हिमाचल में न्यूंद्र क्यों नहीं देती हैं महिलाएं ?

हिमाचल में न्यूंद्र क्यों नहीं देती हैं महिलाएं ?
न्यूंद्र

पवन चौहान/ महादेव  

बेशक सूचना क्रांति के विस्फोट में पहाड़ पर भी अब शादी का निमंत्रण व्हाट्स एप, मैसेजंजर या मेल पर भेजने या फिर मोबाइल पर बुलावा देने का ट्रेंड बढ़ने लगा है। बावजूद इससे पहाड़ पर दरवाज़े पर तिलक लगा कर निमंत्रण (न्यूंद्र या न्यूंद्रा) देने की पुरातन परंपरा बरकरार है।

परिवार का पुरुष ही न्यूंद्र देने जाता है। महिलाएं क्यों नहीं जाती हैं? इस सवाल के जवाब में यह कहा जाता है कि जब से प्रथा चली आ रही है, उस दौर में यातायात के कोई साधन नहीं थे।

दूर-दूर सुनसान इलाकों से होकर रिश्तेदारी में पहुँचना पड़ता था। ऐसा लगता है कि उस समय महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से यह कार्य पुरुषों ने अपने जिम्मे रखा, जो आज भी जारी है।

मामा के घर पहला न्यूंद्रा

शादी की सारी तिथियां कुल पुरोहित द्वारा जब तय कर ली जाती हैं तो उसी समय न्यूंद्रा की शुरुआत के लिए शुभ दिवस और समय भी निश्चित कर लिया जाता है।

विशेष बात यह है कि सबसे पहली न्यूंद्रा मिठाई के साथ दूल्हा-दुल्हन के ननिहाल को दी जाती है। उसके बाद ही अन्य रिश्तेदारों को न्यूंद्रा दी जाती है। यदि बहुत समय पहले की बात करें तो ननिहाल वालों को न्यूंद्रा देने पहले कुल पुरोहित स्वयं जाया करते थे।

न्यूंद्रा के लिए खास है सिंदूर

न्यूंद्रा देने के लिए सिंदूर का प्रयोग किया जाता है। सिंदूर शुभ का रंग माना जाता है। इस रस्म को घर के मुख्य द्वार की चौखट की ऊपरी क्षैतिज वाली लकड़ी पर सिंदूर का टीका लगाकर निभाया जाता है।

द्वार पर टीका लगाने के पश्चात घर में जो पुरुष उस समय मौजूद होता है उसके माथे पर भी सिंदूर का टीका लगाया जाता है और पूरे परिवार को शादी का निमंत्रण दिया जाता है।

बड़े के पैर छूने का चलन

यदि न्यूंद्रा देने वाला उम्र में बड़ा हो तो उक्त परिवार का व्यक्ति उसके पाँव छुएगा। यदि न्यूंद्रा देने वाला उक्त परिवार वाले व्यक्ति से छोटा हो तो वह परिवार के उन बड़े-बुजुर्गों के पांव छुएगा। यह संस्कार की पाठशाला का एक अभिन्न हिस्सा है।

यदि घर में उस समय कोई पुरुष न हो तो महिला को यह सिंदूर का टीका नहीं लगाया जाता है। सिर्फ घर के मुख्य दरवाज़े पर ही टीका लगाकर महिला को शादी की तिथियां बताकर परिवार को आने का निमंत्रण दिया जाता है।

मुख्य द्वार पर लगता है टीका

न्यूंद्रा देने आए व्यक्ति को घर में कोई भी न मिले तो वह मुख्य द्वार पर टीका लगाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करता है। आस-पड़ोस के किसी व्यक्ति से कहकर उक्त परिवार को वह निमंत्रण दे देता है। लेकिन इतना अवश्य है कि सूची में शामिल वाले रिश्तेदारों को न्यूंद्रा अवश्य दिया जाता है।

अपने से घर जा मिलने का बहाना

व्यवहारिक पक्ष यह है कि जब हम घर-घर बुलावा देने पहुँचते हैं तो हम अपने रिश्तेदार व उनके परिवार के साथ मिल पाते हैं। नई पीढ़ी जब न्यूंद्रा देने जाती है तो उन्हें अपने रिश्तेदारों की जान-पहचान हो जाती है। इस हल्के से मिलन के दौरान दो घड़ी उनके सम्मुख बैठकर व बातचीत करने से उनका हालचाल, दुख-सुख को भी जान पाते हैं।

अपने समाज को बचाए रखने में ऐसी रस्में बहुत कारगार हैं। यदि गाहे-बगाहे अपनी रिश्तेदारी में किसी से अनबन हो गई हो तो यह न्यूंद्रा सारी नोक-झोंक को भुलाकर फिर से हमें अपनों के साथ मिला देती है।

प्यारा उपहार है न्यूंद्रा

यह रस्म हमें अपनों के लिए थोड़ा वक्त निकालने की बात कहती है। यह बुजुर्गों का पीढ़ी दर पीढ़ी हर नई पीढ़ी के लिए खरा अनुभव ही नहीं, बल्कि एक प्यारा-सा उपहार भी है जो हमें अपनों से जोड़े रखने में बहुत मदद करता है।

ऐसी बहुत सी रस्में और रिवाज़ हैं जिन्हें देख-समझकर बड़ी ही सहजता से कहा जा सकता है कि ये रस्में, ये रिवाज़ हमारे बुजुर्गों की सैकड़ों वर्षों के अनुभवों की देन है। उन्होंने सब भला-बुरा देखकर इन्हें अपने समाज की बेहतरी के लिए संजोया है। आज इन्हीं की बदौलत हम अपने आप को एक-दूसरे के साथ जोड़े रखते हैं।

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