डिप्टी कमिश्नर कांगड़ा – 1 लेफ्टिनेंट एडवर्ड लेक : जरूरी थी कांगड़ा किले की निगरानी, इसलिए हुई सैन्य अफसर पर मेहरबानी

डिप्टी कमिश्नर कांगड़ा – 1 लेफ्टिनेंट एडवर्ड लेक : जरूरी थी कांगड़ा किले की निगरानी, इसलिए हुई सैन्य अफसर पर मेहरबानी
डिप्टी कमिश्नर कांगड़ा – 1
लेफ्टिनेंट एडवर्ड लेक : जरूरी थी कांगड़ा किले की निगरानी, इसलिए हुई सैन्य अफसर पर मेहरबानी
हिमाचल बिजनेस नॉलेज बैंक/ धर्मशाला
ब्रिटिश भारत के प्रशासनिक अभिलेखों के अनुसार लेफ्टिनेंट एडवर्ड लेक को जनवरी 1847 में कांगड़ा जिले का डिप्टी कमिश्नर नियुक्त किया गया था। ‘इंपीरियल गजेट ऑफ इंडिया- कांगड़ा जिला’ के मुताबिक यह वह दौर था जब कांगड़ा 1845–46 के प्रथम सिख युद्ध बाद सिख साम्राज्य से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आया था। खासकर 1846 में लाहौर संधि के पश्चात कांगड़ा और हिल स्टेट्स का अधिकांश क्षेत्र ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया था।
मिलिट्री एंड सिविल लिस्ट नॉर्थ वेस्ट प्रोविन्स (1847- 1850) में यद्यपि एडवर्ड लेक के बारे में विवरण सीमित है, लेकिन उनकी डिप्टी कमिश्नर के रूप में नियुक्ति शुरुआती दौर में कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक उद्देश्यों से जुड़ी मानी जाती है। कांगड़ा किला और उसके आसपास के क्षेत्र की सैन्य निगरानी उनकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी थी।
संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्र, ब्रिटिश शासन की नींव
ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्रशासनिक ढांचे को सुदृढ़ करने के लिए अनुभवी सैन्य अधिकारियों को सिविल प्रशासन में नियुक्त करना शुरू किया। पंजाब डिस्ट्रिकट गजेटियर( प्री 1900 एडिशन) के मुताबिक लेफ्टिनेंट एडवर्ड लेक एक सैन्य अधिकारी होने के साथ-साथ, शुरुआती ब्रिटिश सिविल शासन के संस्थापक प्रशासकों में से एक थे, जिन्होंने कांगड़ा जैसे संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्र में शासन की नींव रखी।
प्रशासनिक पुनर्गठन, स्थानीय रियासतों और जागीरदारों के साथ ब्रिटिश संबंधों को संतुलित करना, सिख शासन के बाद राजस्व व्यवस्था को पुनर्संगठित करना और पहाड़ी क्षेत्रों में ब्रिटिश कानून और न्याय प्रणाली के आरंभिक कार्यान्वयन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
कांगड़ा किला और लेफ्टिनेंट लेक
1846 के बाद कांगड़ा किले पर ईस्ट इंडिया कंपनी का नियंत्रण हो गया। ऐसा माना जाता है कि लेक जैसे अधिकारी किले की सामरिक स्थिति को समझने और स्थानीय विद्रोहों को रोकने में भी प्रमुख भूमिका निभा रहे थे। लेफ्टिनेंट एडवर्ड लेक उन पहले ब्रिटिश अधिकारियों में से थे, जिन्होंने कांगड़ा को ब्रिटिश भारत की प्रशासनिक प्रणाली में व्यवस्थित करने की नींव रखी।
1847 में उनकी तैनाती एक ऐसे संक्रमण काल में हुई थी, जब कांगड़ा सिख साम्राज्य से ब्रिटिश शासन में प्रवेश कर रहा था और औपनिवेशिक प्रशासन को स्थापित करने के लिए विश्वसनीय सैन्य अधिकारियों की आवश्यकता थी।
हिमाचल और देश-दुनिया की अपडेट के लिए join करें हिमाचल बिज़नेस
https://himachalbusiness.com/a-document-of-the-feelings-arising-during-the-covid-period-kuch-baatein-kuch-khayal-the-creative-side-of-anshul-dhiman-joint-director-of-the-industries-department-now-a-short-story-collection/

Jyoti maurya

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *