‘कुलूत देश की कहानी’ का सार, यहीं शुरू हुआ संसार

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कुल्लू के इतिहास का अहम शोधपरक दस्तावेज प्रार्थी की किताब
विनोद भावुक/ कुल्लू
नीलकमल प्रकाशन कुल्लू से प्रकाशित स्वर्गीय लाल चंद प्रार्थी की मशहूर पुस्तक ‘कुलूत देश की कहानी’ कुल्लू के इतिहास का सबसे अहम शोधपरक दस्तावेज है। इस पुस्तक में प्राथी कुलूत देश को धरती को ऐसा स्थान साबित करते हैं, जिसकी तरह का दूसरा महत्वपूर्ण स्थान धरती पर कहीं नहीं है।
लाल चंद प्रार्थी कुलूत देश की कहानी में लिखते हैं कि कुलूत आज के कुल्लू का ऋग्वेद में प्राचीनतम नाम है। दस्युराज कौलितर शम्बर से सम्बन्धित ऐतिहासिक घटनाओं में उसका कोल जाति से होना सिद्ध करता है कि इसी कोल शब्द के संदर्भ से कुलूत और कुल्लू शब्द व्यवहार में आए हैं।
कोल जाति के राज्य विस्तार की अन्तिम सीमा कुलूत की गहन उपत्याकाओं तक ही थी और इससे आगे था किरात क्षेत्र। कुलूत देश की कहानी के अनुसार कुलूत हिमाचल का वह भू-भाग है जिसका सीधा सम्बन्ध है सृष्टि की रचना से है।
यहां पर ही प्रकृति की उथल-पुथल में झेलते पर्वतों में से अन्तिम पर्वत को आर्यों के आदि देव वृत्रहन्ता इन्द्र ने कील कर स्थित किया और तब उसका नाम पड़ा इन्द्रकील पर्वत।
महादेव शंकर ने पी बिजली
कुलूत देश की कहानी के अनुसार यहां प्राकृतिक तत्वों के भयंकर संघर्ष, महाशिव के तांडव के फलस्वरूप उत्पन्न हुई बिजली को महादेव शंकर ने पिया और अब भी पीता है। हर बारह वर्ष के बाद पीकर उसे शान्त कर देता है व्यास और पार्वती के संगम में। तभी उसे कहते हैं बिज्लेश्वर महादेव या बिजली महादेव।
कुलूत देश की कहानी के अनुसार बौद्ध शास्त्रों में जिसे एक महान तीर्थ का स्थान मिला है इसी कुलूत में भृगु तुंग पर्वत श्रृंखला है, जिसे अब रोहतांग कहते हैं। आदि भृगु ने यहां तप किया और तब अग्नि देवता को साक्षात पृथ्वी पर पहली बार उतारा। फिर ऋवेद की आदि ऋचा का हुआ निर्माण।
आदि भृगु की तपस्थली आज भृगु तीर्थ के नाम से विख्यात है। यही पर्वत श्रृंखला सप्त सिन्धु की पावन पुनीत नदी अजिंकीया का स्रोत है, जो महामुनि वशिष्ट को पाशमुक्त करने पर विपाशा कहलाई और फिर आगे चल कर इसे व्यास कहा गया।
मनु ने बनाया अपना घर
कुलूत देश की कहानी बताती है कि यही कुलूत है आदि मानव का देश, जहां महान जल प्लावन के बाद मनु ने अपना घर बनाया और जहां से मानव वंश का पुनः प्रसार हुआ। यही ऐतिहासिक स्थली आज मनाली कहलाती है।
भृगु, भारद्वाज, वामदेव गौतम, कपिल, कण्व, कणाद, वशिष्ट, शृंगी, पराशर, व्यास, नारद, द्वैपायन, धौम्य, शांडिल्य, कात्यायन, कार्तिक आदि ऋषियों ने इसी कुलूत में तप किया।
कुलूत देश की कहानी के मुताबिक यहां पर भृगु वंशज जमदग्नि ने संसार का सबसे पुराना जनपद मलाणा स्थापित किया। यहां भगवान परशुराम ने सबसे पहला नरमेध यज्ञ किया और मां अम्बा के निर्मुण्ड शव में सिर जोड़ने और शरीर पुनः प्राणों का संचार करने में सफलता प्राप्त की। चन्द्रभागा, विपाशा और शतद्रु की कर्म भूमि और कोल जाति के दस्युराज कौलितर शम्बर का राज्य भाग कुलूत ही है।
