लोकसंस्कृति के संरक्षण के लिए किए प्रयास बेशुमार, डॉ. गौतम शर्मा ‘व्यथित’ को मिलना चाहिए पद्म पुरस्कार

लोकसंस्कृति के संरक्षण के लिए किए प्रयास बेशुमार, डॉ. गौतम शर्मा ‘व्यथित’ को मिलना चाहिए पद्म पुरस्कार
विनोद भावुक। धर्मशाला
डॉ. गौतम शर्मा ‘व्यथित’ ने प्रदेश की भाषा, संस्कृति, लोक संगीत, नृत्य, वादन, लोक नाट्य और हिंदी साहित्य को अपने लेखन, निर्देशन और दस्तावेजीकरण के माध्यम से नई पहचान दिलाई है। उन्होंने काँगड़ा–चंबा की सांस्कृतिक धरोहरों को गांव- कूचे से उठाकर प्रदेश, देश और विदेश तक पहुँचाया है। 86 साल की उम्र में भी वे लोक कलाकारों को दिशा, प्रेरणा और मंच देने वाले एक संस्कृति साधक की भूमिका निभा रहे हैं।
डॉ. ‘व्यथित’ ने सारी उम्र आम आदमी के दुःख–दर्द को शब्दों में पिरोने के साथ ही लोक कलाओं को संरक्षित करने का काम किया है। काँगड़ा लोक साहित्य परिषद के माध्यम से उन्होंने लोक गायकों, नर्तकों, वादकों और लोक नाट्यकारों को सामने लाने का अद्भुत प्रयास किया है। साहित्य, संस्कृति और लोककला के संरक्षण में वे एक सशक्त हस्ताक्षर हैं।
अध्यापन के लिए समर्पित व्यक्तित्व
शिक्षा जगत में ‘व्यथित’ का सफ़र 1957 में प्राथमिक शिक्षक से शुरू हुआ। 1974 में गुरुनानक विश्वविद्यालय अमृतसर से पीएच.डी. कर वे हिंदी विभाग के पहले शोधार्थी बने। वे धर्मशाला कॉलेज में दो दशक तक प्राध्यापक और बाद में प्राचार्य रहे। सेवानिवृत्ति के बाद भी वे कई विश्वविद्यालयों और संस्थानों में अध्यापन व शोध निर्देशन से जुड़े रहे।
उन्होंने विजयशील शिक्षा संस्कृति संस्थान की स्थापना कर 1982 में विजय शील आदर्श स्कूल शुरू किया। वर्ष 1984 में इसी शिक्षण संस्थान की एक शाखा चड़ी गाँव में शुरू की। विजयशील आदर्श स्कूल 2019 तक जमा दो तक शिक्षा देता रहा। उन्होंने अनेक शोधार्थियों को पी.एच.डी. और दर्शन निष्णात की उपाधि तक पहुँचाया है। कई विदेशी शोधकर्ताओं ने भी उनसे हिमाचली लोक संस्कृति और भाषा पर अध्ययन किया है।
लोक संस्कृति के संरक्षण की पहल
साल 1973 में व्यथित ने ‘काँगड़ा लोक साहित्य परिषद’ और 1978 में ‘युवा बाल विकास मंच’ की स्थापना की। राजमंदिर नेरटी में उन्होंने लोक साहित्य-संस्कृति पुस्तकालय की नींव रखी, जिसमें काँगड़ा की लोक विधाओं का दस्तावेजीकरण किया गया। कांगड़ा के प्रसिद्ध महिला विवाह नृत्य ‘झमाकड़ा’ को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक पहुँचाने में भी उनका योगदान अमूल्य है।
वे प्रदेश भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी, साहित्य अकादमी (दिल्ली), डोगरी सलाहकार समिति, आकाशवाणी धर्मशाला, उत्तर क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र पटियाला और जैसे मंचों से जुड़े रहे हैं। वे अक्षर धारा और वाणेश्वरी जैसे प्रकाशनों के संपादन कर रहे हैं।
डॉक्यूमेंटेशन और फिल्म मेकिंग
