शिब्बोथान : वारेन हेस्टिंगज को जब सांप ने जकड़ा

शिब्बोथान : वारेन हेस्टिंगज को जब सांप ने जकड़ा
शिब्बोथान मंदिर।

कपिल मेहरा/ भरमाड़

कांगड़ा जिले के भरमाड़ कस्बे में स्थित सिद्धपीठ शिब्बोथान धाम में रविवारीय मेले चल रहे हैं। मुगलकालीन शैली से निर्मित इस मंदिर में सभी धर्मों के लोग दर्शन करने आते हैं। इस ऐतिहासिक मंदिर के साथ ब्रिटिश शासक वारेन हेस्टिंगज का किस्सा जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि 18वीं शताब्दी में वे यहां आए थे।

ब्रिटिश शासक ने मंदिर के पास अपनी चारपाई लगा ली। ऐसा करते ही उन्हें एक सांप ने जकड़ लिया। मंदिर में मौजूद महंत ने जब अरदास की तो सांप ने उन्हें छोड़ दिया।

वारेन हेस्टिंगज इस चमत्कार से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मंदिर के समीप एक कुएं का निर्माण करवाया और और पांच कनाल भूमि मंदिर के नाम दान में दी।

मंदिर को लेकर कई कथाएं

शिब्बोथान धाम हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। हर साल सावन-भादो में यहां रविवारीय मेले लगते हैं। भरमाड़ को सिद्ध संप्रदाय गद्दी, सिद्ध बाबा शिब्बोथान और सर्व व्याधि विनाशन के रूप में भी जाना जाता है।

इस मंदिर के संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं और कई इतिहासकारों ने भी मंदिर की विशेष मान्यता को लेकर अपने विचार प्रकट किए हैं।

12वीं सदी के 31 संगल

बाबा शिब्बोथान के गर्भगृह में छत्तर मौजूद है। इसके अलावा मछंदर नाथ, गोरखनाथ, क्यालू बाबा, अजियापाल, गूगा जहरवीर मंडलिक, माता बाछला, नाहर सिंह, कामधेनु, बहन गोगड़ी, बाबा शिब्बोथान, बाबा भागसूनाग, शिवलिंग, 10 पिंडियां और बाबाजी के 12वीं शताब्दी के लोहे के 31 संगल मौजूद है। इन संगलों की 101 लड़ी है।

गूगा नवमी को निकले जाते हैं संगल

मंदिर के महंत बताते हैं कि जब बाबा शिब्बो को जहरवीर जी ने वरदान दिए और अपने स्थान पर वापस जाने लगे तो अपने अंश को संगलों के रुप में रखकर वह अपनी मंडली सहित यहां विराजमान हो गए।

यह संगल केवल गूगा नवमी को ही निकालकर बाबा शिब्बो थान के थड़े पर रखे जाते हैं। नवमी के दिन पुनः इन्हें अगली गूगा नवमी तक लकड़ी की पेंटी में रख दिया जाता है। यह पीट करीब 17वीं शताब्दी की बताई जाती है।

शिव के अवतार बाबा शिब्बोथान

मंदिर के महंत के अनुसार बाबा शिब्बोथान कलियुग में भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं। कहा जाता है कि लगभग 600 वर्ष पूर्व भरमाड़ के निकट सिद्धपुरघाड़ के आलमदेव के घर में शिब्बू नामक बालक ने जन्म लिया।

बाबा शिब्बो जन्म से पूर्ण रूप से अपंग थे। उन्होंने जाहरवीर गूगा जी की 2 वर्षों तक घने जंगलों में तपस्या की। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर जाहरवीर गुग्गा पीर ने बाबा शिब्बो को तीन वरदान दिए।

बाबा शिब्बो को मिले ये तीन वरदान

प्रथम वरदान में उन्होंने कहा कि यह स्थान आज से शिब्बोथान नाम से प्रसिद्ध होगा। दूसरे वरदान में उन्होंने कहा कि तुम नागों के सिद्ध कहलाओगे और इस स्थान से सर्पदंशित व्यक्ति पूर्ण रूप से ठीक होकर जाएगा।

तुम्हारे कुल का कोई भी बच्चा अगर यहां पानी की तीन चूलियां जहर से पीड़ित व्यक्ति को पिला देगा तो पीड़ित व्यक्ति जहर से मुक्ति पाएगा और स्वस्थ हो जाएगा।

तीसरे और अंतिम वर में उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर बैठकर तुमने तपस्या की है, उस स्थान की मिट्टी जहरयुक्त स्थान पर लगाने से विदेश में बैठा व्यक्ति भी जहर से मुक्ति पाएगा।

जहर का प्रभाव कम करता है बाबा जी का भगारा

जिस बेरी और बिल के पेड़ के नीचे बैठकर बाबा शिब्बो ने तपस्या की वह कांटों से रहित हो गई है। ये बेरी आज भी मंदिर परिसर में हरी-भरी है। मंदिर के समीप ही सिद्ध बाबा शिब्बोथान का भगारा स्थल भी मौजूद है।

यहां से लोग मिट्टी अर्थात भगारा अपने घरों में ले जाते हैं और इसे पानी में मिलाकर अपने घरों के चारों ओर छिड़क देते हैं।लोगों की आस्था है कि बाबा जी का भगारा घरों में छिड़कने से घर में सांप, बिच्छू या अन्य घातक जीव-जंतु प्रवेश नहीं करते हैं।

यह भी है लोक आस्था

कुछ लोगों की यह भी आस्था है कि अगर किसी व्यक्ति को सांप या बिच्छू या कोई अन्य जीव काट ले तो काटे गए स्थान पर बाबा जी का भगारा लगाने से जहर का प्रभाव कम हो जाता है। मंदिर परिसर के नजदीक हनुमान और शिव मंदिर भी हैं, जहां पर लोग पूजा-अर्चना करते हैं। मन्नत पूरी होने पर लोग मंदिर में अपनी श्रद्धानुसार गेहूं, नमक व फुल्लियों का प्रसाद चढ़ाते हैं। मंदिर में माथा टेकने के बाद लोग मंदिर की परिक्रमा भी करते हैं।

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