बुढ़े नी मारी घटारी, छोरु बणेया सकारी
हिमाचल बिजनेस/धर्मशाला
कांगड़ा जनपद में एक कहावत है, ‘बुढ़े नी मारी घटारी, छोरु बणेया सकारी’। इस कहावत का साधारण अर्थ यह है कि घटारी का शिकार करना बेहद आसान है। पहाड़ के लोकजीवन के साथ गहरे से जुड़े इस पक्षी से हम सब परिचित हैं। खेतों में किसान जब बिजाई अथवा कटाई में जुटता है तो इसे कीड़े- मकौड़े खाते देखा जा सकता है।
पहाडी मैना के नाम से परिचित इस पक्षी को कांगड़ा में घटारी कहा जाता है, मंडी में स्यारटी तो सोलन में इसे ‘सर्याईटी’ कहते हैं। पहाड़ों में कई मुहावरों में इसका दखल है।
दुखद यह है कि पहाडी मैना का संसार पहाड़ से सिमटने लगा है। प्राणी विज्ञानियों का कहना है कि इस पक्षी की संख्या तेज़ी से घट रही है।
मंडी के सेरी मंच पर रोज पंचायत
घटारी एक बड़ा ही चिरपरिचित पक्षी है। यह कौवे और गौरय्या की तरह मानव बस्तियों के आस पास मिल जाती है। घटारी एक सर्वभक्षी पक्षी है। इसका विस्तार भारत में सभी जगह है। हिमाचल प्रदेश के अधिकतर जिलों में इस भोले पक्षी की उपस्थिति दर्ज की गई है।
छोटी काशी के नाम पर मशहूर हिमाचल की धार्मिक नगरी मंडी के ऐतिहासिक सेरी मंच के पास हर शाम सैंकड़ों की तादाद में घटारियां आती हैं। क्यों आती हैं, यह रहस्य कोई प्राणी विज्ञानी ही समझा सकता है।
टांडा मेडिकल कॉलेज की परेशानी
कांगड़ा के टांडा स्थित मेडिकल कॉलेज में घटारियों के शोर से मरीजों को ख़ासी परेशानी उठानी पड़ती है। साइलेंस जॉन में रात के सामी हजारों की संख्या में घटारियां इधर पहुंच कर चिल्लाना शुरू कर देती हैं।
कॉलेज प्रशासन ने उन्हें यहां से भागने की कई कोशिशें की हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। मरीज इस बारे में कई बार शिकायतें दर्ज करवाते आ रहे हैं।
लोककथा : मोर के पंजों से शान
एक लोककथा के मुताबिक घटारी और मोर की बहुत ही गहरी मित्रता थी। घटारी की जब शादी होने लगी तो शीशे में खुद को निहारते हुए उसकी नजर अपने बदसूरत पंजों पर गई। यह बात उसने मोर को बताई और कुछ दिनों के लिए मोर के पंजे उधार मांग लिए।
शादी के बाद घटारी का पति उसके पंजों पर फिदा हो गया। तब उसे डर लगने लगा कि मोर को उसके पंजे वापस करने पर पति कहीं उसे छोड़ ही न दे। इसी डर से वह कभी मोर को नहीं मिली। मोर को देखते ही वह भाग जाती है या छुप जाती है और मोर तभी से खूबसूरत होते हुए भी बदसूरत पंजों के साथ जी रहा है।
छत्तीसगढ़ का राजकीय पक्षी
सामान्य तौर पर भारत में सात प्रकार की मैना पाई जाती है। दरिया मैना, देशी मैना, तेलिया मैना, अबलखा मैना, पवई मैना, पहाड़ी मैना, गुलाबी मैना।
खेतों, नदियों के किनारे कीड़े खाते हुए, देने चुगते हुए या फिर मरे हुए जीवों का भोजन करते हुए घटारी को आमतौर पर देखा जा सकता है। मैना छत्तीसगढ़ का राजकीय पक्षी है।
खतरे का अलर्ट देने वाला पक्षी
घटारी किसी भी खतरे को भांप कर कोलाहल करने लगती है, जिससे कि अन्य जीव भी सर्तक हो जाते हैं। मैना को मौसम परिवर्तन या आपदा का पता काफी पहले चल जाता है।
ऐसा माना जाता है कि मैना खराब मौसम का अंदाजा 24 से 36 घंटे पहले लगा लेती है और जोर-जोर से हल्ला मचाने लगती है।
घरों मैं बनाती अपना घोसला
घटारी अपना घोंसला दीवार, सड़क के किनारे लगी लाइट, मकानों के छेद या पेड़ों की खोखले तनों पर बना लेती है। यह 4 से 6 अंडे देती है। इनका अंडे देने का समय जून-जुलाई का होता है।
चलो परिंदों की दुनिया में
इस धरा पर पक्षियों की बड़ी ही अद्भुत दुनिया वास करती है। कभी पक्षियों को धार्मिक संरक्षण भी प्राप्त है। आज पक्षी धार्मिक गतिविधि का ही हिस्सा नहीं, बल्कि पर्यावरण के नजदीक जाकर उसे अनुभव करने का एक अवसर प्रदान करते हैं। हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों के लिए वर्ल्ड वाचिंग पर्यटन का एक अच्छा माध्यम है।
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