महारानी बिंद्रा : पेरिस में शुरू प्रेम कहानी, शिमला में लौटाई प्रेम निशानी
हिमाचल बिजनेस/ शिमला
अमर कहानी महारानी बिंद्रा के प्रेम की, जिसका प्रेम परवान चढऩे के साथ ही दफन हो गया था। प्रेम की इस कहानी की शुरूआत फैशन की राजधानी पेरिस से शुरू हुई, लेकिन इसका समापन शिमला में मुहब्बत की अनमोल निशानी लौटाने के साथ हुआ था।
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मुहब्बत वह फसाना है, जो शुरू तो आंखों से होता है, परवान इसे दिल चढ़ाता है, लेकिन खत्म सांसों से होता है। यह एक ऐसा एहसास है, जिसकी कशिश लेकर प्रेमी ताउम्र अपने प्रेम की सलामती की दुआ मांगते हैं।
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रोमांस की कई कहानियां त्रास्दी में तबदील हो जाती हैं, लेकिन प्रेम जीवन की आखिरी सांस तक साथ रहता है। महारानी बिंद्रा के प्रेम की कहानी भी दुखांत भरी प्रेम कहानी है।
पढ़ाई के लिए भेजा पेरिस
महारानी ब्रिंदा जुब्बल रियासत के राजा के भाई की बेटी थी। ब्रिंदा जब सात साल की थी तो उसकी शादी कपूरथला के महाराजा जगतजीत सिंह के नौ वर्षीय बेटे परमजीत सिंह के साथ तय कर दी गई।
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महाराजा जगतजीत सिंह क्योंकि खुले विचारों के थे, इसलिए वह चाहते थे कि ब्रिंदा को घर लाने से पहले पढ़ाई-लिखाई के लिए विदेश भेजा जाए। इसी विचार के चलते दस वर्ष की आयु में उसको पढऩे के लिए पेरिस भेज दिया गया।
फ्रांसीसी लड़के से हुआ प्यार
पेरिस में जो हुआ, उसे महारानी बिंद्रा जीवन भर कभी नहीं भूल पाई। किसी और की अमानत होने के बावजूद पेरिस में उसे एक फ्रांसीसी लड़के से प्यार हो गया।
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तब तक ब्रिंदा 16 वर्ष की हो चुकी थी और यौवन की दहलीज पर पांव रख चुकी थी। जवानी के इन्हीं दिनों में वह ‘गये’ के करीब आई और प्रेम के पाश में कैद हो गई।
प्रेम की निशानी सोने का सिक्का
प्रेमियों के बीच मुहब्बत की निशानियों का अदान- प्रदान भी हुआ। महारानी बिंद्रा ने गेय को मुहब्बत की निशानी के तौर पर सोने का एक सिक्का भेंट किया, जिसे ‘गेय’ ताउम्र अपने साथ रखता था।
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वह सिक्का उसके लिए खास था, क्योंकि वह उसकी प्रेमिका की निशानी थी। लड़ाई के दौरान जब गेय की मौत हुई, तब भी वह सिक्का उसकी जेब में मौजूद था।
दुनिया से छुपाया नहीं प्रेम
महारानी बिंद्रा का प्रेम सफल नहीं हो सका, लेकिन फिर भी उसने अपने प्रेम को जगजाहिर करने की हिम्मत दिखाई। ब्रिंदा ने अपनी इस प्रेम कहानी को दुनिया से कभी नहीं छुपाया।
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महारानी बिंद्रा ने अपनी आत्मकथा में बड़े ही बेबाक तरीके से पेरिस में हुए प्रेम को स्वीकार किया है। ब्रिंदा अपनी आत्मकथा में लिखती हैं, ‘पेरिस में मुझे ‘गये’ नाम के एक सज़ीले नौजवान से प्यार हो गया। ‘गये’ सेना में अफसर था।
शादी के बाद फिर पेरिस में मुलाक़ात
अपनी आत्मकथा में बिंद्रा लिखती हैं, ‘शादी के पांच साल बाद मुझे एक बार फिर पेरिस जाने का मौका मिला। हम दोनों फिर मिले।‘ बिंद्रा ने लिखा है कि गये उस दिन अपनी सैन्य अफसर वाली वर्दी में था।
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वह अपने साथ सोने का वह सिक्का भी लाया था, जो बिंद्रा ने प्रेम की निशानी के तौर पर कभी उसे तोहफे में दिया था।
प्रेमी की मौत, लौटाई प्रेम निशानी
साल 1916 में गये लड़ाई में मारा गया। उसके भाई ने सालों बाद ब्रिंदा से मुलाकात करके उसका सोने का सिक्का जब यह कहते हुए महारानी बिंद्रा को वापस लौटाया कि मौत के वक्त ‘गये’ की जेब में था।
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गये के साथ बिताए मुहब्बत के पल उसकी आंखों के सामने तैर गए। प्रेमी के भाई से प्रेम की निशानी को संभाल कर रखने की बात सुन कर बिंद्रा अपने आपको रोने से नहीं रोक सकी।
अमर हो गई प्रेम कहानी
महारानी ब्रिंदा का साल 1970 में शिमला में निधन हो गया। नाकाम मुहब्बत की त्रास्द दास्तां इसी के साथ खत्म हो गई, लेंकिन अपनी तरह की यह प्रेम कहानी सदा के लिए अमर हो गई।
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विशेष यह कि अपने प्रेम को बिंद्रा ने दुनिया से छुपाने के बजाए अपनी आत्मकथा में सार्वजनिक कर हिम्मत का काम किया।