हिमाचल निर्माता: जहां पैदा हुए परमार, वहां पहुंचना दुश्वार
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साल में सिर्फ एक दिन आती है सरकार को हिमाचल निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार की याद
वीरेंद्र शर्मा वीर/ चंडीगढ़
हिमाचल निर्माता डॉ. परमार ने सडक़ों को पहाड़ों की भाग्य रेखाएं कहा था। उन्होंने कई नई सडक़ परियोजनाएं आरंभ की, लेकिन दुख की बात है कि हिमाचल निर्माता के घर को जोडऩे वाली चारों सडक़ें न केवल संकरी व खतरनाक हैं, बल्कि बुरी तरह टूटी हुई हैं।
बागथन खड्ड पर बने पुल पर सभी सडक़ें आपस में जुड़ती हैं। यहीं से करीब 400 मीटर चलकर पहाड़ी की तरफ हिमाचल निर्माता डॉ. परमार के अपने हाथों बनाए खंडहर होते घर की ओर कच्ची सडक़ है, जिसमें बरसात में बड़ी मुश्किल से छोटी गाड़ी ही पहुंच सकती है।
सडक़ों की किसी को सुध नहीं
हिमाचल निर्माता के पड़ोस की सड़कों की दिशा दयनीय दिखती है। ददाहू और राजगढ़ की ओर से बेचड़ का बाग से बागथन 28 किलोमीटर की स्थिति नाजुक है। कुमारहट्टी-नाहन राजमार्ग से सराहां से दाईं ओर करीब 16 किलोमीटर बागथन तक सड़क की सुध नहीं ली गई है।
नाहन से कुमारहट्टी राजमार्ग से दाईं ओर बेठवीं से 22 किलोमीटर बागथन तक की सड़क भी रिपेयरिंग मांग रही है। बागथन से राजगढ़ की तरफ भी सड़क की स्थिति ठीक नहीं है।
खंडहर होता साधारण सा घर
हिमाचल निर्माता डॉ. परमार ने इस घर को स्वयं इसलिए बनवाया था। जब वे राजनीति में आए तो कई राजनेता व अधिकारी उनसे मिलने आना चाहते थे।
चन्हालग पहुंचने के लिए घने जंगल से करीब 5 किलोमीटर पैदल रास्ता था। अब चन्हालग सडक़ मार्ग से जुड़ चुका है। ये ऐतिहासिक धरोहर हिमाचल निर्माता का घर अब खंडहर में तब्दील होने लगा है।
हिमाचल निर्माता की मूर्ति का विवाद
परिवार जनों ने स्थानीय लोगों की सहायता से उनकी कभी सोलन के एक पार्क में हिमाचल निर्माता डॉ. परमार की मूर्ति लगाई थी। बाद में हिमाचल निर्माता की इस मूर्ति को हटाया गया तो तमाम राजनीतिक चालों के बाबजूद बड़ी मुश्किल व कठिन प्रयासों से डॉ. परमार के चचेरे भाई यश परमार ने चन्हालग में पुन: मूर्ति स्थापित करवाई है।
भाषा विभाग भूला परमार का घर
हिमाचल निर्माता डॉ. परमार की जयंती पर जिलाधीश, एसडीएम, तहसीलदार आदि आकर बागथन के राजकीय स्कूल में रिवायत निभाने जरूर जाते हैं। गंगूराम मुसाफिर हिमाचल निर्माता परमार साहब के जाने के बाद उन्हीं के नाम पर वोट मांगकर 30 वर्ष विधायक रहे, पर किया कुछ नहीं। भाषा विभाग व अकादमी ने लंबे अरसे से उनके इलाके में कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं किया।
