Baba Bhalku : हिंदुस्तान-तिब्बत रोड़ के सर्वेक्षण से इंग्लैंड तक थे हुनर के चर्चे
ब्रिटिश उच्च अधिकारियों के दिए गए प्रमाण-पत्र देते हैं इस बात की गवाही
विनोद भावुक/ शिमला
कालका – शिमला रेल लाइन के सर्वेक्षण को लेकर बेशक Baba Bhalku (बाबा भलकू ) के हुनर से दुनिया परिचित है, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इस सर्वेक्षण से पहले सोलन जिला के कसौली क्षेत्र के धाजा गांव के Baba Bhalku ने हिंदुस्तान-तिब्बत रोड़ के सर्वेक्षण में अहम भूमिका निभाई थी। साल 1858 से 1878 तक ब्रिटिश उच्च अधिकारियों के Baba Bhalku को दिए गए प्रमाण-पत्र इस बात की गवाही देते हैं। भलकू इंजीनियर के हुनर के चर्चे हिंदुस्तान ही नहीं, बल्कि इंग्लैंड में भी होते थे।
वायसराय की पत्नी ने की भलकू से मुलाक़ात
एक बार वायसराय की पत्नी ने Baba Bhalku से मिलने की इच्छा प्रकट की। जब भलकू उनके सामने गए तो पहले तो वह हंसी और फिर बोली, भलकू तुम सुंदर क्यों नहीं हो? Baba Bhalku ने तुरंत उत्तर दिया, सुंदरता की आवश्यकता आपको है, हमें तो दिमाग की जरूरत है। 2 मार्च, 1862 को सुबाथू से डिप्टी कमिशनर, हिल स्टेट डब्ल्यू.एम. हेय की ओर से दिये गए प्रमाण पत्र में कहा गया है कि Baba Bhalku जैसा अथक परिश्रमी, एकनिष्ठ और ईमानदार व्यक्ति किसी भी श्रेणी में मिलना नामुमकिन है। वह इस महान सड़क के निर्माण में पूर्ण लगन से जुटा है।
हिंदुस्तान-तिब्बत सड़क निर्माण में शानदार काम
10 जुलाई, 1858 को शिमला से सुपरिंटेंडेंट, हिल रोड, कैप्टन डब्ल्यू बरगिज की तरफ से जारी प्रमाण पत्र में कहा गया कि, प्रमाणित किया जाता है कि Baba Bhalku को जुलाई से अक्तूबर 1857 को दिल्ली में फील्ड फोर्स में नियुक्त किया गया, जबकि उसके श्रेष्ठ गुणों का पूर्ण दोहन नहीं किया गया। Baba Bhalku सेना परिवहन ट्रेन के साथ वितरण एजेंट नियुक्त था। उसके बाद उसे शिमला के उत्तर में हिंदुस्तान-तिब्बत सड़क निर्माण में लगातार नियुक्त किया, जिसमें उसने अच्छा कार्य किया।
Baba Bhalku : दुर्गम रास्तों को पढ़ने व लांघने में दक्ष
25 जुलाई, 1868 को कोटगढ़ से अधिशासी अभियंता कैप्टन ए.एम. लंग की तरफ से जारी प्रमाण पत्र के मुताबिक सब-ओवरसियर Baba Bhalku लोक निर्माण विभाग में कार्यरत है। दस वर्षों से हिल रोड डिविजन से जुड़ा है। वह विलक्षण प्रतिभा का धनी, निडर, क्रियाशील, निपुण, किसी भी दुर्गम रास्तों को पढ़ने व लांघने में दक्ष और अधिक से अधिक कार्य लेने में निपुण है। कठिन पहाड़ी रास्तों में सर्वेक्षण के कार्य में उसका कोई सानी नहीं है। वह असाधारण उत्साही और धैर्यशील व्यक्ति है, जो रात-दिन सड़क निर्माण व सर्वेक्षण में जुटा रहता है।
ढलानों पर सर्वेक्षण में माहिर
