आपने हिमाचल के किस- किस घाट का पानी पिया है?
विनोद भावुक/ धर्मशाला
हिंदी भाषा में घाट शब्द नदी या सरोवर के तट पर बने स्नान के लिए होता है, किन्तु हिमाचल प्रदेश में इस शब्द का अर्थ हिंदी वाला नहीं है। यहा मुख्य रूप से पहाड़ियों के बीच रास्ते को घाट कहा जाता है।
पर्वत और पहाड़ियों के बीच आने- जाने के दर्रों वाले रास्तों के लिए हिमाचल प्रदेश में घट्टा, गलू और गला शब्द भी प्रयोग होता है। प्रदेश में गई घाट हैं, इसलिए कई स्थानों के साथ जुड़ गए हैं। देखते हैं आपने इनमें से कितने घाटों का पानी पिया है।
ओच्छघाट
ओच्छघाट नामक स्थान सोलन-राजगढ़ सड़क पर सोलन शहर से 10 कि.मी. दूर बागवानी विश्वविद्यालय नौणी के साथ के पास है। पहाड़ी भाषा में ओच्छा शब्द का अर्थ छोटा होता है। छोटा स्थान होने के कारण इसे ओच्छाघाट कहा जाता है।
कंडाघाट
सोलन से 10 किलोमीटर दूर सोलन-शिमला सड़क पर स्थित इन स्थल पर पहले भारी वस्तुओं को तोलने का कंडा होता था। उस कंडा के आधार पर इस जगह का नाम कंडाघाट पड़ा।
काथलीघाट
सोलन जिला की कंडाघाट तहसील का यह स्थान शिमला -चंडीगढ़ सड़क पर स्थित है। यहां पर पहले काथी नामक झाड़ियां अधिक होने से इस जगह का नाम काथलीघाट पड़ा है।
त्रिफालघाट
मंडी जिला की सुन्दरनगर तहसील के इस स्थान पर तीन पूर्व रियासतों सुकेत, बिलासपुर और मंडी की सीमाएं ऐसे मिलती हैं, जैसे तीनों ओर से हल के फाल मिल रहे हों। इसी कारण यहां का नाम त्रिफालघाट पड़ा है।
दाड़लाघाट
शिमला-बिलासपुर सड़क पर शिमला से 48 कि.मी. दूर अकी तहसील के दाड़लाघाट में कभी जंगली अनार बहुत होते थे। जंगली आनार को पहाड़ी में ‘दाडू’ कहा जाता है। दाडू वाला घाट होने के कारण यह स्थान दाड़लाघाट हो गया।
दुर्गाघाट
सोलन जिला की अर्की तहसील में ही शिमला से 35 कि.मी. दूर शिमला-बिलासपुर सड़क पर दुर्गा माता का मंदिर होने से दुर्गाघाट कहलाता। यहां दो पहाड़ों के बीच गला है, जिससे रास्ता जाता है।
दौलीघाट
कुल्लू जिला की लग घाटी के इस स्थान पर दौरल नामक प्रजाति के पेड़ होते थे जिससे यहां का नाम दौरलीघाट पड़ा, जो बाद में दौलीघाट कहा जाने लगा।
भराड़ीघाट
शिमला से 60 कि.मी. दूर शिमला-बिलासपुर सड़क पर स्थित सोलन जिला की अर्की तहसील के इस स्थान पर बेर के पेड़ बहुत होते थे। बेर को स्थानीय बोली में बराड़ कहते हैं, जिससे यहां का नाम बराड़ीघाट पड़ा जो बाद में भराड़ीघाट हो गया है।
शालाघाट
ये स्थान सोलन जिला की अर्की तहसील में शिमला-बिलासपुर सड़क पर स्थित है। शिमला से यहां की दूरी 32 कि.मी. है। यहां स्थानीय बोली में सर्दी को श्याला या शल्ला कहते हैं। अर्की के लोग पहले जब शिमला पैदल जाते थे तो ऊंचाई पर स्थित इस घाट पर वे ठंड होती थी। इसी आधार पर यहां का नाम श्यालाघाट या शल्लाघाट पड़ा जो बाद में शालाघाट हो गया है।
स्वारघाट
बिलासपुर ज़िला की श्रीनयनादेवी तहसील में बिलासपुर-चंडीगढ़ सड़क पर स्थित इस स्थान पर किसी समय पहाड़ और मैदान के व्यापारियों के बीच सामान का आदान-प्रदान होता था। इस आदान-प्रदान में सामान की ढुलवाई के लिए यहां पर घोड़े, खच्चरों का जमघट रहता था। लोग यहां घुड़सवारी का भी आनंद लेते थे। सवारी से इस स्थान का नाम सवारघाट पड़ा जो बाद में स्वारघाट हो गया है।
सरकाघाट
मंडी जिला की सरकाघाट तहसील के मुख्यालय सरकाघाट में घाट के समीप में एक सरोवर था जिसे स्थानीय बोली में सर कहते हैं। अतः यह स्थान सर और घाट के योग से सरकाघाट कहलाता है।
मंडी और चंबा में घटासणी
मंडी -पठानकोट सड़क पर मंडी से 42 कि.मी. दूर पहाड़ी के एक घटा पर एक देवी का स्थान है। यहां घट्टा पर वास करने के कारण देवी माता घट्टावासनी कहलाई। घट्टावासिनी शब्द कालांतर में घटासणी हो गया। इस प्रकार चंबा जिला की डलहौजी तहसील के एक पहाड़ी दर्रे का नाम भी घट्टावासिनी माता से घटासणी पड़ा है।
घट्टा
मंडी -पठानकोट सड़क पर मंडी से 70 कि.मी. दूर मंडी जिला और कांगड़ा जिला की सीमा पर घट्टा नामक स्थान है। यहां पहाड़ी के बीच में रास्ता होने के कारण यह स्थान घट्टा कहलाता है।
ककड़ोटी घट्टा
चंबा जिला की सिंहता तहसील के इस गांव में ककड़े के पेड़ पाए जाते हैं तथा यहां की पहाड़ी पर आर-पार आने-जाने का रास्ता है। इसीलिए का नाम घट्टा के रूप में ककड़ोटी घट्टा है। ककड़े के पेड़ से ककड़सिंगी पैदा होती है, जिससे बहुत उपयोगी औषधियां बनती हैं।
सिंबल घट्टा
चंबा ज़िला की उप-तहसील सिंहुता के इस गांव में सिंबल के वृक्ष पाए जाते हैं और यहां पहाड़ी पर आर-पार आने-जाने का छोटा सा घट्टा है। अतः सिंबल और घट्टा के योग से यह गांव सिंबल घट्टा कहलाता है।
घाटों
सिरमौर ज़िला की रेणुका तहसील के गनोग परगने का यह गांव पहाड़ी घाट के साथ में बसा होने से घाटों कहलाता है। यहां के घाट स्थल को घाटाएं कहते लेकिन अब घाटाएं को प्रायः घाटों ही कहा जाता है।
मंडी में चार गलू
मंडी जिला की सदर तहसील के उत्तरसाल क्षेत्र में कांढी नामक के बीच से एक दरों जाता है जिससे यहां का नाम कांढी गलू पड़ा है। कुल्लू के लोग इस स्थान को कौंढी गौल कहते हैं।
मंडी जिला की चौहार घाटी में रुलंगधार के आंचल में गलू गांव बसा है। जोगिन्द्रनगर तहसील में भी दो गांवों का नाम गलू हैं। एक जोगिन्द्रनगर-मंडी सड़क पर जोगिन्द्रनगर से 8 कि.मी. दूर है और दूसरा जोगिन्द्रनगर से 5 कि.मी. दूर धार में है। इन सभी गलू गांव के समीप पहाड़ी के बीच एक ओर से दूसरी ओर को आने-जा के रास्ते हैं।
वैरियां दा गला
चंबा ज़िला की भटियात तहसील में तारागढ़ पंचायत की एक पहाड़ी के गला से किसी समय वैरियों अर्थात् शत्रुओं ने तारागढ़ के किले में प्रवेश करने का प्रयास किया था। उसी कारण से इस स्थान को वैरियां दा गला कहते हैं।
धारगला
चंबा जिला की सलूणी तहसील के इस स्थान में धार पर आर-पार आवागमन का रास्ता होने से इसे धारगला कहते हैं। इसी आधार पर इस स्थान का समीपस्थ गांव भी धारगला कहलाता है।
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