112 साल पहले अमेरिकी प्रोफेसर राल्फ स्टीवर्ट ने रावलपिंडी से कश्मीर, लेह और लाहुल होते हुए कुल्लू तक की थी साइकलिंग, कुल्लू से शिमला तक किया था पैदल सफर

112 साल पहले अमेरिकी प्रोफेसर राल्फ स्टीवर्ट ने रावलपिंडी से कश्मीर, लेह और लाहुल होते हुए कुल्लू तक की थी साइकलिंग, कुल्लू से शिमला तक किया था पैदल सफर
112 साल पहले अमेरिकी प्रोफेसर राल्फ स्टीवर्ट ने रावलपिंडी से कश्मीर, लेह और लाहुल होते हुए कुल्लू तक की थी साइकलिंग, कुल्लू से शिमला तक किया था पैदल सफर
लेखक: विनोद भावुक/ धर्मशाला
साल 1913 में जब न तो सड़कें थीं, न पुल, और न ही आधुनिक यातायात के साधन, उस साल एक अमेरिकी प्रोफेसर राल्फ रेंडॉल्फ स्टीवर्ट ने रावलपिंडी से कश्मीर, लेह और लाहुल होते हुए स्टीवर्ट ने कुल्लू तक साइकिल पर यात्रा की थी और कुल्लू से शिमला तक का लंबा सफर उन्होंने पैदल तय किया।
स्टीवर्ट ने उस दौर में साइकलिंग की थी, जब रास्ते केवल पगडंडियों तक सीमित थे।
उन्होंने इस पश्चिमी हिमालय क्षेत्र की बर्फीली घाटियों, ऊंचे दर्रों और पर्वतीय जनजीवन को बहुत करीब से देखा और दस्तावेज तैयार किए। उन्होंने लाहौल और कुल्लू घाटी में स्थानीय
संस्कृति और भूगोल का अध्ययन किया और चित्र खींचे, जो आज भी एक ऐतिहासिक धरोहर हैं।
कुल्लू से शिमला तक पैदल सफर
उस दौर में कुल्लू से शिमला तक का पैदल सफर बेहद चुनौतीपूर्ण और कठिन था। राल्फ स्टीवर्ट की कठिन यात्रा न केवल भौगोलिक खोज थी, बल्कि उस समय की सामाजिक और प्राकृतिक परिस्थितियों को समझने की एक प्रयास भी थी। शिमला पहुंचने के बाद उन्होंने रेल मार्ग से रावलपिंडी के लिए वापसी की।
राल्फ स्टीवर्ट की यात्रा की वजह से आज हमारे पास उस समय के लाहौल, कुल्लू और शिमला की झलकियां हैं। उनकी तस्वीरें और नोट्स इन क्षेत्रों के सौ साल पहले के पर्यावरण, संस्कृति और समाज को समझने में मदद करते हैं।
वनस्पति संग्रहण और स्थानीय संस्कृति का अवलोकन
राल्फ स्टीवर्ट ने सबसे पहले 1912 की गर्मियों में कश्मीर और पश्चिमी तिब्बत की लंबी पैदल यात्रा की। यात्रा इतनी रोमांचक थी कि उन्होंने अगले साल गर्मियों में फिर से यात्रा का कार्यक्रम बना लिया। 1913 में उन्होंने साइकिल पर रावलपिंडी से कुल्लू तक का सफर तय किया। साल 1920 में राल्फ स्टीवर्ट ने मशहूर हिन्दू तीर्थस्थल अमरनाथ की कठिन यात्रा की थी।
राल्फ स्टीवर्ट की ये यात्राएं उनके लिए सिर्फ घूमना नहीं थीं, बल्कि वनस्पति संग्रहण, स्थानीय संस्कृति के अवलोकन और पर्यावरणीय दस्तावेज़ीकरण का साधन बनीं। वे एक अच्छे कैमरामैन थे और अपनी इस यात्राओं को कैमरे में कैद किया।
कैसर-ए-हिंद पदक से सम्मानित
राल्फ स्टीवर्ट गर्मी के मौसम में वे बिना किसी सरकारी या संस्थागत फंडिंग के पौधों के नमूने इकट्ठा करते थे। अपने जीवन में उन्होंने 50,000 से अधिक पौधों का संग्रह किया, जिसे “स्टीवर्ट कलेक्शन” कहा जाता है — जो अब पाकिस्तान के राष्ट्रीय हर्बेरियम में संरक्षित है।
स्टीवर्ट को उनके कार्य के लिए 1938 में कैसर-ए-हिंद पदक, 1961 में सितारा-ए-इम्तियाज़ और एएएएस की फैलोशिप जैसे सम्मानों से नवाजा गया। उनके नाम पर एक पौधे की भी रखी गई, जो अफगानिस्तान और पाकिस्तान में पाई जाती है।
संस्मरण में विस्तार से लिखे अनुभव
दक्षिण एशिया के वनस्पति विज्ञान को एक नई पहचान देने वाले राल्फ स्टीवर्ट ने 91 वर्ष की आयु में अपना संस्मरण लिखा। संस्मरण में उन्होंने अपनी युवावस्था की यात्राओं, पहाड़ी क्षेत्रों की कठिनाइयों, वनस्पति खोजों और हिमालयी जीवन के अनुभवों को आत्मीयता से साझा किया।
‘फ्लोरा ऑफ पाकिस्तान: हिस्ट्री एंड एक्सप्लोरेशन ऑफ प्लांट्स इन पाकिस्तान एंड एडजॉइनिंग एरियाज़’ नामक संस्मरण में उन्होंने अपने अनुभवों को विस्तार से लिखा। यह पुस्तक न केवल एक वैज्ञानिक अध्ययन है, बल्कि हिमालयी क्षेत्रों का ऐतिहासिक दस्तावेज भी है।
एशिया में वनस्पति विज्ञान की नींव रखने वाले अग्रदूत
15 अप्रैल 1890 को न्यूयॉर्क के हेब्रोन में जन्मे स्टीवर्ट ने कोलंबिया विश्वविद्यालय से स्नातक और पीएचडी की। राल्फ स्टीवर्ट एक समर्पित वनस्पतिशास्त्री थे। उन्होंने 50 वर्षों तक भारत, पाकिस्तान और पश्चिमी तिब्बत के पौधों का अध्ययन किया। 1911 में उन्होंने यूनाइटेड प्रेस्बिटेरियन मिशन के साथ तब के भारत में रावलपिंडी के गॉर्डन कॉलेज में अध्यापन शुरू किया और बाद में प्रिंसिपल बने।
अपने जीवन के 50 साल वनस्पति संरक्षण को लेकर समर्पित रहे स्टीवर्ट ने साल 1990 में 100 वर्ष की आयु में गॉर्डन कॉलेज का दौरा किया। 6 नवंबर, 1993 को 103 साल की उम्र में कैलिफोर्निया में उनका निधन हो गया, लेकिन आज भी उनकी गिनती एशियाई वनस्पति विज्ञान की नींव रखने वाले अग्रदूतों में होती है।
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Jyoti maurya

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