पेंटर : रंगों से रंगीन अमृता की जिंदगी
खुशवंत सिंह को अमृता शेरगिल से दो बार मिला था मुलाकात का मौका, मरते दम तक ताजा रहीं मुलाकातें
विनोद भावुक/ शिमला
पेंटर अमृता शेरगिल जितने रंग अपने चित्रों में भरती थीं, उससे कहीं ज्यादा रंगीन उसकी निजी जिंदगी थी। संपादक, लेखक खुशवंत सिंह ने उनकी जिंदगी के बारे में लिखते हुए बताया था कि अमृता के आत्मचित्र उसकी आत्मरति की प्रतिछवियां मात्र थे।
संभवत: उसकी देह दृष्टि वैसी ही आकर्षक होगी, जैसी उसने अपने चित्रों में अंकित की थी, लेकिन मुझे उसके साड़ी में छिपे सौंदर्य को जानने का मौका नहीं मिला।
28 साल की उम्र में मौत
पेंटर अमृता शेरगिल का महज 28 साल में ही निधन हो गया था। दिल्ली की सबसे मंहगी बस्ती लुटियन जोन में उनके नाम पर सडक़ का नामकरण हुआ।
अमृता शेरगिल एक सिख पिता उमराव सिंह शेरगिल व हंगरी यहूदी ओपेरा गायिका मेरी एंटोनिएट की बेटी थीं। उमराव सिंह की गोरखपुर में जमीन जायदाद व चीनी मिलें थीं।
शिमला में पेंटर अमृता शेरगिल का अपना स्टुडियो था और उस दौर में अमृता शेरगिल के बनाए चित्रों की दुनिया भर में चर्चा होती थी।
अमृता से मिलने पहुंच गए नेहरू
खुशवंत सिंह के मुताबिक पेंटर अमृता ने यह सोचकर शादी की कि उसका होने वाला पति काफी पैसे वाला होगा, पर ऐसा नहीं हुआ। वह उनसे दुखी रहने लगीं।
कुछ लोगों का कहना है कि पेंटर अमृता शेरगिल इतनी खूबसूरत थीं कि जवाहरलाल नेहरू तक उसके प्रति आकर्षित हो गए थे और जब किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने अक्टूबर 1940 में गोरखपुर आए तो पास ही में स्थित उसके गांव सराया मिलने पहुंच गए।
हैदराबाद व मैसूर के महाराजों ने नहीं खरीदी पेंटिंग
कहा जाता है कि वह अपने समय की सबसे योग्य पेंटर थीं, पर खुशवंत सिंह मानते थे कि अमृता शेरगिल ने कला समीक्षक प्रभावित करके अपनी तारीफ छपवाई, लेकिन सबके बावजूद हैदराबाद व मैसूर के महाराज ने अपने म्यूजियम के लिए उसकी पेंटिग नहीं खरीदी।
उसके बारे में बदरुद्दीन तैयबाजी व उसके भांजे विवन सुंदरम द्वारा लिखे गए किस्सों का हवाला देते हुए खुशवंत सिंह ने लिखा है कि जितने रंग पेंटर अपनी पेंटिंग में भरती थीं, उससे कहीं ज्यादा रंगीन उसकी निजी जिंदगी थीं।
बेहद खूबसूरत औरत, पेंटर के रूप में शोहरत
खुशवंत सिंह उसकी जिंदगी के बारे में लिखते हैं कि वे उससे सिर्फ दो ही बार मिले थे, लेकिन वे दो मुलाकातें ही उनकी याददाश्त में ऐसे पैठ गई हैं कि भुलाए नहीं भूलतीं। एक पेंटर के रूप में उसकी शोहरत, उसके आत्मचित्रों द्वारा प्रचारित बेहद खूबसूरत औरत के रूप में उसका ग्लैमर था।
उसके स्वच्छंद व्यवहार की चर्चाओं ने भी खुशवंत सिंह को कुछ ऐसे आकृष्ट किया था कि उन मुलाकातों की याद ताउम्र ताजा रही। वे लिखते हैं कि पेंटर के लाहौर आने के कई हफ्ते पहले ही वह लोगों से उसके कारनामों के किस्से सुन चुके थे।
अमृता की आशिक़ी के किस्से
खुशवंत सिंह लिखते हैं कि अपने हंगेरियन कजिन से शादी करने से पहले भी पेंटर अमृता कई बार लाहौर आ चुकी थीं। लोग कहते थे कि वह अपने आशिकों को दो-दो घंटों के अंतराल से समय दिया करती है।
कभी-कभी तो रात में सोने जाने से पहले छह-सात को निबटा चुकी होती थीं।
आकर्षक जरूर, रूपसी नहीं
खुशवंत सिंह ने लिखा है, छोटा कद, पीला चेहरा, काले बालों के बीचों-बीच काढ़ी गई लंबी मांग, लिपिस्टक से लाल भरे-भरे कामुक होंठ और कीलों भरी गोल-मटोल नाक। उसे आकर्षक कहा जा सकता था, पर रूपसी हरगिज़ नहीं।
