भलेई माता की मूर्ति को क्यों आता है पसीना ? 

भलेई माता की मूर्ति को क्यों आता है पसीना ? 
Bhalai Mata Temple

मनीष वैद/ चंबा

यूं तो देवभूमि कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश में ऐसे मंदिरों, देवालयों और तीर्थस्थलों की कमी नहीं है, जिनकी मान्यताएं और रीति-रिवाज अनोखे हैं, लेकिन चंबा जिले में स्थित प्रसिद्ध देवीपीठ भलेई माता मंदिर की बात जरा हट के है। भलेई माता मंदिर अपनी एक अजीब मान्यता को लेकर अधिक जाना जाता है, जिस पर यहां आने वाले श्रद्धालु विशेष यकीन रखते हैं।

यहां माता भक्तों की इच्छा पूर्ण करने का संकेत देती है। मान्यता है कि अगर यहां आने वाले श्रद्धालु सच्चे मन से मां से मन्नत मांगे और उस समय मां की मूर्ति पर पसीना आ जाए तो भक्तों की मुराद अवश्य पूरी होती है।

दिन में कई बार माता को पसीना आता है और भक्त खुशी से मां के जयकारे लगाते हैं। भक्त यहीं पर बैठकर मां की मूर्ति पर पसीना आने का घंटों इंतजार किया करते हैं। ऐसा मानना है कि मूर्ति को पसीना आने के समय जितने भक्त मौजूद होते हैं, उन सबकी मुराद पूरी हो जाती है।

मंदिर के प्रति खास आस्था

देवभूमि हिमाचल प्रदेश में चंबा जिले से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर चोहड़ा डैम के नजदीक शक्ति पीठ भलेई माता का मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है। माता रानी को भलेई को जगदी ज्योत के नाम से भी पुकारते हैं।
Bhalai Mata Temple

देवभूमि हिमाचल प्रदेश में चंबा जिले से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर चोहड़ा डैम के नजदीक शक्ति पीठ भलेई माता का मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है। माता रानी को भलेई को जगदी ज्योत के नाम से भी पुकारते हैं।

यहां पर पूरे साल ही भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। भलेई माता के मंदिर में वैसे तो हर दिन हजारों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं, लेकिन नवरात्रों में यहां विशेष धूम रहती है।

मंदिर स्थापना से जुड़ी कहानी

भलेई माता मंदिर की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि भद्रकाली माता स्वयं ही भ्राण नामक स्थान पर एक बावड़ी में प्रकट हुई थीं। इसलिए इसे स्वयंभू माता भी कहा जाता है। उस समय माता ने चंबा के राजा प्रताप सिंह को सपने में दर्शन देकर उन्हें चंबा में स्थापित करने का आदेश दिया था।
Bhalai Mata Temple

भलेई माता मंदिर की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि भद्रकाली माता स्वयं ही भ्राण नामक स्थान पर एक बावड़ी में प्रकट हुई थीं। इसलिए इसे स्वयंभू माता भी कहा जाता है। उस समय माता ने चंबा के राजा प्रताप सिंह को सपने में दर्शन देकर उन्हें चंबा में स्थापित करने का आदेश दिया था।

राजा ने भ्राण पहुंचकर विद्वानों के कहे अनुसार पूर्ण विधि-विधान से माता भद्रकाली भलेई की प्रतिमा को सुंदर पालकी में विराजमान करवाकर चंबा की ओर प्रस्थान किया, परंतु भलेई पहुंचने पर माता को यह स्थान भा गया। इस पर माता ने पुन: राजा को स्वप्न में वहीं भलेई में स्थापित करने को कहा।

राजा ने भलेई में बनवाया मंदिर

राजा को भलेई माता पर अटूट विश्वास था और दिन-रात मां की सेवा में रहते थे। स्वप्न में मां द्वारा दी गई आज्ञा के अनुसार राजा ने मां की वहीं पर एक मंदिर बनवाकर देवी प्रतिमा को स्थापित करवा दिया।
Bhalai Mata Temple

