डिप्टी कमिश्नर कांगड़ा – 6 एडवर्ड जॉन लेक : कांगड़ा के डिप्टी कमीशनर, सम्मान में लाहौर में स्कॉलरशिप

डिप्टी कमिश्नर कांगड़ा – 6
एडवर्ड जॉन लेक : कांगड़ा के डिप्टी कमीशनर, सम्मान में लाहौर में स्कॉलरशिप
हिमाचल बिजनेस/ धर्मशाला
एडवर्ड जॉन लेक ब्रिटिश कांगड़ा के 6वें डिप्टी कमिश्नर थे। वे नवंबर 1855 से मार्च 1856 तक सिर्फ 5 माह के लिए इस पद पर रहे। वे उस समय कांगड़ा जिले के डिप्टी कमिश्नर बने, जब यह क्षेत्र “ट्रांस-सतलुज’ प्रांत का हिस्सा था। इससे पहले उन्होंने 1846 के ब्रिटिश पंजाब अभियान में ब्रिटिश सैन्य अधिकारी के रूप में जबरदस्त भूमिका निभाई थी, जिसके लिए सरकार ने उन्हें 1854 में ‘ब्रेवेट-मेजर’ की पदवी दी थी।
अप्रैल-मई 1857 में जब भारत में अंग्रेजों के खिलाफ पहला स्वतन्त्रता संग्राम हुआ तो लेक को कांगड़ा किले की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया था। उन्होंने सैन्य अभियान के बजाए शांत-चित होकर किले को विद्रोहियों से सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाई थी। वे कांगड़ा के ऐसे पहले डिप्टी कमीशनर रहे, जिनके सम्मान में ब्रिटिश सरकार ने लाहौर में स्कॉलरशिप शुरू की थी।
बचपन में हो गए थे अनाथ, पास किया कमीशन
लेक का जन्म 19 जून 1823 को मद्रास में हुआ था। वे एडवर्ड लेक के पुत्र थे, जो मद्रास इंजीनियर्स में मेजर थे। गिल्डफोर्ड जहाज के समुद्र में डूबने से वे छह साल की उम्र में अनाथ हो गए थे। उनका पालन-पोषण उनके दादा एडमिरल सर विलोबी लेक ने किया। विंबलडन के एक निजी स्कूल में पढ़ने के बाद उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के सैन्य कॉलेज से पढ़ाई की।
11 जून 1840 को उन्हें बंगाल इंजीनियर्स में सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन मिला। वे दिल्ली में बंगाल सैपर्स और माइनर्स में तैनात हो गए। 19 फरवरी 1844 को उन्हें लेफ्टिनेंट के रूप में पदोन्नत किया गया। 1845 की सर्दियों में उन्होंने मेजर ब्रॉडफुट के अधीन अम्बाला जिले में एक सेटलमेंट अधिकारी के रूप में कार्य किया।
पंजाब के वित्तीय कमीशनर
1845–46 में लेक ने पंजाब अभियान, आलिवाल और गुजरात की लड़ाइयों में हिस्सा लिया और पदक और क्लैप प्राप्त किए। 1848 में वह बहावलपुर नवाब के राजनीतिक अधिकारी बने और मुलतान की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई। 1854 में उन्हें कप्तान और ब्रेवेट मेजर बनाया गया।
लेक 1865 में पंजाब के वित्तीय कमिश्नर बने। उन्हें 1866 में कंपेनसन ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया से सम्मानित किया गया। वे 1870 में रिटायर हुए और उनके सम्मान में ब्रिटिश सरकार ने लाहौर हाई स्कूल में ‘लेक स्कॉलरशिप की स्थापना की।
कांगड़ा ने दिखाई अध्यात्म की राह
कांगड़ा पहुँचने के बाद 1855 के आस- पास लेक का आध्यात्मिकता की ओर झुकाव होना शुरू हो गया था। 1868 में इस्ट लंदन रिलीफ़ फंड के मानद सचिव बने। वे 1869 76 तक चर्च मिशीनरी सोसायटी के सेक्रेटरी रहे। लेक एक दुबले-पतले और नाजुक कद-काठी के व्यक्ति थे। उनका स्वभाव बहुत खुशमिजाज और प्यारा था।
अप्रैल 1871 से जून 1874 के बीच लेक चर्च मिशीनरी सोसायटी रिकॉर्ड के संपादक रहे। उन्होंने 1873 में चर्च मिशीनरी एटलस के 5वे संस्करण को संपादित किया। उन्होंने जीवन के आखिरी दिनों तक धर्म के कार्यों में अपनी सक्रियता दिखाई। फेफड़ों की बीमारी के कारण इंग्लैंड के क्लिफ़्टन में 7 जून 1877 को उनका निधन हो गया।
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