‘उमंग’ से जीवन में तरंग, भरे उम्मीदों के ‘रंग’
बिजनेस हिमाचल टीम/ शिमला
उमंग’ संस्था ने कई लोगों के नीरस जीवन में तरंग लाकर उम्मीदों के ‘रंग’ भरे हैं। साढ़े तीन दशक पहले वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी अजय श्रीवास्तव ने शिमला में उस समय रक्तदान जागरूकता को लेकर बीड़ा उठाया था, जब रक्तदान को लेकर कई भ्रांतियां थी और लोग ब्लड डोनेशन से कतराते थे।
अजय श्रीवास्तव ने न केवल खुद ब्लड डोनेट करना शुरू किया, बल्कि उमंग फाउंडेशन के बैनर तले रक्तदान जागरूकता को लेकर एक आंदोलन भी खड़ा किया।
युवतियों और दृष्टिहीनों ने शुरू किया रक्तदान
अजय श्रीवास्तव के गठित उंगम फाउंडेशन ने प्रदेश में पहली बार युवतियों के लिए ब्लड डोनेशन कैंप लगाने की पहल की। उमंग ने ही पहली बार दृष्टिहीनों को ब्लड डोनेशन के लिए प्रेरित करने की पहल की। उमंग के फाउंडर अजय श्रीवास्तव की इन सब मेन भूमिका हमेशा खास रही है।
उनकी ही प्रेरणा और प्रोत्साहन के चलते शिमला रक्तदान के इतिहास के कई बिरले रिकॉर्डों का गवाह बना। उन्होंने रक्तदान को एक जनांदोलन बनाने की पहल की।
शतकवीर रक्तदाता हैं अजय श्रीवास्तव
अजय श्रीवास्तव बार ब्लड डोनेशन का शतक कर चुके हैं। उनकी संस्था उमंग फाउंडेशन साल में औसतन 14 ब्लड डोनेशन कैंपों का आयोजन करती आ रही है।
उमंग फाउंडेशन हर साल औसतन 1100 यूनिट ब्लड की व्यवस्था करती है। आपात स्थिति में रोगियों को तत्काल ब्लड की जरूरत पडऩे पर अस्पतालों से आने वाली काल पर भी उमंग के वॉलंटियर्स ब्लड डोनेशन के लिए उपलब्ध रहते हैं। उंगम फाउंडेशन रैलियों, पेंटिंग्स और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से रक्तदान जागरूकता के लिए अभियान चलाती है।
मानवाधिकार की पैरोकार उमंग
अजय श्रीवास्तव के प्रयासों से साल 2009 में उंमग फाउंडेशन की स्थापना की गई। संस्था रक्तदान जागरूकता के साथ विकलांगों खासकर दृष्टिहीनों, मूक- बाधिरों, थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों, कुष्ठ रोगियों और बुजुर्गों के मानवाधिकारों के लिए काम करती है।
उमंग के ही प्रयासों का उपकार है कि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में विकलांगता एवं पुनर्वास अध्ययन केंद्र की शुरूआत हुई।
उमंग के प्रयासों से प्रदेश के कई दृष्टिहीनों को ज्ञान की रोशनी मिली है। उनके हकों के लिए संस्था ने अदालत का दरवाजा भी खटखटाया।
विकलांगों की वकालत
उमंग संस्था हिमाचल प्रदेश के स्कूलों में विकलांग बच्चों के लिए समावेशी शिक्षा प्रदान करने पर जोर देती है। विकलांगता अधिनियम पहले प्रदेश में प्रभावी नहीं था।
उमंग फाउंडेशन ने विकलांगता अधिनियम 1995 के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी। यह उमंग के प्रयासों का परिणाम है कि राज्य सरकार ने विकलांग स्टूडेंट्स को समावेशी शिक्षा प्रदान करने के लिए स्कूलों का चयन किया।
बुढ़ापे की लाठी है उमंग
उंमग फाउंडेशन बूढ़े असहाय लोगों के अधिकारों के लिए अहम भूमिका अदा कर रही है। शिमला के बसंतपुर वृद्धाश्रम की उमंग ने कानूनी लड़ाई लड़ी, विधानसभा में मामला उठाया और तत्कालीन राज्यपाल उर्मिला सिंह से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की।
राज्यपाल के आदेश के बाद प्रकरण की जांच हुई। मानसिक रोगियों को शिमला में भर्ती किया गया। संस्था के प्रयास ने अब इस वृद्वाश्रम की स्थिति सुधर गई है।
आईजीएमसी ‘आई बैंक’ की शुरूआत
उमंग फाउंउेशन के ही प्रयासों से शिमला स्थित आईजीएमसी मेडीकल कॉलेज में आई बैंक की शुरूआत हुई। अजय श्रीवास्तव बताते हैं कि 11 दिसंबर 2010 को आईजीएमसी में आई बैंक की शुरूआत हुई और अब तक सैंकड़ों नेत्र प्रत्यारोपण किए जा चुके हैं।
उमंग की ओर से नेत्रदान करने वालों के परिवारों को समानित किया जाता है। उमंग फाउंडेशन की ओर से आई डोनेशन को लेकर भी जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।
थैलेसीमिया पीड़ितों की प्रतिनिधि संस्था
उमंग फाउंडेशन हिमाचल प्रदेश में थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों की प्रतिनिधि संस्था है। संस्था के प्रयासों से ही हिमाचल प्रदेश में थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों का प्रामाणिक डाटा उपलब्ध हुआ है। उमंग फाउंडेशन ने 2009 में थैलेसीमिया मुक्त हिमाचल अभियान की शुरूआत की।
इसके लिए उमंग अदालत गई, जिसका परिणाम यह रहा कि आईजीएमसी में ऐसे बच्चों के लिए न केवल अलग वार्ड की व्यवस्था हुई और रोगियों के लिए मुफ्त दवाईयों की व्यवस्था भी सरकार ने शुरू कर दी। उमंग दिव्यांग बच्चों के उत्थान के लिए भी काम कर रही है।
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