लोकतंत्र से पहले पहाड़ पर था देवतंत्र, आज भी देव अदालत में ही होता है कई विवादों का निपटारा

लोकतंत्र से पहले पहाड़ पर था देवतंत्र, आज भी देव अदालत में ही होता है कई विवादों का निपटारा
विनोद भावुक/ धर्मशाला
हिमाचल प्रदेश में कोई ऐसा गांव नहीं है, जहां किसी न किसी देवता का मंदिर स्थापित न हो और देवता की पूजा न की जाती हो | हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के संस्कृत विभाग का शोध कहता है कि पहाड़ पर देवताओं की पूजा सदियों से हो रही है। पहाड़ को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है। यहां देव आस्था की जड़ें बहुत गहरी हैं। प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के प्रोफेसर रहे विद्या शारदा की देख- रेख में यशपाल शर्मा व ओम प्रकाश ने सोलन व ऊपरी शिमला के विभिन्न क्षेत्रों में पूजे जाने वाले देवताओं पर शोध किया है।
शोध कहता है कि यहां सदियों से देवताओं की पूजा होती आ रही है। अधिकतर देवता महाभारतकालीन हैं और पूजा की भी विधि भी उसी समय की है। शोध के मुताबिक कभी यहां देवतंत्र विकसित रहा है। आज भी यहां अधिकतर विवादों का निपटारा देवता की अदालत में ही होता है। देवता के आदेश सभी को मान्य होते हैं। अपने शोधपत्र में प्रोफेसर शारदा स्वीकार करते हैं कि प्रदेश में आदिकाल से ही देवतंत्र का प्रभाव रहा है।
आजादी के जश्न में शामिल हुए देवता
अपने ग्राम्य देवताओं के प्रति पहाड़ के लोगों में विशेष आकर्षण रहा है। केवल लोग ही देवता के आयोजन में शामिल नहीं होते, बल्कि लोगों के जश्न में देवता भी शामिल होते हैं। देश की आजादी के बाद जब दिल्ली में पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया तो मंडी के देवता भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए थे।
मंडी जिले की सिराज घाटी के पंजाई स्थित मशहूर देवता पुंडरिक ऋषि ने इस आयोजन में भाग लिया था। देवता के बजंतरी अपने पारंपरिक वाद्ययंत्रों कर लोक धुनें बजाते हुए और देवलू झूमते गाते भारत के पहले गणतंत्र दिवस में भाग लेने गाते दिल्ली पहुंचे थे। आयोजन से लौटे देवता अपने मूल स्थान पर पहुंचे तो लोगों ने उनका बड़ी धूमधाम से स्वागत किया था।
नेहरू के आग्रह पर राजा के साथ दिल्ली पहुंचे देवता
मंडी जनपद के पंजाई स्थित देव पुंडरिक ऋषि साल 1951 में गणतंत्र दिवस समारोह की शोभा बढ़ाने के लिए दिल्ली पहुंचे थे। बताया जाता है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मंडी के राजा जोगिंद्र सेन से आग्रह किया था कि पुंडरिक ऋषि को इस ऐतिहासिक समारोह में शामिल होने का आधिकारिक निमन्त्रण दिया जाए।
राजा जोगिंद्र सेन ने इस संदर्भ में देवता से अनुरोध किया और राजा के अनुरोध पर मंडी जनपद के पंजाई स्थित देव पुंडरिक ऋषि साल 1951 में गणतंत्र दिवस समारोह की शोभा बढाने के लिए दिल्ली पहुंचे थे। देवता के दिल्ली प्रवास की व्यवस्था मंडी के राजा ने करवाई थी।
मेलों का देवताओं से सीधा संबंध
कभी कुल्लू का ढालपुर मैदान देवताओं के स्वागत में बाहे परास्ता है, तो कभी मंडी का पड्डल मैदान सदियों पुराने अनूठे देव मिलन का गवाह बनता है। सावन माह में किन्नर कैलाश, मणिमहेश कैलाश और श्रीखंड महादेव की दुर्गम यात्राओं के कष्टों को सहकर शैव मत के लाखों अनुयायी हर साल हंसते-हंसते अपने इष्ट के दरबार मे हाजिरी भरते हैं।
नवरात्र में शक्तिपीठ सजते हैं। प्रदेश के अधिकतर बड़े उत्सवों का सीधा संबंध यहां के देवताओं से जुड़ा है। विभिन्न मेलों में होने वाला देवताओं का संगम हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों का एहसास करवाता है।
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