बंद हुए मंदिरों के कपाट, किससे लड़ने गए देवता?

बंद हुए मंदिरों के कपाट, किससे लड़ने गए देवता?
घोघरधार में देवताओं और डायनों के युद्ध का संकेतिक फोटो। AI Generated Picture.

हिमाचल बिजनेस/ मंडी

काला महीना शुरू होते ही देवभूमि के सभी देवता मंदिरों को छोड़ कर चले गए हैं और मंदिरों के कपाट बंद हो गए हैं। वे युद्ध में चले गए  हैं और  जादू- टोना हावी हो गया है। काले महीने में देवता विभिन्न स्थानों पर डायनों के साथ युद्ध करेंगे।

अंतिम और निर्णायक युद्ध अमावस्या के रोज मंडी जिला की घोघरधार में होगा। युद्ध के विजेता का फ़ैसला पत्थर चौथ के दिन होगा और युद्ध का पूरा हाल नागपंचमी के दिन प्रदेश के विभिन्न मंदिरों में सुनाया जाएगा । जोगिन्द्रनगर  के चतुर्भुजा माता मंदिर में विजेता की घोषणा की जाएगी।

काले महीने की अमावस्या  खास

भाद्रपद यानी भादों अथवा काले महीने की अमावस्या का हिमाचल प्रदेश के अधिकतर क्षेत्रों का विशेष महत्व है। इस माह की अमावस्या को डैनी वांस, डैणवांस, डुंगवांस के नाम से जाना जाता है। इस दिन इस पहाड़ी राज्य की घोघर धार पर देवताओं और डायनों के बीच युद्ध होता है।

लोक मान्यता है कि इस दिन डायनें, तांत्रिक, जादू टोना जानने वाले लोग, देवताओं के गुर और चेले मंडी की घोघरधार पहुंचे होते हैं। वे देवताओं और डायनों के बीच होने वाले आखरी युद्ध में भाग लेते हैं।

पद्धर -ग्वाली के बीच पहाड़ी पर घोघर-धार

मंडी-पठानकोट नेशनल हाईवे पर स्थित पद्धर और ग्वाली के बीच उत्तर-पूर्व की पहाड़ी की चोटी पर घोघर-धार स्थित है। इस धार पर ज़्यादातर समतल क्षेत्र है, जहां देवताओं और डायनों के बीच युद्ध होता है। लोक मान्यता के अनुसार इस धार पर युद्ध का स्थान चिन्हित है और युद्ध के समय कोई भी उस स्थान में नहीं जाता है।

बेशक अब लोग और पर्यटक इस धार को डायना पार्क के नाम से भी जानते हैं। हवाई अड्डे के निर्माण की खबरों के बीच पहाड़ी पर स्थित यह स्थान मीडिया की सुर्खियों में रहा है।

झाड़ू पर सवार होती हैं डायनें

लोक मान्यता के अनुसार हिमाचल प्रदेश के अलग अलग स्थानों से डायनें झाड़ू पर बैठ कर घोघरधार के मैदान में पहुंचती हैं। किवदंती के अनुसार डायनें युद्ध में पलड़ा भारी होते ही लोगों, जानवरों और खेतों को लागत पर लगाती है।

यदि डायनें युद्ध में हार जाती हैं तो लागत में लगे लोगों के जीवन को ख़तरा होता है। युद्ध के दौरान लागत में लगाए जाने से बचने के लिए लोगों को अभिमंत्रित सरसों के दाने दिए जाते हैं जो वे अपनी जेब में रखते हैं।

बुरी शक्तियों से रक्षा करते देवता

इस दिन पूरे हिमाचल प्रदेश में दहशत का माहौल रहता है। देवी-देवता इन बुरी शक्तियों से युद्ध करके अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। देवताओं के गूर खेलते हैं और अंगारों पर चलकर भक्तों के ऊपर आने वाली आपदाओं को दूर करते हैं।

वैसे तो भादों माह में सब लोग घरों के बाहर दिया जला के रखते हैं, लेकिन डुंगवांस के दिन सब लोग दिया जलाते हैं, पटाखे फोड़ते हैं और आंगन में पुराने घड़े भी फोड़ते हैं।

चतुर्भुजा के दरबार में हार- जीत का फैसला

देवताओं और डायनों के बीच होने वाले युद्ध का परिणाम देवी देवताओं के गुर या पुजारी बताते हैं। अगर देवताओं की जीत हो तो सारा साल सुखमय रहता है, लेकिन फसलों के लिए अच्छा नहीं होता है। वहीं डायनों के जीतने पर जान-माल का नुक़सान होता है, जबकि फसल अच्छी होती है।

बसाही धार में स्थित मां चतुर्भुजा के दरबार में नागपंचमी के दिन विशेष भीड़ रहती है। इस दिन पुजारी द्वारा हार जीत का परिणाम सुनाया जाता है। मंदिरों में रात भर होम का आयोजन होता है तथा पुजारी अंगारों पर खेलकर भक्तों पर आई बला को टालते हैं।

जीत- हार के लिए जन विश्वास

बुजुर्गों का मानना है की देवताओ में हारने और डायनों के जीतने से सुख समृधि आती है। जन विश्वास है कि देव जीत के अहंकार में जश्न मनाते रहते हैं और भारी मानसून और ओलावृष्टि से फसलें बर्वाद हो जाती हैं।

जन विश्वास है कि यदि देवता हार जाएं तो वर्ष भर सुख-समृद्धि बनी रहती है। देवता जीते तो विनाश और डायनें जीते तो विकास , इस विषय को लेकर बड़ा विरोधाभास है।

खेल कर मदद करता देवता

शिमला और सोलन के गांवों में काले महीने की अमावस्या को डोगली की अमावस या चुड़ैल की रात कहते है। इस रात जितने भी तांत्रिक होते है वह अपनी  शक्तियों को जागृत कर किसी का अहित करने के लिए तंत्र का सहारा लेते हैं।

लोक मान्यता है कि शमशान से लेकर घरों तक काली शक्तियों का राज होता है, जिनसे बचने के लिए ऊपरी शिमला में तो देवता रात भर खेलते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते है।

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