डिप्टी कमिश्नर कांगड़ा – 4 सर थॉमस डगलस फोर्सिथ: कांगड़ा को ट्रेड सेंटर बनाने की बुनियाद, पालमपुर में इंटरनेशनल फेयर के लिए रहेंगे याद

डिप्टी कमिश्नर कांगड़ा – 4
सर थॉमस डगलस फोर्सिथ: कांगड़ा को ट्रेड सेंटर बनाने की बुनियाद, पालमपुर में इंटरनेशनल फेयर के लिए रहेंगे याद
हिमाचल बिजनेस/ धर्मशाला
19वीं सदी में भारत में ब्रिटिश प्रशासनिक तंत्र के एक महत्वपूर्ण अधिकारी सर थॉमस डगलस फोर्सिथ ने एक तरफ जहां प्रशासनिक मोर्चे पर अपनी अहम भूमिका निभाई, बल्कि कांगड़ा जैसे पर्वतीय क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक गतिविधियों से जोड़ने के लिए भी आधार तैयार किया। फोर्सिथ 1850 के दशक में कांगड़ा में असिस्टेंट कमिश्नर के रूप में तैनात हुए।
2014 में प्रकाशित राणा बहल की पुस्तक ‘वन हंडरेड इयर्स ऑफ सोलीट्यूड’ यहां रहते हुए फोर्सिथ ने स्थानीय प्रशासन को संगठित किया और व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के प्रयास भी किए।फोर्सिथ का कांगड़ा से जुड़ा कार्यकाल हिमाचल प्रदेश के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ।
इंडियन टी एसोसिएशन के पहले अध्यक्ष
ऑटोबायोग्राफी एंड रेमिनीसेंसेज ऑफ सर डगलस फोर्सिथ 1887 के मुताबित उन्होंने कांगड़ा घाटी के पालमपुर में एक वार्षिक अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने काशगर और मध्य एशिया से व्यापारियों को आमंत्रित किया। यह मेला उस समय ब्रिटिश भारत की नीतियों के तहत हिमाचल के ग्रामीण इलाकों को वैश्विक व्यापारिक नेटवर्क से जोड़ने का पहला संगठित प्रयास था ।
प्रोसीडिंग्स ऑफ द रोयल गियोग्राफ़िकल सोसायटी 1887 1881 में फोर्सिथ लंदन स्थित इंडियन टी एसोसिएशन के पहले अध्यक्ष बने, जिससे उनके हिमाचल प्रदेश और असम के चाय उद्योग से जुड़े योगदान को पहचाना गया।
चीन और रूस के साथ व्यापारिक संबंध
थॉमस डगलस फोर्सिथ ने 1867 में लद्दाख की तत्कालीन राजधानी लेह का दौरा किया और कश्मीर प्रशासन से व्यापारिक प्रतिबंध हटाने की मांग की। इस प्रयास का उद्देश्य काशगर (वर्तमान चीन) और पंजाब के बीच व्यापार को सुगम बनाना था।
फोर्सिथ की कूटनीतिक कुशलता का लाभ भारत-रूस संबंधों में भी देखने को मिला। उन्होंने रूस जाकर वहां के अधिकारियों से अफगानिस्तान और काशगर के बीच के क्षेत्रों की सीमाओं पर सहमति प्राप्त की, जिससे भारत की भूराजनैतिक स्थिति मजबूत हुई।
नाइट कमांडर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया
थॉमस डगलस फोर्सिथ का जन्म 7 अक्तूबर 1827 को इंग्लैंड के बिर्कनहेड में हुआ था। उन्होंने हैलीबरी कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद 1848 में भारत की ओर रुख किया। प्रशासनिक सेवा में आने के बाद उन्होंने सहारनपुर, गुरदासपुर, रावलपिंडी और अंबाला में काम किया, लेकिन उनका विशेष योगदान हिमाचल के कांगड़ा ज़िले में नज़र आता है।
डिक्शनरी ऑफ नेशनल बायोग्राफी 1885-1900 के अनुसार 1872 में कूका आंदोलन के दौरान उनकी भूमिका जरूर विवादों में रही। बाद में उन्हें काशगर में व्यापारिक समझौते के लिए विशेष दूत के रूप में भेजा गया और उन्हें नाइट कमांडर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया की उपाधि से सम्मानित किया गया।
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