हिमाचल के गठन में अहम भूमिका
हिमाचल निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार का जन्म 4 अगस्त 1906 को सिरमौर के चन्हालग गांव में हुआ था। गांव में कई परमार परिवारों का अपना एक ही महलनुमा पत्थरों का बना बेहड़ा था। डॉ. परमार चन्हालग से ही नाहन पढऩे जाया करते। उन्होंने अपने जीवन में कई बुलंदियों को छुआ और कई उपलब्धियां हासिल की।
उनकी सफलताओं की फेहरिस्त बड़ी लंबी है। उन्होंने हिमाचल के गठन में करिश्माई भूमिका निभाई। इसी वजह से उन्हें ‘हिमाचल निर्माता’ कहा गया। 74 वर्ष की आयु में डॉ. परमार 2 मई 1981 को संसार से विदा हो गए।
हिमाचल निर्माता ने रखी विकास की आधारशिला
हिमाचल निर्माता एवं हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार का इस पहाड़ी प्रदेश को अस्तित्व में लाने और विकास की आधारशिला रखने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
पहाड़ के लोगों की भावनाओं व संवेदनाओं को समझते हुए उन्होंने इस पहाड़ी राज्य को प्रगति पथ पर अग्रसर करने के लिए विकास की नई दिशाएं प्रस्तुत की। दुखद यह है कि प्रदेश की नई पीढ़ी को हिमाचल निर्माता के जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।
सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण
हिमाचल निर्माता डॉ. परमार के दिल में पहाड़ों का दर्द था। वह शिद्दत से महसूस करते थे कि यदि हिमाचल का विलय पंजाब में हो गया तो हमारे पहाड़ के लोग ठगे जाएंगे।
पंजाब से मिलते ही हमारी सांस्कृतिक विरासत, हमारी सोच और हमारा रहन-सहन बदल जाएगा, इसलिए उन्होंने पूरे प्रयास किए। इसी उद्देश्य से बाद में डॉ. परमार ने बाहरी क्षेत्र के लोगों को हिमाचली भूमि बेचने पर प्रतिबंध भी लगाया।
लेखक के रूप में परमार
हिमाचल निर्माता डॉ. परमार ने ‘पालियेन्डरी इन द हिमालयाज’, ‘हिमाचल पालियेन्डरी इटस शेप एंड स्टेटस’, ‘हिमाचल प्रदेश फेस ऑफ स्टेटहुड’ और ‘हिमाचल प्रदेश एरिया एंड लेंगुएजिज’ नामक शोध आधारित पुस्तकें लिखीं।
कलम हथियार, भ्रष्टाचार पर वार
साहित्यकार मदन हिमाचली के मुताबिक, हिमाचल निर्माता डॉ. परमार ने एक बार रेणुका में पत्रकारों और साहित्यकारों की खिंचाई करते हुए कहा था ‘याड़ी तुमें, कनी रे पत्रकार, कलाकार अरो साहित्यकार असों? जो आपणी कला, कागज अरो कलमो साई, भ्रष्ट नेते अरो भ्रष्ट आफिसरो री धज्जी नी उड़ा सकदे? तुमोखे-कागज, कलमा री तागतीरा पता नी एत्थी?’
