कहलूरी बोली का एक गीत जो बन गया आवामी तराना, दुनिया की कई भाषाओं में हुआ अनुवाद

कहलूरी बोली का एक गीत जो बन गया आवामी तराना, दुनिया की कई भाषाओं में हुआ अनुवाद
हिमाचल बिजनेस/ बिलासपुर
कलहूर (बिलासपुर) रियासत के स्वारा गांव में साल 1930 में पैदा हुए शमशेर सिंह को कहलूरी बोली के प्रथम रचनाकार होने का सम्मान प्राप्त है। मुजारा आंदोलन के दौरान क्रांतिगीत बने ‘हिऊँआ रीया धारा ते लैणियां गवाहियां’ जैसे मार्मिक गीत ने इस आंदोलन को धार देने में अहम भूमिका निभाई। इस अमर गीत की रचना के साथ की वे जनकवि के तौर पर स्थापित हो गए। लगभग आधी पहले रचा गया यह गीत आज भी प्रासांगिक हैं।
शमशेर सिंह ने कई क्रान्तिकारी, दार्शनिक व रोमांटिक रचनाओं का सृजन किया, लेकिन उनकी सबसे बड़ी पहचान ‘हिऊँआ रीया धारा ते लैणियां गवाहियां’ से बनी। यह गीत दुनिया की अनेक भाषाओं में अनुवादित हुआ। उनके इस गीत को लयबद्ध करने व आम जनता तक पहुंचाने का काम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन राज्य सचिव प्रोफेसर कामेश्वर पंडित ने किया। उनका लिखा यह गीत आवामी गीत बन गया।
जागीरदार घराने में पैदा होने के बावजूद संघर्षशील लेखक और मार्क्सवादी चिंतक शमशेर सिंह हमेशा गरीब, शोषित और दबे-कुचले लोगों की मुखर आवाज़ बने। कामरेड वासुदेव वसु और डी आर चौधरी ने ‘हिऊँआ रीया धारा ते’ पुस्तक के जरिये कवि शमशेर सिंह के व्यक्तित्व और कृतित्व पर गहन पड़ताल की है। सुनिए उनका लिखा गीत ‘हिऊँआ रीया धारा ते’ …
हिऊँआ रीया धारा ते लौणियाँ गवाहियां ओ,
किने- किने खादी रियाँ लोका री कमाइयाँ
पत्थराँ ने घुलदयाँ रे हड्ड बी ओ टुटी गए
फेरी भी ओ कामेयाँ तिजो खाणोरी मनाईयाँ
ऐड़ी चोटी रा जोर लाई फसलाँ कमाइयाँ
खाणोरियां बेला मुया भुखां सिर आईयाँ
हिऊंआ रीया धारा ते…….
छाइ रे सन्देसे दुधा री त गल क्या?
टुटूरे खन्दोलू लेफांरी ता गल क्या?
खड़दियाँ छुड़दियाँ टपरीयाँ तेरी कामयाँ
तिनाते बी तिज्जो बेदखलियाँ आइयाँ
हिऊँआ रीया धारा ते…..
रोडुए रा साब किता, चवानियाँ रा ब्याज दिता
फेरी बी इना शाहाँरिया कुरकियाँ आईयाँ
शरमा जो छड्डी करी धरमा जो छड्डी करी
इने जालमें लोकारियाँ कुड़ियाँ बकाइयाँ
हिऊँआ रीया धारा ते……
खेतर च खड़ी ने जगीरदार बोलदा
देखयाँ मेरे खेतरा च तू हल्ल जोड़दा
नंगियां तलवारां लेई ने खेतरा च फिरदा
मुँडखरा खेतरां च मुडियाँ रलौइयाँ
हिऊंआ रीया धारा ते लैणियाँ गवाहियां
किने-2 खादी रियाँ लोका री कमाइयाँ
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