सिंध के गांधी: शिक्षक की मिसाल, जलाई क्रांति की मशाल
विनोद भावुक/ मंडी
स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान मंडी के शिक्षक हरदेव सिंह की गतिविधियां इतनी विस्तृत थीं कि लोग उन्हें सिंध के गांधी के नाम से पुकारते थे। वतन को आजाद करवाने के लिए उन्होंने साल 1913 में अध्यापक की नौकरी छोड़ दी और अमेरिका होते हुए जापान पहुंचे और फिर वहां से शंघाई पहुंच कर गदर पार्टी में शामिल हो गए।
वतन लौटे तो मुंबई, अमृतसर और कश्मीर में क्रांति की अलख जगाई। कराची में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन को धार देने के कारण वे सिंध के गांधी कहलाए।
वरिष्ठ साहित्यकार एवं उपन्यासकार गंगा राम राजी ने स्वतन्त्रता के इस रणबांकुरे की ऐतिहासिक गाथा को उपन्यास में उतारा है।
मंडी रियासत तक गदर की गूंज
अमेरिका और कनाडा के भारतीयों ने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के एस्टोरिया में 25 जून 1913 को देश को आजाद करवाने के लिए गदर पार्टी बनाई। इस संगठन ने गदर पार्टी के सोहन सिंह भावना, करतार सिंह सराभा, लाला हरदयाल के कार्यों ने भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को उत्प्रेरित किया।
सात समंदर पार अपने वतन को आजाद करवाने को लेकर शुरू हुई इस जंग का असर पहाड़ी रियासत मंडी में हुआ और यहां के कई देशभक्त गदर आंदोलन में कूद गए। हरदेव सिंह उनमें एक थे, जिन्हें सिंध का गांधी कह कर पुकारा गया।
क्रांतिकारी साहित्य लेकर वतन वापसी
वतन को आजाद करवाने की हसरत में 1913 में हरदेव सिंह ने नौकरी को अलविदा कह दिया। वह अमेरिका होते हुए जापान पहुंचे और फिर वहां से शंघाई चले गए। वहां उनकी मुलाकात गदर पार्टी के नेता डॉक्टर मथुरा सिंह से हुई।
साल 1914 में गदर पार्टी का बहुत सा साहित्य लेकर क्रांतिकारी हरदेव सिंह भारत लौटे। वतन लौट कर सिंध के गांधी ने गदर पार्टी की गतिविधियों का प्रचार प्रसार शुरू कर दिया।
सिंध के गांधी का खिताब
हरदेव सिंह ने डॉक्टर मथुरा सिंह के साथ मिल कर कश्मीर, अमृतसर और मुंबई में गदर पार्टी के संगठन बनाए। हरदेव सिंह मुंबई से मंडी लौट आए। यहां उन्होंने गदर के आंदोलन को धार दी और मंडी व कांगड़ा में संगठन की गतिविधियों को तेज किया।
उन्होंने शिमला की पहाड़ी रियासतों में भी गदर पार्टी के क्रांतिकारी उद्देश्यों का प्रचार किया। उनकी गतिविधियां इतनी बड़ी थी कि उन्हें लोगों ने सिंध के गांधी के नाम से पुकारना शुरू कर दिया था।
अंग्रेजों की आंखों में झोंकी धूल
19 फरवरी 1915 को मंडी के गदर पार्टी के कई नेताओं को ब्रिटिश पुलिस ने पकड़ लिया। सात मार्च को मंडी में सिंध के गांधी हरदेव सिंह के घर में भी पुलिस ने छापा मारा, लेकिन वह पार्टी का साहित्य अपनी भतीजी के घर में छुपाकर कर पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर फरार हो गए।
हालांकि मंडी के क्रांतिकारियों के पकड़े जाने और उनको लाहौर में सजा होने के बाद संगठन की गतिविधियां मंद पड़ गई।
