चंद्रशेखर मंदिर : नंदी के पीछे लटका ग्वाल

चंद्रशेखर मंदिर : नंदी के पीछे लटका ग्वाल

मनीष वैद/ चंबा

चंबा जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर पहाड़ों में स्थित साहो गांव में चंद्रशेखर के नाम से प्रसिद्ध विशाल शिवलिंग स्थापित है।

चंद्रशेखर मंदिर मंदिर के बारे में एक रोचक कहानी है। मंदिर के बिलकुल सामने स्थित नंदी की प्रतिमा के निर्माण रहस्यमयी है।

कहा जाता है कि नंदी अपने आप उस जगह पर स्थापित हुए हैं। कहते हैं कि यह असली नंदी है जो रोज लोगों की फसल तबाह कर देते थे।

एक दिन ग्वाले ने उन्हें देख लिया और उन्हें रोकने के लिए पूंछ से पकड़ लिया और बस उसी समय उसी जगह नंदी और ग्वाल शिला रूप में परिवर्तित हो गए।

आज भी नंदी के पीछे ग्वाल लटका हुआ दिखता है। नंदी के गले में घंटी टन की आवाज सुनाई देती है। कई लोगों ने इस पर खोज की, परंतु इसका रहस्य कोई जान नहीं पाया।

सावन मास और मणिमहेश यात्रा के दौरान इस प्राचीन मंदिर में ख़ासी भीड़ रहती है। यहां स्थित जलाशय में शिव उपासक पवित्र स्नान करते हैं।

पौराणिक कथाएं समेटे चंद्रशेखर मंदिर

हिमाचल को शिव का घर भी कहा जाता है, इसलिए यहां भगवान शिव की अनोखी और रहस्य से पूर्ण कई गाथाएं सुनने को मिलेगी।

ऐसा ही एक मंदिर है चंद्रशेखर मंदिर, जिसके प्रति लोगों की अटूट आस्था है। यहां भक्त शिवलिंग के दर्शन पाकर खुद को भाग्यशाली मानते हैं।

हिमाचल को शिव का घर भी कहा जाता है, इसलिए यहां भगवान शिव की अनोखी और रहस्य से पूर्ण कई गाथाएं सुनने को मिलेगी।

ऐसा ही एक मंदिर है चंद्रशेखर मंदिर, जिसके प्रति लोगों की अटूट आस्था है। यहां भक्त शिवलिंग के दर्शन पाकर खुद को भाग्यशाली मानते हैं।

चंद्रशेखर मंदिर अपने आप में कई पौराणिक कथाएं समेटे हुए है। मणिमहेश की पवित्र यात्रा से लौटते हुए कई लोग यहां माथा टेकते हैं। यह मंदिर भारत के समृद्ध संस्कृति व आस्था का प्रतीक है।

1100 साल पुराना चंद्रशेखर मंदिर

चंद्रशेखर मंदिर अपने आप में कई पौराणिक कथाएं समेटे हुए है। मणिमहेश की पवित्र यात्रा से लौटते हुए कई लोग यहां माथा टेकते हैं। यह मंदिर भारत के समृद्ध संस्कृति व आस्था का प्रतीक है।

चंद्रशेखर मंदिर प्राचीन शैली से निर्मित है, जिसे लगभग 1100 साल पुराना बताया जाता है। इस मंदिर के निर्माण से संबंधित शारदा लिपि में लिखा  शिलालेख समीप के गांव सराहन से प्राप्त हुआ है।

इतिहासकार चंद्रशेखर मंदिर को राजा साहिल वर्मा (920 ई.) द्वारा निर्मित बताते हैं, जिन्होंने चंबा नगर को बसाया था, जबकि शारदा में लिखे शिलालेख के अनुसार चंद्रशेखर मंदिर का निर्माण सात्यकि नामक स्थानीय राजा ने करवाया था।

उनकी एक अत्यंत रूपवती रानी थी, जिसका नाम सोमप्रभा था। सोमप्रभा के सौंदर्य का वर्णन इस शिलालेख में भी एक छंद के रूप में मिलता है।

मुख्य द्वार पर क्रुद्ध  ओर शांत शिव

चंद्रशेखर मंदिर का मुख्य द्वार आकर्षक है। स्तंभों में घटकलश तथा फूल अंकित हैं। दोनों द्वार स्तंभों में सुंदर नक्काशी हुई है। स्तंभ के निचले भाग में शिव की खड़ी मुद्रा में प्रतिमा है। दाईं ओर मुद्रा क्रुद्ध रूप में तो बाई ओर शांत। दाईं प्रतिमा के तीन मुख छह भुजाएं हैं। चंद्रशेखर मंदिर के गर्भगृह के प्रवेश द्वार में पूर्ण घट में नृत्य करते शिव की प्रतिमा है। यह स्तंभ के आधार में है। चतुर्भुज शिव का मुंह नृत्य करते हुए दाईं ओर मुड़ा है। नटराज शिव की यह प्रतिमा भी महत्त्वपूर्ण है।

चंद्रशेखर मंदिर का मुख्य द्वार आकर्षक है। स्तंभों में घटकलश तथा फूल अंकित हैं। दोनों द्वार स्तंभों में सुंदर नक्काशी हुई है। स्तंभ के निचले भाग में शिव की खड़ी मुद्रा में प्रतिमा है। दाईं ओर मुद्रा क्रुद्ध रूप में तो बाई ओर शांत। दाईं प्रतिमा के तीन मुख छह भुजाएं हैं।

गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर नृत्य कर रहे शिव 

चंद्रशेखर मंदिर के सामने एक छोटा मंदिर है। इस मंदिर के भीतर विष्णु की पाषाण प्रतिमा है। त्रिमुखी विष्णु मुख के दोनों ओर नृसिंह और वराह अवतार के प्रतीक सिंह और शूकर हैं। मूर्ति के दो हाथ चौरी लिए सेवकों के ऊपर हैं, तीसरे हाथ में कमल है। चौथा टूट चुका है। मूर्ति में छोटी-छोटी अन्य मूर्तियां खुदी हुई हैं।

चंद्रशेखर मंदिर के गर्भगृह के प्रवेश द्वार में पूर्ण घट में नृत्य करते शिव की प्रतिमा है। यह स्तंभ के आधार में है। चतुर्भुज शिव का मुंह नृत्य करते हुए दाईं ओर मुड़ा है। नटराज शिव की यह प्रतिमा भी महत्त्वपूर्ण है।

मंदिर के सामने एक छोटा मंदिर

चंद्रशेखर मंदिर के सामने एक छोटा मंदिर है। इस मंदिर के भीतर विष्णु की पाषाण प्रतिमा है। त्रिमुखी विष्णु मुख के दोनों ओर नृसिंह और वराह अवतार के प्रतीक सिंह और शूकर हैं। मूर्ति के दो हाथ चौरी लिए सेवकों के ऊपर हैं, तीसरे हाथ में कमल है। चौथा टूट चुका है। मूर्ति में छोटी-छोटी अन्य मूर्तियां खुदी हुई हैं।

चंद्रशेखर मंदिर के सामने जलाशयनुमा प्रांगण

चंद्रशेखर मंदिर अपने शिल्प – वैशिष्टय के कारण भी आकर्षक है। गर्भगृह में स्थित शिवलिंग तांबे का बना हुआ है। मंदिर के सामने एक जलाशयनुंमा प्रांगण है।

वीरवार और रविवार, विशेषकर चैत्र माह में बह्म मुहूर्त में दूर-दूर से लोग अपने रोगग्रस्त बच्चों को लेकर यहां आते हैं और उन्हें यहां के प्रांगण में बने चौकोर पत्थर के बीच से गुजारा जाता है। मान्यता है कि इससे बच्चों के हर प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं।

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