अमृता के आत्मचित्र उसकी आत्मरति की प्रतिछवियां मात्र थे। संभवत: उसकी देहदृष्टि वैसी ही आकर्षक होगी, जैसी उसने अपने चित्रों में अंकित की थी, लेकिन मुझे उसके साड़ी में छिपे सौंदर्य को जानने का मौका नहीं मिला।
पहली मुलाक़ात में पेंटर अमृता के व्यंग्यबाण
पेंटर अमृता के बारे में खुशवंत सिंह जो कभी नहीं भूल पाए, वह था उसका आक्रामक रवैया। वे लिखते हैं, उस दिन बातें खत्म करने के बाद वह कमरे का जायजा लेने जब भीतर आई तो वहां टंगे कुछ चित्रों की ओर इशारा करते हुए मैंने उसे बताया,ये मेरी पत्नी ने बनाए हैं। अभी वह नया-नया सीख ही रही है पेंटिग करना।
पेंटर अमृता ने उनकी ओर नजऱ डाली और मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘यह तो लग ही रहा है।’ उसके स्वर में छिपे व्यंग्य को लक्ष्य कर मैं भौंचक रह गया। समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे उसे मुंहतोड़ जवाब दूं। बहरहाल, अभी तो और भी बहुत कुछ होना था।
खुशवंत के लंच पर अमृता मेहमान
खुशवंत सिंह ने पेंटर अमृता के जीवन को खंगालते हुए लिखा है, कुछ हफ्तों बाद मैं अपने परिवार के पास मशोबरा चला गया। मेरे पिता के घर के ऊपर वाला घर चमनलाल के परिवार ने किराए पर ले रखा था और अमृता उन्हीं के घर में रहने आई हुई थी।
मैंने उन सबको अपने यहां लंच पर निमंत्रित किया। चमन, उसकी पत्नी हेलेन और पेंटर अमृता-तीनों दोपहर को हमारे घर आए।
चर्चा के केंद्र में खुशवंत सिंह का बच्चा
खुशवंत सिंह ने लिखा है, सदाबहार बलूत के नीचे वाले चबूतरे पर लंच के लिए मेज़ और कुर्सियां लगाई गई थीं। वहां से पहाड़ की ढलान और सामने फैली घाटी का विस्तार बड़ा ही मोहक लग रहा था।
मेरा सात माह का बेटा खेलते हुए अपने पैरों पर खड़ा होना सीख रहा था। भूरे घुंघराले बाल और बड़ी-बड़ी आंखें बड़ा ही प्यारा लग रहा था वह। हर कोई बारी-बारी से बच्चे से बातें कर रहा था और मेरी पत्नी की प्रशंसा कर रहा था कि उसने कितना सुंदर बेटा जना है।
बच्चे पर अमृता की फब्ती
वे आगे लिखते हैं, पेंटर अमृता बीयर के अपने मग की गहराई में खोई रही। जब सब लोग बच्चे से बातें कर चुके तो अमृता ने उस पर एक गहरी नजर डाली और फब्ती कसी, ‘कितना बदसूरत लडक़ा है यह!’
लोग सुनकर हक्के-बक्के रह गए। कुछ ने तो उस तीखे कटाक्ष पर विरोध भी जताया, लेकिन अमृता अपनी बीयर पीती रहीं।
पेंटर के बुरे व्यवहार पर शिमला में खुसर- पुसर
खुशवंत ने इस प्रसंग को कुछ यूं लिखा है, मेहमानों के जाने के बाद मेरी पत्नी ने साफ-साफ शब्दों में मुझे चेताया, ‘मैं इस ‘ब्लडी बिच’ को अपने घर दोबारा नहीं घुसने दूंगी।’
शिमला के सामाजिक दायरे में हर कोई पेंटर अमृता के इस दुर्व्यवहार को लेकर खुसर-पुसर कर रहा था। मेरी पत्नी की टिप्पणी भी हरेक के घर पहुंच चुकी थी।
अमृता ने कही खुशवंत को पटाने की बात
खुशवंत सिंह ने लिखा है कि पेंटर अमृता को भी पता चल गया था कि उनकी पत्नी ने उसके बारे में क्या कहा है। पेंटर अमृता ने लोगों से कहा, ‘मैं उस ब्लडी औरत को ऐसा सबक सिखाउंगी कि वह हमेशा याद रखेगी। उसके पति को अपने जाल में न फांसा तो मेरा भी नाम नहीं।‘
खुशवंत सिंह लिखते हैं, ‘मैं बड़ी बेताबी से फंसने के दिन का इंतजार करने लगा, लेकिन वह दिन कभी नहीं आया।’
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