मैजिस्ट्रेट से सियासी सफर की शुरुआत
हिमाचल निर्माता डॉ. परमार ने 1928 में बीए ऑनर्स करने के बाद एमए और एलएलबी तथा 1944 में समाजशास्त्र में पीएचडी की। 1929-30 में वेथियोसोफिकल सोसायटी के सदस्य रहे।
उन्होंने सिरमौर रियासत में 11 वर्षों तक सब जज और मैजिस्ट्रेट के बाद जिला एवं सत्र न्यायधीश के रूप में सेवाएं प्रदान की।
कई भूमिकाओं में रहे परमार
वे सुकेत सत्याग्रह और प्रजामंडल से जुड़े और उनके ही प्रयासों से यह सत्याग्रह सफल हुआ। 1943 से 46 तक वे सिरमौर एसोसिएशन के सचिव,1946 से 47 तक हिमाचल हिल स्टेट कांउसिल के प्रधान, 1947 से 48 तक ऑल इंडिया पीपुलस कान्फ्रेंस के सदस्य व प्रजामंडल सिरमौर के अध्यक्ष रहे।
मुख्यमंत्री बन गए हिमाचल निर्माता
हिमाचल निर्माता के प्रयासों से ही 15 अप्रैल 1948 को 30 सियासतों के विलय के बाद हिमाचल प्रदेश बन पाया और 25 जनवरी 1971 को इस प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला।
1948 से 52 तक वे हिमाचल प्रदेश चीफ एडवाजरी काउंसिल के सदस्य सचिव, 1948 से 64 तक हिमाचल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, 1952 से 56 तक मुख्यमंत्री रहे।
वे 1957 में सांसद बने और 1963 से 24 जनवरी 1977 तक हिमाचल के मुख्यमंत्री पद पर कार्य किया।
पहाड़ पर बनाया सड़कों का रोडमैप
हिमाचल निर्माता डॉ. परमार हमेशा कहते थे ‘भाई ये सडक़ें दअरसल, हम पहाड़ी लोगों की भाग्य रेखाएं हैं।’एक बार किसी ने डॉ. परमार से पूछा था ‘परमार साहिब, आपकी पहली प्राथमिकता क्या है?’उन्होंने जवाब दिया- ‘सडक़ ।’
उनसे एक दफा फिर पूछा गया। डॉ. साहब ने फिर उत्तर दिया, ‘सडक़।’ उनसे फिर पूछा गया- सर, आपकी तीसरी प्राथमिकता क्या है? उन्होंने सहजतापूर्वक जवाब दिया ‘सडक़।’ उन्होंने पहाड़ पर सडक़ निर्माण के लिए दीर्घकालीन रोड़मैप तैयार किया।
कला से प्यार, प्यारे कलाकार
डॉ. परमार समृद्ध पहाड़ी संस्कृति के संरक्षक थे। हिमाचल की संस्कृति, रीति-रिवाजों और पहाड़ी व्यंजनों के प्रति उनका विशेष लगाव था। पहाड़ी कलाकारों के प्रति हिमाचल निर्माता के मन में हमेशा स्नेह रहा। डॉ. परमार जब भी कि सी समारोह में जाते थे, पहाड़ी नाटी पर अकसर उन्हें नाचते देखा जाता था।
जन्मदिन पर डाक टिकट
हिमाचल निर्माता डा. परमार के जन्मदिवस पर 4 अगस्त, 1988 को भारत सरकार के डाक विभाग ने डाक टिकट जारी किया गया था। इस डाक टिकट का मूल्य 60 पैसे था। पोस्टल विभाग ने 10 लाख डाक टिकट जारी किए थे।
मंडी में कचोरी, चंबा में छाछ वाला मीट
हिमाचल निर्माता डॉ. परमार के लिबास में ठेठ पहाड़ी कमीज, बास्कट, सिरमौरी पाजामा और सर्दियों में लोइया शामिल होता था। सिरमौर में होते तो असकलियां, मक्की की रोटी, पटांडे, महासू में सिडक़ू, घी, भात, मक्की की रोटी, मंडी में कचोरी, बाबरू, भल्ले, उनकी पहली पसंद होते। चंबा में खमोध, छाछ वाला मीट तथा वहां की बनी हुई दालें उनके भोजन का हिस्सा थे।
दुनिया छोड़ी तो पास थे 563 रुपए
जब हिमाचल निर्माता डॉ.परमार इस दुनिया से गए, उनके बैंक खाते में मात्र 563 रुपए 30 पैसे थे। यही उनकी उम्र भर की कमाई थी, जो उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जुटाई थी। कठोर प्रशासक, लेकिन शालीन मुखिया हिमाचल निर्माता डॉ. परमार को गुस्सा शायद ही कभी आता था। हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. परमार ने न अपने बच्चों के लिए एक अदद घर बनाया और न ही परिजनों के लिए कोई राजनीतिक लाभ लिया।
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