‘बार्न्स कोर्ट’ : भारत- पाक में ‘युद्ध’ के आसार, शिमला की इस इमारत को शांति का इंतज़ार

‘बार्न्स कोर्ट’ : भारत- पाक में ‘युद्ध’ के आसार, शिमला की इस इमारत को शांति का इंतज़ार
विनोद भावुक/ शिमला
आज जब भारत- पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है, शिमला का शांत और ऐतिहासिक ‘बार्न्स कोर्ट’ एक बार फिर चर्चा में है। यह वही स्थान है, जहां अगस्त 1972 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने ऐतिहासिक शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
जाखू की ढलानों पर जंगल के बीच दक्षिण की ओर खुलते पहाड़ी नज़ारों से घिरा ‘बार्न्स कोर्ट’ न केवल स्थापत्य की दृष्टि से एक बेमिसाल विरासत है, बल्कि यह उस संकल्प का भी साक्षी है, जिसमें दो शत्रुतापूर्ण राष्ट्रों ने कूटनीति का रास्ता अपनाया था। इस ऐतिहासिक इमारत में आज भी वह मुख्य ड्राइंग रूम, वह मेज और वे कुर्सियां सुरक्षित हैं, जिन पर ‘शिमला समझौते’ पर दस्तखत हुए थे।
शांति की उम्मीद का गवाह
इतिहास में यह पहला अवसर था जब दोनों देशों ने युद्ध के बाद द्विपक्षीय वार्ता के ज़रिए ‘बार्न्स कोर्ट’ में एक राजनीतिक समाधान तलाशा था। समझौते में नियंत्रण रेखा की पुष्टि, द्विपक्षीय वार्ता का संकल्प और युद्धबंदियों की वापसी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सहमति बनी।
बार्न्स कोर्ट’ एक ऐसे पल बना था, जिसने उपमहाद्वीप में शांति की उम्मीदें जगाई थीं। हालांकि इस समझौते की सीमाओं पर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। ‘शिमला समझौते के रद्द कर देने के बाद ‘बार्न्स कोर्ट’ की याद फिर से ताज़ा हो गई है।
‘बार्न्स कोर्ट से राजभवन तक
कभी पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर का निवास रह चुका ‘बार्न्स कोर्ट ‘1830 के दशक में सर एडवर्ड बार्न्स के अधीन अस्तित्व में आया था। इसके बाद यह भवन कई ब्रिटिश कमांडरों का आवास बना। आज़ादी के बाद भारतीय प्रशासनिक इतिहास में भी इसकी अहम भूमिका बनी रही। वर्तमान में राजभवन के रूप में इस ऐतिहासिक इमारत की शानो- शौकत बरकरार है।
समय-समय पर इस संपत्ति में जोड़े गए बॉल रूम, ‘मूरिश’ शैली की कलाकृति और आकर्षक उद्यान आज इसे पुराने अंग्रेजी देसी घर का स्वरूप देते हैं। इसके वैभव से भी अधिक महत्वपूर्ण है इसकी वह ऐतिहासिक भूमिका है, जब यहां एक युद्ध के बाद अमन का संकल्प लिया गया।
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