चामुखा महादेव: चार मुख वाला शिवलिंग

चामुखा महादेव: चार मुख वाला शिवलिंग

 

वीरेंद्र शर्मा वीर/ कांगड़ा

देवभूमि हिमाचल प्रदेश में सावन मास का विशेष महत्व है। इस माह में शिव के भक्त न केवल श्रीखंड महादेव, मणिमहेश और किन्नर कैलाश की कठिन यात्राएं करते हैं, बल्कि प्रदेश के पुरातन शिव मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं।

सावन के शुभ अवसर पर हिमाचल प्रदेश के पुरंतन शिव मंदिरों की विशेष सीरीज में आज बात ऊना के एटिहासिक चामुखा महादेव मंदिर की।  यह मंदिर पांडवकालीन बताया जाता है  और इस मंदिर के प्रति स्थानीय लोगों में विशेष आस्था है। चामुखा महादेव मंदिर के साथ कई जनश्रुतियां और मान्यताएं जुड़ी हैं।

सावन के शुभ अवसर पर हिमाचल प्रदेश के पुरंतन शिव मंदिरों की विशेष सीरीज में आज बात ऊना के एटिहासिक चामुखा महादेव मंदिर की।  यह मंदिर पांडवकालीन बताया जाता है  और इस मंदिर के प्रति स्थानीय लोगों में विशेष आस्था है। चामुखा महादेव मंदिर के साथ कई जनश्रुतियां और मान्यताएं जुड़ी हैं। 

दुनिया में तीन पुरातन शिव मंदिर ऐसे हैं, जहां पर भगवान शिव चार मुख वाले शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इन तीनो मंदिरों में सर्वोपरि है नेपाल के काठमांडू स्थित पशुपति नाथ मंदिर

दूसरा है अम्ब से नादौन के मुख्य मार्ग पर ब्यास नदी के मुहाने और जिला कांगड़ा और हमीरपुर की सीमाओं पर कौलापुर गांव में अवस्थित पांडवकालीन तन्त्र-मन्त्र का प्रमुख केंद्र चामुक्खा

तीसरा और अंतिम है जिला हमीरपुर और ऊना की सीमाओं पर अवस्थित सोलहसिंगी धार और पिपलु धार के मध्य पनतेहड़ी गांव में पिपलु- बड़सर मार्ग पर पिपलु से तीन किलोमीटर दूर अवस्थित पांडवकालीन चामुखा महादेव

शिमला स्थित पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों के मुताबिक यह स्थान पचपन सौ साल से भी ज्यादा पुराना है।

चामुखा महादेव मंदिर में पांडवों ने की पूजा

चामुखा महादेव मंदिर में अवस्थित चारमुखी शिवलिंग के बारे में अवधारणा है कि यह पांडव काल या उस से भी पहले इस जगह पर थी। पांडवों ने अपने बनवास के दौरान इस स्थान पर भी पूजा- अर्चना की थी।

चामुखा महादेव मंदिर में अवस्थित चारमुखी शिवलिंग के बारे में अवधारणा है कि यह पांडव काल या उस से भी पहले इस जगह पर थी। पांडवों ने अपने बनवास के दौरान इस स्थान पर भी पूजा- अर्चना की थी।

दक्षिण पश्चिम की ओर चामुखा महादेव मन्दिर के मुख्य द्वार के ठीक दायें व बायें चांद और सूरज तो बिल्कुल मध्य मंगलमूर्ति गणेश अन्य तीन में से दो दरवाजों पर भगवान गणेश और पूर्व दिशा की और देवी की प्रतिमा अवस्थित है।

चामुखा महादेव मंदिर के गर्भ गृह में भगवान भोलेनाथ चार मुखी शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं, जिनमें से तीन मुख तो बन्द हैं, किन्तु पूर्व दिशा की ओर वाला मुख खुला हुआ है।

सोने के कपाट और दंतकथा

दंतकथाओं के अनुसार चामुखा महादेव मंदिर के चारों कपाट सोने के बने हुए थे, जिन्हें एक दिन चोर चुरा कर ले चले। भगवान भोलेनाथ तब तपस्या में लीन थे। पूर्व दिशा जिस ओर चोर आगे बढ़ रहे थे कि शिव का एक मुख खुला और उन्होंने पास ही की सोलह सिंगी धार पर अपने भक्त को आवाज दी।

चोर तब तक पहाड़ी उतर कर राजनीण के पास पहुंच गए थे। देव कृपा से उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि उन्होंने गलत कार्य कर दिया है तो वे वहीं एक नाले में उन कपाटों को छोड़ कर भाग गए।

शिवगणों की पूजा से होते ग्रह शांत

एक मान्यता के अनुसार चामुखा महादेव मंदिर के अन्दर शिवलिंग के पास और मन्दिर के कपाटों के दोनों ओर जो शिवगण विराजमान हैं, उनकी इस मन्दिर में आकर पूजा-अर्चना करने से गण्डमूल में जन्मे किसी भी जातक के  समस्त ग्रह शांत हो जाते हैं और गण्डमूल के प्रकोप से छुटकारा मिलता है।

यहां रास्ते पर ककड़ सिंगी का भी बहुत पुराना पेड़ चामुखा महादेव मन्दिर के पास ही है। मान्यता के अनुसार यह पेड़ भी मन्दिर जितना ही पुराना है। इस तरह के चारमुख वाला शिवलिंग पशुपतिनाथ मन्दिर काठमांडू के आलावा दुनिया में अन्यत्र कहीं नहीं मिलता।

शिवलिंग के चारों और चार-चार लिंग

चामुखा महादेव के चारमुखी शिवलिंग की एक विशेषता यह भी है कि इसके चारों ओर चार चार लिंग हैं, जिनमें तलमेहडा स्थित घुनसर महादेव, राजनौण स्थित वनखण्डेश्वर महादेव, सुकनौण महादेव, कोट सिहाणा भ्याम्बि व बछरेटू महादेव प्रमुख हैं। पहले चाहे कुछ भी यहां पहुंचने बाद भगवान की शक्ति और दिव्यता दोनों का अहसास होता है।

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