नहीं आए पुलिस के हाथ
साल 1916 में गदर पार्टी के क्रांतिकारी मंडी में फिर सक्रिय हो उठे और अंग्रेज अफसरों को मारने की योजना बनाई गई। यह योजना असफल रही और क्रांतिकारी सिधु खराड़ा पकड़े गए, लेकिन सिंध के गांधी कहे जाने वाले हरदेव सिंह बच निकले और भूमिगत हो गए।
साल 1917 में मंडी के क्रांतिकारी सिधु खराड़ा को मंडी षड़यंत्र केस 1914 के अंतर्गत सात साल की कैद हो गई। उनको सजा मिलने के बाद मंडी और सुकेत में क्रांतिकारी गतिविधियां धीमी पड़ गई और और स्वाधीनता आंदोलन के शांतिपूर्ण कार्यक्रम तेज हो गए।
हरदेव बन गए कृष्णानंद
साल 1920 में स्वाधीनता संग्राम में जन साधारण की भागीदारी बढ़ गई। इसी काल में क्रांतिकारी हरदेव ने अपना नाम बदल कर स्वामी कृष्णानंद रख लिया और कराची में कांग्रेस के आंदोलन में शामिल हो गए।
साल 1921 में हरदेव अंग्रेजी सरकार की आंखों में धूल झोंक कर कराची में स्वामी कृष्णानंद के नाम से असहयोग आंदोलन को हवा दे रहे थे। सिंध के गांधी कहे जाने वाले स्वामी कृष्णानंद ने 100 स्वयंसेवकों को साथ लेकर शराब की दुकानों की पिकेटिंग की। वह पकड़े गए और एक साल के लिए जेल भेज दिए गए।
नमक कानून तोड़ा, कराची में गिरफ्तारी
अपने कराची प्रवास के दौरान सिंध के गांधी हरदेव सिंह सत्यगृह आश्रम कराची के संचालक बने। उन्होंने 13 अप्रैल 1930 को सैंकड़ों स्वयंसेवकों के साथ समुद्र से पानी लाकर नमक बनाया और इस तरह नमक का कानून भंग किया।
इस आंदोलन में भाग लेने पर अंग्रेजों ने उन्हें वर्ष भर जेल में रख कर कड़ी यातनाएं दी गई।
प्रजामंडल आंदोलन,मंडी में गिरफ्तारी
साल 1936 में मंडी में प्रजामंडल की स्थापना हुई और हरदेव सिंह से स्वामी कृष्णानंद बने
रियासती प्रशासन के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। दो महीनों तक चले आंदोलन में उन्हें कई स्थानीय क्रांतिकारियों का सहयोग मिला।
राजा जोगेंद्रसेन ने अंग्रेज सैनिकों की मदद से आंदोलन को कुचल दिया और स्वामी कृष्णानंद सहित कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तारी
प्रजामंडल आंदोलन पर पाबंदी लगने के बाद स्वामी कृष्णानंद बने सिंध के गांधी ने सेवादल मंडी की स्थापना की और संघर्ष जारी रखा। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भी वे कई अन्य क्रांतिकारियों के साथ गिरफ्तार हुए और उन्हे दो साल का कारावास दिया गया।
उदयपुर अधिवेशन में लिया भाग
दिसंबर 1945 में अखिल भारतीय देसी लोक राज्य परिषद का अधिवेशन उदयपुर में हुआ। इस अधिवेशन में मंडी से स्वामी कृष्णानंद ने भी भाग लिया। इस अधिवेशन में पहाड़ी रियासतों के प्रतिनिधियों ने अपना अलग संगठन बनाने की योजना बनाई।
पहाड़ी क्षेत्रों की लोक संस्कृति, भौगोलिक स्थिति और सामान्य समस्याओं के आधार पर हिमालयन हिल स्टेटस रीजनल काउंसिल की नींव रखी गई और स्वामी कृष्णानंद को कौंसिल का प्रधान बनाया गया। इसके साथ ही पहाड़ी रियासतों के औपचारिक एकीकरण की शुरुआत हुई।
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