कांगड़ा कलम : रंगों में ढाल दिया राधा-कृष्ण का प्रेम
विनोद भावुक/ धर्मशाला
चित्रकला के इतिहास का एक अनूठा कारनामा कांगड़ा मिनिएचर पेंटिंग से जुड़ा हुआ है। कांगड़ा कलम के शिल्पी माणकू ने 600 साल पुरानी साहित्यिक रचना को रंगों में ढाल कर अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर दिया था।
कांगड़ा कलम के मणिक कहे जाने वाले माणकू ने 12वीं सदी की अमर कृति गीत गोविंदम को छह सौ साल बाद 18वीं सदी में रंगों में ढालने का अद्भुत काम कर दिखाया था।
गुलेर रियासत के महान चित्रकार माणकू के बारे में बेशक पहाड़ की नई नसलें कम जानती हों, लेकिन यह ऐतिहासिक तत्थ है कि कांगड़ा कलम के विलक्षण चितेरे माणकू ने भागवत पुराण की कथाओं को भी चित्रों की जुबानी पेश कर कला की दुनिया को अनूठा उपहार दिया है।
माणकू के रंगों की जादूगरी
‘गीत गोविंदम्’ पर आधारित 1730 के आस-पास रचे गए कांगड़ा कलम के चितेरे माणकू के चित्र राधा- कृष्ण के प्रेम की गहरी भक्तिपरक एकात्मकता का प्रमाण हैं। चित्रों में दर्ज साक्ष्य के हिसाब से राज परिवार की एक महिला मालिनी के आदेशानुसार इन चित्रों की रचना की गई।
राधा और कृष्ण को प्रेम लीलाओं और उनके अलगाव की विरह-वेदना के प्रति कवि जयदेव की समझ को माणकू के चित्रों में महसूस किया जा सकता है।
कांगड़ा कलमके चितेरे माणकू के रंगों की जादूगरी देखिए कि आदर्श भक्त के रूप में कवि जयदेव को भी अपने चित्रों में उतार लाए।
बाएं हाथ से चित्र बनाता था माणकू
कांगड़ा कलम के विश्वप्रसिद्ध जानकार डॉ. बी एन गोस्वामी ने अपनी पुस्तक ‘माणकू ऑफ गुलेर’ में माणकू के कला के संसार को समझने के लिए न केवल उनकी कृतियों का गहराई से अध्ययन किया, बल्कि इस चित्रकार के जीवन को करीब से जानने की उनकी ललक उन्हें हरिद्वार तक ले गई।
तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद हरिद्वार में सरदारी राम राखा के बही खाते में माणकू के बारे में विवरण ढूंढ निकाला। डॉ गेस्वामी लिखते हैं कि माणकू विलश्षण कलाकार था और बाएं हाथ से चित्र बनाता था। राधा को तिलक देते कृष्ण के चित्र में यह झलकता है।
डॉ. गोस्वामी की किताब में माणकू और उनके चित्रों का ब्यौरा है, वहीं उनके बारे में विभिन्न विद्वानों की राय भी है।
गीत काव्य है ‘गीत गोविंदम्’
राधा और कृष्ण की प्रेम लीलाओं, उनके अलगाव की विरह-वेदना, संगीत और नृत्य की प्रवीणता, ज्ञान और श्रृंगार पर 12वीं सदी में संस्कृत के पदों में रची गई ‘गीत गोविंदम्’ 12 अध्यायों वाला एक गीत काव्य है, जिसे चौबीस भागों में विभाजित किया गया है। इसके रचविता 12वीं शताब्दी के अमर कवि जयदेव हैं। इस कृति में रचयिता ने धार्मिक उत्साह के साथ श्रृंगारिता का सुंदर संयोजन किया है।
इसमें राधा और कृष्ण की प्रेम लीला और उनके अलगाव की विरह-वेदना का वर्णन किया गया है। कवि ने संगीत और नृत्य की प्रवीणता, भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति, ज्ञान और श्रृंगार के प्रति अपनी समझ का चित्रण किया है।
क्षेत्रीय संस्करणों एवं अनुकृतियों के अलावा इस अमर कृति पर चालीस से भी अधिक टीकाएं उपलब्ध हैं। भारत की सभी भाषाओं में अनुवाद होने के साथ कई यूरोपीय भाषाओं में भी इसका अनुवाद किया गया है।
मुगल दरबार से चितेरों का पलायन
18वीं सदी में मुगल साम्राज्य बिखराव की ओर था और बाहरी हमले बढ़ने लगे थे। दिल्ली के कलाकारों की बिरादरी बेजार हो गई। कई कलाकार जीवनयापन के लिए दूसरी रियासतों के कला प्रेमी राजाओं के आश्रय में जा बसे।
चितेरे पंडित सिउ गुलेर के राजा दलीप सिंह के समय में गुलेर में बस गए। उन्होंने रामायण पर आधारित चित्र मृंखला का निर्माण किया।
गुलेर के बाद पहुंचे कांगड़ा दरबार
राजा दलीप सिंह की मृत्यु के बाद पंडित सिउ और उनके दोनों बेटे नैनसुख और माणकू कांगड़ा के महाराजा संसारचंद कटोच के दरबार में आ गए। पिता के बाद उनके बेटों ने कांगड़ा कलम को नया शिखर दिया।
कांगड़ा कलम के चितेरे माणकू के छोटे भाई नैनसुख बाद में जम्मू राज दरबार में जा बसे, लेकिन माणकू व उनके बेटे कौशल और पलटू कांगड़ा सियासत के चितेरे रहे।
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