद प्रसंग आपके लिए।

शोभा सिंह के पांच प्यारों का जिक्र

संस्मरण की शुरुआत अमृता प्रीतम कुछ इस अंदाज में करती है, ‘दिल्ली का शोर गुल सिर्फ मेरे कानों में ही नहीं गूंजता था, मेरे सिर की सारी नाड़ियों में दिखता था। मुझे अन्दरेटे की खामोशी के सिवाय अन्य कोई उपयुक्त स्थान नहीं दिखता था। कोई दस दिन के लिए मैं शोभा सिंह जी की मेहमान रही।

शोभा सिंह को पढ़ने का कितना शौक था और कौन से लेखक उनके पसंदीदा थे, इस की झलक संस्मरण के शुरू में ही मिल जाती है। वे लिखती हैं, ‘पहले ही दिन जब स्टूडियो में चाय आई, प्याले चार थे- सरदार जी, उनकी पत्नी, इन्दरजीत (चित्रकार) और मेरे लिए।

पर चाय के गिर्द हम सात जन बैठे थे -कृष्णमूर्ति, एमरसन, खलील जिब्रान, सोभा सिंह जी के दायें-बायें बैठे हुए थे। वे तीनों ही नहीं दूसरे दिन उनका चौथा साथी थोरो भी आा गया और तीसरे दिन वाल्ट विटमैन भी। ये पांचों सोभा सिंह के पांच प्यारे थे।’

सरदार जी का संत सा स्वरूप

अपने संस्मरण में एक जगह अमृता प्रीतम ने लिखा है,’सघन वृक्षों में जब सोभा सिंह जी बैठे हुए थे, तो मैं उन्हें वन देवता कहती थी। आज उन पहाड़नों को देखा, जो उन्हें देवता की तरह पूजती हैं। आंखों के आगे आंचल लिए उनके पैर पर माथा नवाती है। वे पैरों को पीछे खीचते रह जाते हैं।

अमृता आगे लिखती हैं, ‘वे पहाड़िने शायद यह सोचती है कि इस इतने महान कलाकार ने बड़े-बड़े शहरों से मुंह मोड़कर हमारे कच्चे घरों का पड़ोस स्वीकारा है तो हमारा इनके साथ सम्बन्ध बड़ा है, और यह सम्बन्ध दिलों के आदर अतिरिक्त कैसे प्रकट किया जा सकता है?’

अन्दरेटे की जबरदस्त पकड़

अमृता प्रीतम ने एक जगह लिखा है, ‘डलहौजी का खजियार मुझे पुकारता रहा था, कुल्लू की वादी ने भी आवाज दी, पर अन्दरेटे की पकड़ जबरदस्त थी। एक दिन बैजनाथ जाने के सिवाय मैं और कही नहीं गई।

वे शोभा सिंह के साथ धर्मशाला के दो दिन के प्रवास का जिक्र करते हुए कहती हैं,’ दूसरे दिन धर्मशाला पहुंचकर हम लोगों ने होटल में सामान रखा ही था कि हमारे कलाकार के फूल की महक चारों ओर फैल गई। सोभा सिंह जी के गिर्द उनके प्रेमियों का दरबार सा लग गया।

चित्रकार के आतिथ्य पर लेखिका की नजर

सोभा सिंह के धर्मशाला में आतिथ्य को देखकर अमृता ने लिखा है, ‘धर्मशाला के किसी कवि ने सोभा सिंह जी को लेकर कविता लिखी थी और किसी ने उनके प्रसिद्ध चित्र ‘सोहनी’ पर कुछ लिखा था। किसी दोस्त ने उनके लिए स्वेटर बुनकर रखा हुआ था और किसी ने फूलों के बीज संभाल रखे थे। फूलों की वादी में जिस दोस्त का घर था, उनका प्यार फूलों सा कोमल था।

उसके पास छब्बीस किस्म का गुलाब था। नरगिस अभी सारी वादी में किसी के घर नहीं खिली थी, पर उसके घर वह खिली हुई थी। कांगड़ा कलम की पुरानी यादो को उसने रूमालों में समेट -समेट कर अपने बक्सो में ऐसे संभाला हुआ था कि जैसे अपने प्रिय के पत्र हों।

भाग्य का देवता और पहाड़ काटते मजदूर

चित्रकार शोभा सिंह को केंद्र बना कर लिखा अमृता प्रीतम का यह संस्मरण भागसूनाग देवता को भाग्य का देवता कहते हुए सामने पहाड़ी पर स्लेट तोड़ने का काम करने वाले मजदूरों को फरहाद बताया है, जो जिंदगी की शीरी की शर्त पर पहाड़ काटने में जुटे हुए हैं। संस्मरण बेहद रोचक है। उनका यह संस्मरण हमारी साहित्यिक धरोहर है।

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