कोविड काल में उपजा भावनाओं का दस्तावेज़ ‘कुछ बातें, कुछ ख्याल’, उद्योग विभाग के संयुक्त निदेशक अंशुल धीमान का रचनात्मक पक्ष, अब लघुकथा संग्रह प्रकाशनाधीन

कोविड काल में उपजा भावनाओं का दस्तावेज़ ‘कुछ बातें, कुछ ख्याल’, उद्योग विभाग के संयुक्त निदेशक अंशुल धीमान का रचनात्मक पक्ष, अब लघुकथा संग्रह प्रकाशनाधीन
कोविड काल में उपजा भावनाओं का दस्तावेज़ ‘कुछ बातें, कुछ ख्याल’, उद्योग विभाग के संयुक्त निदेशक अंशुल धीमान का रचनात्मक पक्ष, अब लघुकथा संग्रह प्रकाशनाधीन
विनोद भावुक/ ऊना
कोविड काल के कठिन समय में जब अधिकतर लोग मानसिक अवसाद, अकेलेपन और भय से जूझ रहे थे, उसी दौर में हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में कार्यरत एक प्रशासनिक अधिकारी अंशुल धीमान ने अपने भीतर के रचनाकार को खोजा। ‘कुछ बातें, कुछ ख्याल’ उनका पहला काव्य-संग्रह है, जो एक संवेदनशील हृदय और सजग दृष्टिकोण से जन्मी कविताओं का भावपूर्ण संकलन है।
अंशुल धीमान वर्तमान में हिमाचल प्रदेश उद्योग विभाग, ऊना में संयुक्त निदेशक के पद पर तैनात हैं। उनका व्यक्तित्व सिर्फ प्रशासनिक सीमाओं में बंधा नहीं है। एक संवेदनशील लेखक के रूप में उन्होंने मानवीय भावनाओं, रिश्तों और जीवन की विसंगतियों को गहराई से महसूस किया और उसे काग़ज़ पर शब्दों में उतारा।
आत्मसंघर्ष और आत्मसाक्षात्कार
संग्रह की प्रस्तावना से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि अंशुल धीमान ने अपनी रचनाएं किसी योजना या लेखकीय आकांक्षा के तहत नहीं लिखीं, बल्कि यह उनके मन की वह पुकार थी जो कोरोना काल की नीरवता में आकार लेती गई। वे स्वयं स्वीकार करते हैं कि उन्हें कभी यह विश्वास नहीं था कि उनकी रचनाएं छपने योग्य भी हैं। परंतु यह आत्म-संदेह रचनात्मकता की ईमानदार शुरुआत बन गया।
उनकी कविताएं किसी स्थापित शिल्प या काव्यशास्त्र की पैरवी नहीं करतीं। यह संग्रह उन विचारों, भावनाओं और जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों का सहज संकलन है, जो एक साधारण मनुष्य के भीतर उठते रहते हैं। वे कहते हैं, ‘मैं ये भली-भांति जानता हूं कि मैं कोई कवि या शायर नहीं हूं… ये तो कुछ आवाज़ें हैं और कुछ उलझे हुए ख्याल…’
जीवन के यथार्थ की संवेदनशील अभिव्यक्ति
पुस्तक का शीर्षक ‘कुछ बातें, कुछ ख्याल’ ही अपने आप में संकेत देता है कि इसमें कोई सैद्धांतिक कविताएं नहीं, जीवन की सहज गूंज है। पुस्तक के पिछले कवर पर लिखा गया सारगर्भित परिचय इस काव्य-संग्रह को ‘ख्यालों, दर्द, दरकते सपनों, बिछड़ते रिश्तों और जीवन यात्रा के गीतों’ का संग्रह कहता है।
कहीं प्रेम में, कहीं अकेलेपन में, कहीं टूटन और कहीं आशा की लहरों में, कविताएं पाठकों को उनके अपने जीवन से जोड़ती हैं। यह संग्रह बताता है कि लेखन केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार भी हो सकता है।
जिम्मेदार अधिकारी, भावुक लेखक
अंशुल धीमान जैसे प्रशासनिक पद पर कार्यरत व्यक्ति ने अपने व्यस्त जीवन के बीच यह भावनात्मक यात्रा तय की। सैनिक स्कूल सुजानपुर टीहरा के स्टूडेंट रहे अंशुल धीमान ने शिक्षा विभाग से अपने कैरियर की शुरुआत की थी और अब उद्योग विभाग में वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं।
यह संग्रह लेखन के प्रति उनकी गहरी आस्था, इतिहास, साहित्य और संस्कृति के प्रति लगाव का परिणाम है। यह काव्य संग्रह किसी साहित्यकार के लिए नहीं, बल्कि जीवन के अनुभवों से गुज़र रहे हर पाठक के लिए लिखा गया प्रतीत होता है।
कोविड काल की सकारात्मक परिणति
कोरोना काल को अंशुल धीमान ने संकट नहीं, बल्कि आत्म-मंथन का अवसर बनाया। यह पुस्तक उसी दौर की उपज है, जब उन्होंने अपने भीतर के रचनाकार को समय, एकांत और आत्मचिंतन के माध्यम से खोजा।
पुस्तक के अंतिम पृष्ठों में उन्होंने लेखन यात्रा में उनका साथ देने वाली पत्नी रीना और बच्चों सिद्धार्थ व जाह्नवी के प्रति आभार जताया है और वरिष्ठ साहित्यकारों श्री रमाकांत, श्री राजकुमार कश्यप और गुरमीत बेदी का विशेष उल्लेख है।
‘कुछ बातें, कुछ ख्याल’ एक उदाहरण है कि किसी भी कठिन समय में रचनात्मकता कैसे संबल बन सकती है। अंशुल धीमान जैसे अधिकारी का यह काव्यात्मक अवतार हमें यह सिखाता है कि प्रशासनिक जिम्मेदारियों से परे भी संवेदनशील मनुष्य अपने विचारों को शब्दों में ढालकर समाज को कुछ देने का सामर्थ्य रखता है।
नोशन प्रेस से प्रकाशित इस काव्य संग्रह का मुल्य 149 रुपये है। पाठकों के लिए ऑनलाइन उपलब्ध है। उनका लघुकथा संग्रह प्रकाशनाधीन है।
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Jyoti maurya

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