डॉ. व्यथित न केवल साहित्यकार, बल्कि दस्तावेज़ीकरण और फ़िल्म निर्माण में भी अग्रणी रहे। उन्होंने “गीत गाया पर्वतों ने”, ‘सुरभि’ और “नैनसुख” जैसी फ़िल्म परियोजनाओं में योगदान दिया। संगीत नाटक अकादमी के सहयोग से उन्होंने 200 से अधिक लोक कला, लोक गीत और त्योहारों का वीडियो दस्तावेजीकरण किया।
उनकी अंतरराष्ट्रीय भागीदारी भी उल्लेखनीय है। 2011 में वे न्यूयॉर्क में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि मंडल के सदस्य बने। 2022 में ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम में स्रोत पुरुष के रूप में उन्हें आमंत्रित किया गया।
58 पुस्तकों का लेखन
उनकी साहित्यिक यात्रा 1969 में हिमाचली पहाड़ी काव्य संग्रह ‘चेते’ से शुरू हुई और आगे ‘अनुभूति का दर्द, अंजुरी (ग़ज़ल संग्रह), काग़ज़ का हंस, रंग अतीत के जैसे अनेक महत्वपूर्ण संग्रह सामने आए।
उन्होंने हिंदी और पहाड़ी भाषाओं में 58 पुस्तकें लिखी हैं।
उनकी कृतियों में कथा, उपन्यास, कविता, लघुकथा, लोकगीत, लोककला, आलोचना, मोनोग्राफ और शोधपरक ग्रंथ शामिल हैं।
शोध का विषय बना साधक का जीवन
‘व्यथित’ केवल साहित्यकार या सांस्कृतिक कर्मी ही नहीं, एक जीवंत संस्था हैं। उन पर अब तक कई शोध कार्य हुए हैं। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला में वर्ष 2004-2005 में मीना शर्मा ने ‘डॉ. गौतम शर्मा ‘व्यथित’ व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ पर लघु शोध प्रबंध तैयार किया।
रमन शर्मा ने उनके ग़ज़ल संग्रह ‘अंजुरी’ का मूल्यांकन किया है। 2023 में प्रो. सुरेश शर्मा ने ‘काँगड़ा जनपदीय लोक संगीत एवं लोक नाट्य में डॉ. गौतम शर्मा ‘व्यथित’ का योगदान’ विषय पर पीएच.डी. की है।
संस्कृति के संरक्षण के लिए सम्मान
डॉ. गौतम शर्मा ‘व्यथित’ को साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए अनेक छात्रवृत्तियाँ और सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें 1987-88 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और प्रदेश भाषा संस्कृति अकादमी से छात्रवृत्ति मिली। 1989-91 में मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार से वरिष्ठ फेलोशिप मिली।
उन्हें राष्ट्रपति सम्मान (1986), हिमाचल केसरी अवार्ड, दलाई लामा द्वारा लोक संस्कृति सम्मान (1988), राष्ट्रीय साहित्य अकादमी भाषा सम्मान (2007), हिमाचल गौरव पुरस्कार (2022) और शान-ए-हिमाचल अवार्ड (2014) जैसे दर्जनों पुरस्कार प्रदान किए गए।
विरासत को सहेजने की कोशिश
15 अगस्त 1938 को कांगड़ा ज़िले के शाहपुर क्षेत्र के नेरटी गांव में पैदा हुए गौतम शर्मा के दादा वैद्य सरण दास दीक्षित आयुर्वेद और ज्योतिष के प्रकांड विद्वान और पिता फ़क़ीर चन्द लोक चिकित्सक और कृषक थे। उनकी धर्मपत्नी स्वर्णलता शर्मा एक कुशलगृहणी, अध्यापिका और सांस्कृतिक कर्मी हैं।
बेटी मीनाक्षी दत्ता रेणु, पुत्र दुर्गेश व लोकेश पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। साहित्य और लोक संस्कृति के सजग प्रहरी डॉ. गौतम शर्मा ‘व्यथित’ निस्संदेह पद्म पुरस्कार के सबसे प्रबल दावेदार हैं।