वेद व्यास ने वेदों का संकलन
कुलूत देश की कहानी के अनुसार यहां विपाशा के किनारे आर्यजनों ने आंख खोली। महामुनि वशिष्ट को आत्मशान्ति प्राप्त हुई और श्रृंगी जैसे बाल ब्रह्मचारी ने तप किया, जिनके पुत्रेष्टि यज्ञ के फलस्वरूप भगवान राम पैदा हुए।
यहां पराशर पुत्र द्वैपाइन ने दरपौण आश्रम में बाल्यावस्था में साधना की। महामुनि वेद व्यास ने वेदों का संकलन और कुछ पुराणों की रचना की।
यहां भीमसेन और हिडिम्बा का रोमांच लड़ा और जिसके फलस्वरूप घटोत्कच्छ जैसे वीर योद्धा उत्पन्न हुए। हिडिम्बा को देवत्व प्राप्त हुआ और फिर वंशज कुल्लू के पाल राजाओं की दादी बनी।
यहां इन्द्रकील पर्वत श्रृंखला में अर्जुन ने तप करके भगवान शंकर को प्रसन्न किया और महाभारत युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए उनसे किरात के वेश में पाशुपत अस्त्र वरदान में पाया। यहां पांडवों की तीनों पर्वत यात्राओं का प्रसंग मिलता है और महा प्रस्थान भी उसमें शामिल है।
भगवान बुद्ध के चरण
कुलूत देश की कहानी के अनुसार यहां महात्मा विदुर के पुत्र मक्कड़ ने मकड़सा राज्य की नींव डाल मकड़ान की पर्वत श्रृंखला तक विजय प्राप्त की। कोल, किरात, नाग, खश, कनैत आदि जातियों के फैलाव और टकराव हुए व मुठभेड़ के बाद एक नई संस्कृति का जन्म हुआ।
यहां भगवान बुद्ध के चरण पड़े, जिसकी स्मृति में महाराज अशोक ने एक स्तम्भ खड़ा किया, जो अब है नहीं है, जिसकी खोज आवश्यक है। कुलूत देश की कहानी कहती है कि प्रारम्भ में इन पहाड़ों में कोल आदिवासी रहते थे। कौलितर शम्बर उनका सबसे बड़ा राजा हुआ। इसके राज्य विस्तार के क्षेत्र कुलूत कहा जाना असंगत नहीं।
कुलूत की सेनाओं ने सिन्धु नदी पर यवन आक्रमणों के मुकाबले में भाग लिया था। नन्द वंश को उखाड़ने को भी कुलूत की सेनाओं को निमंत्रित किया गया था और पाटली पुत्र में चन्द्र गुप्त मौर्य के राजतिलक समारोह में कुलूत का राजा शामिल हुआ था।
हयून सांग के यात्रा संस्मरण
कुलूत देश की कहानी में लाल चंद प्रार्थी ने लिखा है कि कवि विशाखदत्त के अनुसार कुलूत देश का शुमार कश्मीर, पारसोक आदि पांच बड़े राज्यों में होता था। कवि राजशेखर के अनुसार कुलूत को पराजय किए बिना राजसु यज्ञ नहीं हो सकता था।
हयून सांग के यात्रा संस्मरण में जालंधर के बाद कुलूत का ही वर्णन आता है। राजतरंगणी के अनुसार चम्बा के राजा ने कुलूत के नरेश को स्वकुल्य कुलूतेश्वर लिखा है।
पहली या दूसरी शताब्दी का सिक्का ‘राजनः कौलूतस्य वीरायासस्य’ किसी बड़े राज्य का ही हो सकता है। इसका मतलब है कि कभी कुलूत एक बड़ा राज्य रहा है।
चौदहवीं शताब्दी तक कुलूत शब्द व्यवहार में आता रहा है। जब कश्मीर के राजा ज़ैनुल आबदीन ने इस पर आक्रमण करके इस राज्य को तहस-नहस किया और तब कुलूत शब्द राज्य की सीमाओं के साथ-साथ सिकुड़ने लगा और फिर ऐतिहासिक चित्रपट पर कुल्लू नाम रह गया।
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