29 सितंबर, 1870 को आरचिड करेगिन की तरफ से जारी प्रमाण पत्र में कहा गया कि सब-ओवरसियर Baba Bhalku हिंदुस्तान-तिब्बत रोड निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है। मैं उसे ईमानदार, फुर्तीला और अपने कार्य में लगन रखने वाला समझता हूं। उसमें बेतहाशा सहनशक्ति है। जब कार्य पर लगा हो तो वह कार्य के मध्य में कभी भी प्रसन्न नहीं होता। ढलानों पर सर्वेक्षण करने की कला का बखान करना ही मुश्किल है, जिसे वह बखूबी से करता है।
बहुत ईमानदार, चुस्त और सच्चा इनसान
6 नवंबर, 1870 को धर्मपुर से अधीक्षण अभियंता ले. कर्नल डेविड बदिगज ने भलकू को पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि मैं हिंदुस्तान में आप जैसे बहुत ईमानदार, चुस्त, सच्चे इनसान को जानता हूं। अगर आप मेरे को आगरा में मेजर रोस, आर.ए. के पते पर पत्र-व्यवहार कर बता सकते हो कि मैं आपको इंग्लैंड से क्या भेजूं, इस पर मुझे प्रसन्नता होगी। मुझे मालूम है कि आपका सांसारिक चीजों में मोह नहीं है, लेकिन कोई एक चीज तो होगी जो आप पसंद करते होंगे। मैं इससे अधिक नहीं लिखूंगा, लेकिन आपकी राजी-खुशी की कामना करता हूं।
मुलाक़ात नहीं हुई पर काम का कायल
जनवरी 9, 1877 को शिमला से उप अरण्यपाल वन, सतलुज मंडल ले. कर्नल सी. बचलोर के दिये प्रमाण पत्र के मुताबिक सब-ओवरसियर Baba Bhalku निर्माणाधीन हिंदुस्तान-तिब्बत रोड पर कोटगढ़ से आगे का इंचार्ज था। मैं हिल रोड मंडल का इंचार्ज था। मुझे भलकू के कार्य का व्यक्तिगत निरीक्षण करने का मौका नहीं मिला, लेकिन सहायक अभियंता डेविस ने अपनी निरीक्षण दौरे में भलकू के कार्य की प्रशंसा की है।
लॉर्ड डलहौजी ने देखा था इस रोड़ का सपना
हिंदुस्तान-तिब्बत रोड़ को हकीकत की जमीन पर उतारने का सपना साल 1850-51 में लॉर्ड डलहौजी ने देखा था। रोड़ के निर्माण को ‘ग्रेट हिंदुस्तान-तिब्बत रोड’ का नाम दिया गया और निर्माण कार्य कमांडर-इन-चीफ सर चार्लज नेपियर की अध्यक्षता में शुरू हुआ। उस समय इस रोड़ को ‘किंनगरी साहिब का सड़क’ कहा जाता था। ईस्ट इंडिया कंपनी के पास मौजूद तमाम मशीनरी को इस सड़क निर्माण में प्रयोग किया गया था।
चीन की सीमा तक जाता है रोड़
पुरानी हिंदुस्तान-तिब्बत रोड को अब राष्ट्रीय उच्च मार्ग नं. 22 के नाम से जाना जाता है। यह अब अंबाला से आरंभ होकर तिब्बत की सीमा पर स्थित कौरिक तक जाता है। कड़छम तक इस रोड़ की देखरेख का कार्य हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग के पास है। इससे आगे का हिस्सा सीमा सड़क संगठन के पास है। साल 1856 में यह रोड़ बनकर तैयार हो गया और साल 1860 में इस रोड़ पर गाड़ियां चलने लगीं। हिंदुस्तान-तिब्बत रोड़ अंबाला से आरंभ होकर तिब्बत की सीमा तक पहुंचता है।