राजा को भलेई माता पर अटूट विश्वास था और दिन-रात मां की सेवा में रहते थे। स्वप्न में मां द्वारा दी गई आज्ञा के अनुसार राजा ने मां की वहीं पर एक मंदिर बनवाकर देवी प्रतिमा को स्थापित करवा दिया।

शुरू में कुछ समय महिलाओं का प्रवेश वर्जित रखा गया, लेकि न समय के साथसाथ यह परंपरा खत्म हो गई और वर्तमान में सभी लोग बिना कि सी तरह के भेदभाव के मंदिर में दर्शन करते हैं।

सैकड़ों साल पुराना है मां का मंदिर

कहा जाता है कि यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है। इसका निर्माण चंबा के राजा प्रताप सिंह ने करवाया था, जो को अत्यंत धार्मिक राजा के रूप में विख्यात थे। भलेई एक ऐसा शक्तिपीठ हैं जिसके बारे में यहां के पुजारी कहते हैं कि देवी माता इसी गांव में प्रकट हुई थी।

मंदिर के गृभ गृह में मां भलेई की जो प्रतिमा है, वह सैकड़ों वर्ष पूर्व भलेई के समीप भ्राण नामक स्थान पर एक बावड़ी में प्रकट हुई थी।

भलेई माता मंदिर की निर्माण शैली

भलेई मंदिर का निर्माण शिखर शैली में किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में माता की दो फुट ऊंची काले रंग की चर्तुभुजा प्रतिमा स्थापित है। माता की प्रतिमा को देखकर ऐसा लगता है कि माता अभी अभी कुछ बोल कर चुप हुई हैं।

1960 के दशक में एक अन्नय भक्त चंबा निवासी दुर्गा बहन की भक्ति से प्रसन्न होकर मां भलेई ने स्वप्न में दर्शन देकर दुर्गा बहन को सर्वप्रथम उनके दर्शन करने के आदेश दिए थे। माँ ने कहा था कि इसके बाद महिलाएं भी मंदिर में भलेई के दर्शन कर सकती हैं।

चोरों को कर दिया अंधा

कहते हैं कि साल 1973 के आसपास भलेई माता मंदिर में 2 चोरों ने माता की मूर्ति और अन्य कीमती सामान चुरा लिया, परंतु वे उस सामान को चुरा कर अधिक दूर न जा सके।

जैसे ही वह पास लगते चोहड़ा में दरिया को पार करने की कोशिश करते वो अंधे हो जाते और जैसे वापस मुड़ते ठीक हो जाते। काफी देर तक ये सब उनके साथ घटित होता रहा। चोर घबरा गए और डर कर वहीं मूर्ति और अन्य सामान को रखकर भाग गए।

रज्जू मार्ग की बात घोषणा तक

ऐतिहासिक शक्तिपीठ भलेई माता मंदिर तक पहुंचने के लिए बस अड्डे से मंदिर परिसर तक रज्जू मार्ग बनाने की घोषणा पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह ने की थी।

बात अभी तक घोषणा से आगे नहीं बढ़ पाई है। निश्चित तौर पर रज्जू मार्ग बनने के बाद श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुंचने के लिए आसानी होगी।

 इस विषय से संबन्धित अन्य पोस्टें – 

  1. जनता को मिले पानी, जान दे गई चंबा की रानी
  2. केलंग बजीर : कुगती में क्यों वर्जित है मुर्गा खाना ?
  3. भरमाणी के दर्शन बिना क्यों नहीं मिलता मणिमहेश यात्रा का फल?
  4. राजा राजसिंह : अढ़ाई घड़ी खोपड़ी के बिना लड़ा राजा
  5. खज्जीनाग मंदिर : भाई मानकर पूजे जाते खज्जीनाग
  6. चंद्रशेखर मंदिर : नंदी के पीछे लटका ग्वाल

himachalbusiness1101

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *