बिजली महादेव : शिवलिंग पर गिरती बिजली, मक्खन से जुड़ जाता शिवलिंग
विनोद भावुक/ कुल्लू
कुल्लू जिला में व्यास और पार्वती नदी के संगम की 2464 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बिजली महादेव मंदिर स्थित है। हर 12 साल बाद यहां बिजली गिरती है, पर नुकसान नहीं करती है। बिजली का निशाना सिर्फ शिवलिंग होता है। शिवलिंग के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं, जिन्हें स्थानीय घरों से मक्खन इकट्ठा कंर उससे जोड़ा जाता है।
मक्खन ठोस बन जाता है, इसीलिए शिवलिंग का रंग सफेद हो जाता है। शिव भक्तों में इस मंदिर के प्रति विशेष आस्था है और सावन मास और शिवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में बिजली महादेव का आशीर्वाद लेने आते हैं।
आयातकार मंदिर, ढलवां छत
बिजली महादेव का मंदिर पर्वतीय शैली का बना है। नीचे ठोस पत्थरों का आयताकार आधार है, जिसके ऊपर काठकुणी शैली में मंदिर का मुख्य प्रकोष्ठ बनाया गया है। ऊपर ढलवां छत स्लेट से ढकी है। गर्भगृह में सफेद तिकोनाकार शिवलिंग स्थापित है।
बिजली महादेव का आयताकार मंदिर ग्यारह मीटर लम्बा और लगभग साढ़े सात मीटर चौड़ा है। दीवारें लकड़ी से पानी-गारा रहित चिनाई से बनी हैं। गर्भगृह के ऊपर ढलवां छत के ऊपर लम्बे शहतीर पर अनेक त्रिशूल गाड़े गए हैं।
बिजली महादेव प्रवेश द्वार के साथ बरामदा प्रदक्षिणा पथ का काम करता है। बरामदे के गवाक्षों में आकर्षक काष्ठ कार्य हुआ है। मंदिर के स्तम्भों पर सांप उकेरे गए हैं। दीवारों पर कृष्ण तथा रामलीला के चित्रण उकेरे गए हैं। रावण की ओर हवा में बंदूकें चलती भी दिखाई गई हैं।
देवविधि से गाड़ी जाती है धजा
बिजली महादेव मंदिर के समाने नंदी की दो प्रतिमाओं के साथ कुछ घड़े हुए पत्थर भी हैं। मंदिर के प्रांगण में अट्ठारह मीटर ऊंचा खम्भा है, जिसे धजा या ध्वज कहा जाता है। धजा में झंडा लगा रहता है। खम्भे पर बिजली गिरने, मंदिर की नई नई छत पड़ने और काहिका के दौरान देव विधि से इसे फिर से गाड़ा जाता है। बिजली महादेव का ध्वज कुल्लू के मंदिरों में सबसे लम्बा है।
शिवलिंग पर उतरता रुद्र का गुस्सा
एक किंवदंती के अनुसार रुद्र देव अपना गुस्सा बिजली के रूप में उतारते हैं। प्रकृति और मनुष्यों को रूद्र के महाविनाश से बचाव के लिए महाशिव ने इसे अपने शिवलिंग पर सहन करने का निर्णय लिया।
महाशिव ने बिजली गिरने पर शिवलिंग को होने वाली क्षति को जोड़ने के लिए मक्खन का उपयोग करने की बात कही। अद्भुत बात है कि बिजली महादेव का माखन से जुड़ा शिवलिंग अपना प्रारूप ग्रहण कर लेता है और माखन ठोस बन जाता है। सदियों से यह प्रक्रिया उसी तरह से चलती आ रही है।
मक्खन से जुड़ जाता शिवलिंग
पार्वती और व्यास नदियों के संगम पर एक पठार के शिखर पर स्वयं शिव पधारे और उन्होंने शिवलिंग का रूप धारण किया। उन्होंने रूद्र देवता को इस अग्निपात को एक वर्ष के स्थान पर बारह वर्ष में एक बार गिरने का आदेश दिया। हर बारह वर्ष के बाद यह बिजली महादेव के शिवलिंग पर बिजली गिरने की घटना दोहराई जाती है। टुकड़ों में बटे शिवलिंग को आसपास के गांवों से इकट्ठे किए गए माखन से जोड़ा जाता है जो खुद ही ठोस होकर पत्थर का रूप धारण कर लेता है।
गूंगा गड़रिया बोलने लगा
एक किंवदंती के अनुसार इस शिवलिंग के दर्शन सबसे पहले एक गूंगे गड़रिये को हुए थे। गड़रिये ने एक दिन एक टेकरी की ओट में एक गाय को खुद दूध की धार छोडते देखा तो बात मुखिया तक पहुंची। मुखिया को विश्वास नहीं हुआ। रात को उसे सपने में उस स्थान पर शिवलिंग स्थापित करने का आदेश हुआ।
मुखिया ने सपने में ही कहा कि अगर गूंगे गड़रिये को जबान मिल जाए तो वैसा ही करूंगा, जैसा निर्देश हुआ है। कहते हैं दूसरे रोज गड़रिये को जबान मिल गई और शिवलिंग की स्थापना हुई।
राजा को स्थापित करना पड़ा पुराना शिवलिंग
उनन्नीसवीं शताब्दी में कुल्लू के राजा ने बिजली महादेव के अनगढ़ शिवलिंग के स्थान पर काले पत्थर का कलात्मक शिवलिंग यहां स्थापित करना चाहा। चमत्कार देखिये कि वह सीधा खड़ा ही नहीं हुआ। राजा को स्वप्न आया कि वह परम्परागत लिंग को न छेड़े। इस पर पुराने शिवलिंग को ही वहां स्थापित किया गया और नया बनाया गया लिंग मंदिर के सामने खुले स्थान पर स्थापित किया गया।
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