पर्वतारोहण : अविश्वसनीय कहानी, गुमनाम नायिकाएं
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6 बंगाली महिलाओं ने 1970 में फतह कर दी थी लाहौल की वो अनाम चोटी
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20,130 फुट ऊंची ‘ललाना’ चोटी, जिसे बाद में कोई भी दल जीत नहीं पाया
विनोद भावुक/ केलांग
बेशक पर्वतारोहण दल की यह तस्वीर वक्त के साथ फीकी पड़ गई है, लेकिन आज भी तस्वीर में आत्मविश्वास से भरी युवतियों की मुस्कान को नजरअंदाज करना मुश्किल है। 6 नवंबर, 1968 को बंगाली दैनिक युगांतर में प्रकाशित तस्वीर में 11 बंगाली महिलाओं के एक समूह को दिखाया गया है, जो गंगोत्री ग्लेशियर पर पर्वतारोहण प्रशिक्षण से अधिक कठिन रोमांच की तैयारी में कोलकाता लौटी थीं।
पर्वतारोहण दल की तस्वीर में बाएं से दाएं सुजाता मजूमदार, कल्पना रॉय चौधरी, सुदीप्त सेनगुप्ता, सुतापा सेनगुप्ता, नीला घोष (सभी बैठी हुई) और कमला साहा, शेफाली चक्रवर्ती, स्वप्ना नंदी, अनुराधा लाहिड़ी, सुजय घोष (सभी खड़े) हैं।
दो साल बाद इस पर्वतारोहण दल की छह महिलाएं हिमाचल प्रदेश के लाहौल क्षेत्र में एक अनाम चोटी को फतह करने के अभियान का हिस्सा थीं। पर्वतारोहण अभियान के सफल होने के बाद पेश आए हादसे के बावजूद इस पर्वतारोहण दल का अभियान सफल रहा था। आइये, 70 के दशक के आखिरी साल में हुये इस पर्वतारोहण अभियान के बारे में जानते हैं।
अभियान पूरा करने के बाद दो सदस्यों की मौत
20,130 फुट (6,135 मीटर) ऊंचे शिखर पर तब तक इस परवारोहण अभियान दल से पहले किसी ने चढ़ाई नहीं की थी। 21 अगस्त 1970 को पर्वतारोहण दल के नेता सुजय घोष और सदस्य सुदीप्त सेनगुप्ता और कमला साहा ने उस शिखर पर चढ़ाई की, जिसे उन्होंने ‘ललाना’ (बंगाली में महिला) नाम दिया था। यह किसी भी पर्वतारोहण दल की इस चोटी को जीतने की पहली कोशिश थी, जो सफल रही थी।
इस पर्वतारोहण अभियान के पांच दिन बाद 26 अगस्त को बर्फीली ऊंचाई वाली जलधारा में बहने के कारण सुजया और कमला की मृत्यु हो गई। पर्वतारोही दल ने सुजय का शव को तो बरामद कर लिया गया, लेकिन कमला का कोई पता नहीं चल सका। अभियान की सफलता के साथ दल के दो सदस्यों को खोने का दुखद प्रसंग भी जुड़ गया।
अभियान की एक सदस्य का अंटार्कटिक तक सफर
इस पर्वतारोहण अभियान की पचासवीं वर्षगांठ पर आयोजित शिखर सम्मेलन में सुदीप्त सेनगुप्ता ने एक राष्ट्रीय मीडिया पोर्टल के साथ एक विस्तृत साक्षात्कार में अपनी यादें ताजा कीं थीं। उन्होंने उस पर्वतारोहण अभियान के बारे में विस्तार से बताया गया था।
उन्होंने पर्वतारोहण दल के साथ पेश आए हादसे और उसमें दल की दो ट्रेक्र्स की मौत का प्रसंग भी सुनाया था। उस दौर में भारतीय महिला परवरोहियों का यह कारनामा बेहद प्रेरक था।
सुदीप्त सेनगुप्ता साल 1983 में अंटार्कटिक में कदम रखने वाली पहली दो भारतीय महिलाओं में से एक बनीं। टीम की एक अन्य सदस्य शेफाली चक्रवर्ती (बाद में मुखर्जी), जो सुजया और कमला की मृत्यु वाली दुर्घटना में चमत्कारिक रूप से बच गईं, अब कोलकाता में एक शांत जीवन व्यतीत करती हैं।
याद नहीं की गईं पर्वतारोहण अभियान की नायिकाएं
साल 1970 के दशक में पर्वतारोहण करने वाली इन अग्रणी महिलाओं को कभी याद नहीं किया गया। उनकी अविश्वसनीय कहानी शायद ही कभी बताई गई हो। जिस वक्त लड़कियों को घर से निकालने तक की इजाजत नहीं थी, उस वक्त पर्वतारोहण अभियान में इस दल की कामयाबी महिला सशक्तिकरण की बड़ी मिसाल थी।
बेशक इन नामों को पर्वतारोहण के हलकों से परे बहुत कम पहचान मिली हो, फिर भी उन्होंने महिलाओं के लिए पर्वतारोहण के ऐसे रास्ते खोल दिए जिनके बारे में किसी को पता भी नहीं था, उनके इस पर्वतारोहण अभियान के बाद महिलाओं का क्रेज पर्वतारोहण की तरफ बढ़ा था।
लाहुल की अनाम चोटी को फतह करने और उसका नामकरण करने की पर्वतारोहण की यह एक ऐसी कहानी है, जिसे पूरे देश में बताया जाना चाहिए और महिला सशक्तिकरण की इस प्रेरककथा से सीख लेनी चाहिए।
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