स्पीति में मिली ममी दुनिया के लिए क्यों खास ?
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लाहौल स्पीति जिले की स्पीति घाटी के गियू गांव से मिली बौद्ध भिक्षु की ममी दुनिया के लिए खास है। दुनिया में अब तक पाई गई सभी ममीज लेटी हुई अवस्था में मिली हैं, लेकिन स्पीति से मिली ममी बैठी हुई अवस्था में है।
इसका मुंह खुला हुआ व दांत दिखाई दे रहे हैं और आंखें खोखली हैं। पेनसेल्वेनिया विश्वविद्यालय के रिसर्चर विक्टर मैर ने इसको 550 साल से पुराना माना है।
इसको लेकर दूसरी हैरान करने वाली बात यह है कि सदियों पुरानी ममी के नाखून और बाल लगातार बढ़ रहे हैं। इसी कारण लोग इसे जीवित भगवान मानते हैं और इसकी पूजा करते हैं। विज्ञान के लिए यह एक पहेली है कि यह कैसे संभव हो सकता है कि मरने के बाद भी किसी व्यक्ति के शरीर के अंग बढ़ते रहें।
लोग ऐसी भी कहानी सुनाते हैं कि खुदाई के दौरान इसके सिर पर कुदाल लगने से खून निकल पड़ा था। विज्ञान के लिए सामान्य तौर पर ऐसा मानना सम्भव नहीं है, फिर भी लोगों का दावा है कि ममी की संरचना कुदाल का निशान देखा जा सकता है।
छोटा सा गियू गांव बना खास
इसको लेकर सुर्खियां तब बनीं, जेबी भारत-तिब्बत सीमा पुलिस ने यहां सड़क का निर्माण कार्य शुरू किया। साल 2004 में खुदाई कर जब इस ममी को निकाला गया, तब से ही पुरातत्वविदों और इतिहासकारों के लिए गियू गांव खास बन गया।
साल 2009 तक इसे भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के ही कैम्पस में रखा गया। जैसे- जैसे इस ममी को लेकर तरह- तरह की खबरें प्रकाशित होने लगीं, इसके दर्शन करने वालों की संख्या बढ़ने लगी। देश- विदेश से लोग यहां आने लगे और विशेषज्ञ इसकी विशेषताओं की पड़ताल करने लगे।
ममी को लेकर लोगों का मत
स्थानीय लोगों का दावा है कि वर्ष 1975 में किन्नौर में आए भूकंप के बाद एक पुराने मकबरे को खोलने पर बाद भिक्षु का ममीकृत शरीर मिला था, लेकिन यह ममी चर्चा में साल 2004 में खुदाई के दौरान आई।
लोगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए इस ममी को गांव में गोम्पा में स्थापित कर दिया गया और प्रदेश सरकार ने इस गोम्पा के रखरखाव और सुरक्षा का जिम्मा संभाला लिया। वैज्ञानिक जांच से ममी की उम्र का खुलासा हो गया। इस बात के भी पुख्ता प्रमान मिले कि ममी के बाल और नाखून नियमित तौर पर बढ़ रहे हैं।
बौद्ध भिक्षु सांगला तेनजिंग की ममी!
समुद्र तल से करीब 10,499 फीट की ऊंचाई पर भारत और चीन की सीमा पर तिब्बत से महज दो किलोमीटर पहले पर बसा स्पीति का गियू एक छोटा सा गांव है। यह गांव आधा साल बर्फबारी के चलते दुनिया से कटा रहता है।
ऐसा कहा जाता है कि सैंकड़ों वर्ष पहले बौद्ध भिक्षुओं का व्यापार के सिलसिले में भारत और तिब्बत के मध्य आना जाना था। उस समय एक बौद्ध भिक्षु सांगला तेनजिंग यहां मेडिटेशन करने बैठे और फिर उठे ही नहीं। उस समय उनके शरीर को एक स्तूप में संभाल कर रख लिया गया था।
मिस्र की ममियों से अलग
मिस्रवासी मृतकों के शरीर को संरक्षित करने के लिए कई तरह के लेप का इस्तेमाल करते थे। बौद्ध भिक्षुओं की ममियां प्राकृतिक होती थीं। भिक्षु भूख और ध्यान से खुद को मौत को समर्पित कर देते थे। इस प्रक्रिया को सोकुशिनबुत्सु कहा जाता है। जो शरीर को उसके वसा और तरल पदार्थ से दूर कर देता है। जापान के यामागाटा में बौद्ध भिक्षुओं ने इस तरह के प्रयोग किए थे।
संत और बिछुओं की कहानी
स्पीति में मान्यता है कि साढ़े पांच सौ साल पहले गियू गांव में एक बौद्ध संत थे। गांव में बिच्छुओं का बहुत प्रकोप था। प्रकोप से गांव के लोगों को बचाने के लिए उस संत ने ध्यान लगाने के लिए लोगों से उसे जमीन में दफन करने के लिए कहा।
संत को जमीन में दफन किया गया। संत के प्राण निकलते ही इंद्रधनुष निकला और गांव बिच्छुओं से मुक्त हो गया। एक पक्ष यह भी है कि ममी बौद्ध भिक्षु सांगला तेंजिन की है, जो यहां पर एक बार मेडिटेशन में बैठे तो फिर कभी नहीं उठे।
स्पीति का ताबो मठ
स्पीति घाटी में ताबो मोनेस्ट्री की भारत के सबसे पुराने मठों में गिनती होती है। इसकी स्थापना 960 ईस्वीं में तिब्बत के बौद्ध रिचेन जंगपो ने की थी। मठ के कैंपस में कई सारे छोटे-छोटे स्तूप मौजूद हैं, जिनमें से कुछ 13वीं शताब्दी के बताए जाते हैं।
इस मठ में धर्मग्रंथों और पेटिंग्स का बड़ा कलेक्शन है। बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा हर साल जुलाई-अगस्त में यहां कालचक्र प्रवर्तन समारोह की शुरुआत करते हैं। हर साल यहां हजारों की संख्या में बौद्ध और अन्य पर्यटक आते हैं।
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