यहां क्यों रहती हैं बांधने से अधिक राखी तोड़ने पर नजर?
हिमाचल बिजनेस/ कुल्लू
भाई और बहन के रिश्ते का पवित्र त्यौहार रक्षाबंधन 19 अगस्त को देशभर में मनाया जा रहा है। भाई को राखी बांधने के लिए बहनें साल भर इंतजार करती हैं और इस मौके पर भाई भी अपनी बहन को उपहार देते हैं। भाई अपनी बहन की रक्षा करने का प्रण लेता है।
देश के कई राज्यों में रक्षाबंधन को लेकर अलग-अलग मान्यताएं और परंपराएं हैं। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में भी एक अनोखी परंपरा है। इस घाटी के कई गांवों में यह त्योहार भाई-बहन के प्यार और स्नेह के अलावा जीजा-साली और भाभी-देवर के अनूठे मजाक से भी जुड़ा हुआ है।
यह लोक परंपरा अभी तक सांस ले रही है। इस परंपरा के अनुसार भाई की कलाई पर बहन की तरफ से बांधे गए रक्षा सूत्र की रक्षा कुल्लू दशहरा उत्सव तक भाई को करनी होती है।
इस दौर उस युवक/ व्यक्ति की भाभी अथवा साली हंसी- मज़ाक में उसकी कलाई से राखी तोड़ने की कोशिश करती हैं। रक्षा सूत्र बचाने और तोड़ने का यह मुक़ाबला बेहद रोचक होता है। जीत हार के बाद घरों में जश्न मनाने की परंपरा भी जुड़ी हुई है।
दशहरा उत्सव तक राखी की रक्षा
परंपरा के मुताबिक कुल्लू में रक्षाबंधन पर बहन अपने भाई के हाथ राखी तो बांधती है, लेकिन फिर उसे तोड़ने के लिए साली में होड़ लगी रहती है। भाई को दशहरा उत्सव तक अपनी उस राखी की रक्षा करनी होती है।
रक्षाबंधन के दिन से ही साली या फिर भाभी की नजर भाई के हाथ की कलाई पर रहती है। हंसी-मजाक के बीच इसे तोड़ने की इस परंपरा का आज भी कुल्लू जिले में कई ग्रामीण क्षेत्रों में निर्वाह किया जाता है।
जीजा – साली के बीच मुक़ाबला
मनाली के कुछ गांवों में रक्षाबंधन से लेकर दशहरा तक राखी को लेकर जीजा- साली के बीच एक अनोखी प्रतियोगिता शुरू हो जाती है। यहां साली को इस बात का बेसब्री से इंतजार रहता है कि वह अपने जीजा की कलाई पर बांधी गई राखी को तोड़ सकें।
अगर साली ने अपने जीजा की राखी को दशहरे से पहले तोड़ दिया तो साली की जीत हो जाती है। अगर साली राखी को नहीं तोड़ पाई तो ऐसे में यह जीत जीजा की मानी जाती है। इस जीत को लेकर घर में जश्न भी मनाया जाता है।
रघुनाथ के रथ पर उतारी जाती है राखी
कुल्लू की उझी घाटी के लोग बताते हैं कि इस अनूठी परंपरा के पीछे एक तर्क ये है कि भाई को बहन की रक्षा के सारे सूत्र आने चाहिए। अगर भाई अपनी राखी को दशहरे तक बचाने में कामयाब होता है, तो वह अपनी बहन व समाज की रक्षा करने में भी सक्षम है।
एक समय वह भी था, जेबी कुल्लू में राखी बांधने की मुख्य भूमिका पुरोहित निभाते थे। कालांतर में पुरोहित की जगह बहन ने भाई को राखी पहनाना शुरू कर दिया। अब कुल्लू में रक्षाबंधन का त्यौहार परमुखता से मनाया जाता है, लेकिन कुछ पुरातन परम्पराएँ आज भी इसका एक हिस्सा हैं।
पुरातन परंपरा का अनुसरण करते हुए आज भी कुल्लू के बहुत से लोग कुल्लू में होने वाले अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के दौरान की भगवान रघुनाथ के रथ पर राखी उतारते हैं।
कृष्ण-द्रौपदी से जुड़ी कहानी
रक्षाबंधन से जुड़ी एक पौराणिक कथा के मुताबिक महाभारत के समय एक बार भगवान कृष्ण की अंगुली में चोट लग गई और खून बहने लगा। तब कृष्ण की सखी द्रौपदी ने अपने आंचल का पल्लू फाड़कर उनकी कटी अंगुली में बांध दिया।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उसी दिन से रक्षासूत्र या राखी बांधने की परंपरा शुरू हुई। जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तब श्रीकृष्ण ने ही उनकी लाज बचाकर सबसे उनकी रक्षा की थी।
इस विषय से संबन्धित अन्य पोस्टें –