नीलकंठ महादेव : बेटे की चाहत में झील में स्नान
विनोद भावुक/ उदयपुर
लाहौल-स्पिति जिला के लाहौल संभाग की पट्टन घाटी के नैनगाहर क्षेत्र में एक ऊंचा पर्वत शिखर है, जिसे नीलकंठ महादेव कहते हैं। इस चोटी को नीलकंठ कैलाश के नाम से भी जाना जाता है।
इसी पर्वत शिखर के आंचल में एक पवित्र झील है, जिसके प्रति नीलकंठ महादेव के पावन तीर्थ के रूप में लोगों की गहरी आस्थाएं हैं। खासकर सावन मास में इस झील में स्नान कर नीलकंठ की पूजा करने शिव उपासक दूर- दूर से यहां पहुँचते हैं और दुर्गम घाटी की इस यात्रा का आनंद उठाते हैं। नीलकंठ झील से जुड़ी कई लोकमान्यताएं और जनश्रुतियां हैं।
याक का झील से निकलना और गायब होना
नीलकंठ झील समुद्र तल से 4,200 मीटर (13,777 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। इस झील के पास भगवान शिव का एक छोटा सा मंदिर है। कहा जाता है कि इस दुर्गम झील के दर्शन पहले-पहल एक भेड़ पालक (गद्दी ) को हुए।
गद्दी ने इस झील में एक चमत्कार देखा। उसने देखा कि एक याक उस झील से बाहर निकला और देखते-देखते वहीं लुप्त हो गया। गद्दी ने पहाड़ से नीचे उतरकर घाटी के लोगों को यह घटना बतलाई । लोगों ने देव-विधि से इसकी छानबीन की तब ज्ञात हुआ कि यह नीलकंठ महादेव का पवित्र स्थान है।
नैनगाहर क्षेत्र के पर्वत शिखर पर नीलकंठ
देव और दानवों के बीच हुए समुद्र मंथन में जब कालकूट विष निकला था तो संसार निश्चेतन होने लगा। तब भगवान शिव ने जगत् कल्याण के लिए विष का पान किया था और उससे उनका कंठ नीला हो गया था, जिससे भगवान् शिव को नीलकंठ महादेव कहा गया।
पृथ्वी का भ्रमण करते हुए वे लाहौल के नैनगाहर क्षेत्र के पर्वत शिखर पर नीलकंठ महादेव के रूप में विराजमान हुए । इसलिए उन्हीं के नाम से यह पवित्र स्थान नीलकंठ महादेव कहलाया।
बेटे के लिए मन्नत मांगे हैं लोग
किवंदती है कि पिता बनने की लालसा में पुरुष यहाँ पर मन्नत मांगने आते हैं। जन विश्वास है कि इस झील में स्नान करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
नीलकंठ झील पर महिलाओं के जाने पर धार्मिक वर्जना बताई जाती है। वक्त के साथ नीलकंठ कैलास साहसिक पर्यटन में नई इबारत लिख रहा है। अब बड़ी संख्या में पर्यटक और शिव भक्त इस झील में पवित्र स्नान करने पहुंचने लगे हैं। अब विदेशी ट्रेकरों का यह पसंदीदा ट्रैक रूट बताया जाता है।
कुदरत का बेपनाह हुस्न
नीलकंठ महादेव की यात्रा पट्टन घाटी के छोटे से गांव नैनगार से शुरू होती है। इस ट्रैक में कुदरत ने खूबसूरती को दोनों हाथों से लुटाया है। इस ट्रेक में कई खूबसूरत छोटे मैदान हैं, जहां अपने पशुधन के साथ चरवाहे देखे जा सकते हैं।
रास्ते में बर्फीले पानी वाली कई धाराओं को लांघ कर जब झील के पास पहुँचने लगते हैं तो रास्ता बेहद खड़ा दिखने लगता है। झील पर पहुंचते ही सफर की सारी थकान दूर हो जाती है।
जुलाई से सितंबर के बीच करिए ट्रेकिंग
नीलकंठ झील का पानी एकदम साफ नीला है। झील के पानी में औषधीय जड़ी-बूटियाँ मौजूद हैं। इस झील में स्नान मन और शरीर दोनों को सुकून देने वाला होता है। जुलाई से सितंबर माह के बीच इस झील पर स्नान करने वालों की संख्या बढ़ जाती है।
यह ही सबसे सही समय होता है नीलकंठ महादेव झील में पवित्र स्नान का। इस यात्रा के लिए किसी स्थानीय गाइड अथवा जानकार को जरूर साथ लेकर जाएँ।
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