359 साल पहले थैवनाट को पेरिस से यहां खींच लाई थी कांगड़ा किले को देखने की हसरत

359 साल पहले थैवनाट को पेरिस से यहां खींच लाई थी कांगड़ा किले को देखने की हसरत
359 साल पहले थैवनाट को पेरिस से यहां खींच लाई थी कांगड़ा किले को देखने की हसरत
विनोद भावुक/ धर्मशाला
359 साल पहले साल 1666 में कांगड़ा की यात्रा करने वाले फ्रांसीसी यात्री जीन दे थैवनाट को उस दौर में मशहूर कांगड़ा किले के देखने की हसरत पेरिस से यहां खींच लाई थी। कांगड़ा किले को देखने के बाद थैवनाट ने कांगड़ा किले को भारत के उत्तरी पर्वतीय भागों में सबसे शक्तिशाली और प्राचीन दुर्गों में से एक कहा है।
थैवनाट ने अपने यात्रा वृतांत में लिखा है, ‘यह दुर्ग चट्टानों की गोद में बसा है, जिसके चारों ओर गहरी खाइयाँ और ऊंचे बुर्ज हैं। यह स्थान युद्धकला और स्थापत्य की अद्भुत मिसाल है।‘थैवनाट ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘Travels in India and the Near East’ में अपनी कांगड़ा यात्रा का उल्लेख किया है।
कुदरत, मानव श्रम और ईश्वरीय शक्ति से बना कांगड़ा
17वीं शताब्दी के भारत में मुगल साम्राज्य अपनी बुलंदी पर था, लेकिन पश्चिमी हिमालय की तलहटी में बसा कांगड़ा एक स्वतंत्र व समृद्ध क्षेत्र था, जहां कटोच वंश का राज था। इसी कालखंड में थैवनाट ने इस क्षेत्र की यात्रा की थी। उन्होंने अपने वृत्तांत में उल्लेख किया है कि वह लाहौर से भटिंडा, होशियारपुर होते हुए कांगड़ा घाटी में पहुंचा।
कांगड़ा की प्राकृतिक सुंदरता ने इस यूरोपियन नागरिक का मन मोह लिया था। उन्होंने एक जगह लिखा है, ‘कांगड़ा एक ऐसा नगर है जो स्वयं प्रकृति की सुंदरता, मानव श्रम और ईश्वर की शक्ति से निर्मित प्रतीत होता है।‘
देवी मंदिरों का किया अवलोकन
अपनी यात्रा के दौरान थैवनाट ने ज्वालामुखी, चामुंडा, ब्रजेश्वरी जैसे धार्मिक केंद्रों का अवलोकन किया था। ज्वालामुखी देवी मंदिर का विशेष उल्लेख करते हुए थैवनाट लिखते हैं, ‘मैंने एक ऐसे मंदिर को देखा, जहां बिना किसी ईंधन के अग्नि प्रज्वलित रहती है। लोग इसे देवी का चमत्कार मानते हैं। यह स्थान अत्यंत श्रद्धा और रहस्य से भरा है।‘
अपने यात्रा वृतांत में थैवनाट ने ब्रजेश्वरी देवी मंदिर और चामुंडा देवी का भी वर्णन करते हुए इन धार्मिक स्थलों पर महिलाओं की बड़ी भागीदारी, पवित्रता की अवधारणाओं और स्थानीय पुजारियों की भूमिका को रेखांकित किया।
पहाड़ी समाज और शासन व्यवस्था का अध्ययन
थैवनाट ने अपनी कांगड़ा यात्रा के दौरान पहाड़ी समाज की बनावट को समझने के साथ स्थानीय शासन व्यवस्था का अध्ययन किया। उन्हें यह क्षेत्र एकदम भिन्न लगा। एक जगह वे लिखते हैं, ‘यहां के लोग परिश्रमी, सरल लेकिन असाधारण रूप से सजग हैं। पुरुष पगड़ी पहनते हैं और स्त्रियां पारंपरिक पोशाक में रहती हैं। लोकगायन, वाद्ययंत्र और धार्मिक अनुष्ठान लोगों के जीवन का हिस्सा हैं।
थैवनाट ने अपने यात्रा विवरण में कांगड़ा के पारंपरिक ज्ञान, लोक मान्यताओं और स्थानीय आत्मनिर्भरता की सराहना की है। वे लिखते हैं, ‘इस राज्य में कानून व्यवस्था व्यवस्थित है। कर वसूली का पारदर्शी ढांचा है और जनता शासक से जुड़ी प्रतीत होती है।‘
यात्रा विवरण सजीव ऐतिहासिक दस्तावेज़
थैवनाट की कांगड़ा यात्रा यह उस दौर की सबसे शुरुआती यूरोपीय यात्राओं में से एक है। इससे पहले तक यूरोप के लिए कांगड़ा लगभग अज्ञात स्थान था। उनकी यात्रा के बाद ही कांगड़ा को लेकर बहुत सी जानकारियां यूरोप तक पहुंची।
थैवनाट की टिप्पणियां आज के इतिहासकारों को उस दौर की राजनीति, समाज और संस्कृति को समझने में मदद करती हैं। थैवनाट की कांगड़ा यात्रा केवल एक फ्रांसीसी यात्री की भ्रमण कथा नहीं, बल्कि यह एक सजीव ऐतिहासिक दस्तावेज़ है, जो उस दौर के कांगड़ा को समझने की राह आसान करते हैं।
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Jyoti maurya

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