मरकर भी देश के काम आने का अरमान, 170 बार कर चुके रक्तदान, एम्स बिलासपुर में करेंगे देहदान

मरकर भी देश के काम आने का अरमान, 170 बार कर चुके रक्तदान, एम्स बिलासपुर में करेंगे देहदान
अशोक दर्द/ डलहौजी
सुशील पुंडीर उन दिनों बिलासपुर कॉलेज के स्टूडेंट्स थे। निकटवर्ती गांव में बादल फटा, जिसमें जान- माल का भारी नुकसान हुआ और कई लोग घायल हो गए। राष्ट्रीय सेवा योजना में शामिल कॉलेज स्टूडेंट्स पीड़ितों की मदद के लिए प्रभावित गांव में पहुंचे। कई घायलों को तत्काल खून की जरूरत थी। जरूरत की इस घड़ी में उन्होंने पहली बार ब्लड डोनेट किया था।
इसके बाद तो ब्लड डोनेशन उनके लिए मिशन बन गया। शिक्षा विभाग से संयुक्त निदेशक सेवानिवृत सुशील पुंडीर अब तक 170 बार रक्तदान कर चुके हैं। इसी साल जुलाई में 65 वर्ष के होने वाले हैं। इससे पहले वे आखिरी बार ब्लड डोनेट करेंगे। सुशील पुंडीर एम्स बिलासपुर में देहदान करेंगे। उन्होंने अपनी मृत देह बिलासपुर एम्स को डोनेट करने संबंधी औपचारिकता पूरी कर दी है।
मिश्र में किया देश का प्रतिनिधित्व
सुशील पुंडीर का जन्म पुराने बिलासपुर शहर के खड्डयालू मुहल्ला में कृष्णलाल और चम्पादेवी के घर 24 जुलाई 1960 को हुआ। राजकीय उच्च पाठशाला बिलासपुर(बाल) से 1976 में मैट्रिक करने के बाद उन्होंने राजकीय महाविद्यालय बिलासपुर से बीए की है। राजकीय शिक्षा महाविद्यालय चंडीगढ़ से बी.एड. और फिर प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला से राजनीति शास्त्र में एमए. एमएड. एमफिल करने के बाद पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से लोक प्रशासन में एमए की है।
सुशील पुंडीर को कॉलेज के जमाने से खेलकूद, सांस्कृतिक गतिविधियों और लेखन का शौक रहा है। एनसीसी. नेवल विंग में सी सर्टिफिकेट, एनएसएस और फ़ाईन आर्ट्स में कॉलेज कलर मिला। उन्होंने नेहरू युवा केंद्र के साथ राष्ट्रीय सेवा कर्मी के रूप में भी कार्य किया है। 1986 में मिश्र में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय युवा शिविर में देश का प्रतिनिधित्व किया है।
शिक्षक से संयुक्त निदेशक तक का सफर
1982 में बीड. करने के बाद सुशील पुंडीर ने दो वर्ष तक नेहरू युवा केंद्र के साथ युवा कर्मी के तौर पर काम किया। इससे साथ उन्होंने कोरेसपोंडेंस राजनीति शास्त्र में एम.ए. की। 1985 में उनकी टी.जी.टी.तदर्थ के तौर पर नियुक्ति हुई। सितंबर 86 में टीजीटी के तौर पर नियुक्त हुए और तीन महीने बाद दिसंबर 1986 में प्रदेश लोक सेवा आयोग के जरिये राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता पद पर भंगरोटू में नियुक्ति हुई।
1997 में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय शिमला के सीनियर सेकेन्डरी स्कूल धार गौरा में दो साल प्रिंसिपल रहने के बाद साल 1999 में ज़िला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान बिलासपुर स्थित जुखाला में स्थानांतरित हुए और साल 2006 तक प्रिंसिपल रहे। साल 2010 में उपनिदेशक प्रारम्भिक शिक्षा ज़िला चम्बा, फिर ऊना और मंडी में कार्य किया। साल 2016 में संयुक्त निदेशक उच्च शिक्षा पदोन्नत हुए और 31 जुलाई 2018 को इसी पद से सेवानिवृत हुए।
स्कूल के दिनों में छ्पी पहली कविता
सुशील पुंडीर जब सातवीं क्लास के स्टूडेंट थे तो पहली बार स्कूल में पत्रिका में उनकी कविता ‘मेरा स्कूल’ छपी थी। बिलासपुर कॉलेज की पत्रिका ‘व्यास’ में भी कुछ रचनाएं छपीं। वे कॉलेज पत्रिका के पहाड़ी सेक्शन सेक्शन में छात्र सम्पादक रहे।संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान प्रो. बाँके बिहारी शर्मा ने उन्हें लेखन की बारीकीयां सिखाईं।
सुशील पुंडीर हिंदी और पहाड़ी दोनों भाषाओं में रचना करते हैं। वे कविता, लघुकथा, कहानी, व्यंग्य, एकांकी और नाटक लिखने में माहिर हैं। उनकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों और स्मारिकाओं में प्रकाशित होती आ रही हैं।
लेखकीय कर्म में कई सहयोगी
सुशील पुंडीर के लेखकीय कर्म में सहयोगी रहे साहित्यकारों में डॉ. गंगाराम राजी, डॉ. अशोक गौतम, गुरमीत सिंह बेदी, स्व. श्यामलाल गुप्ता,स्व, रामलाल पुंडीर, पंडित ओंकारनाथ शर्मा, प्रो. श्रीराम कौशल, रामलाल पाठक, सुखराम आज़ाद, रविंन्द्रनाथ भट्टा, प्रदीप गुप्ता, सुरेंद्र मिन्हास, कर्नल जसवंत सिंह चंदेल, राजीव शर्मन, डॉ. अनीता शर्मा, अरुण डोगरा, प्रदीप गुप्ता, डॉ. हेमराज कौशिक जैसे कई नाम शामिल है।
दादा थे मशहूर संगीतकार
सुशील पुंडीर के दादा का नाम चंदूलाल व दादी का नाम देवकी था। उनके दादा बिलासपुर की मशहूर आनंद टेलर दुकान के मालिक थे और मशहूर संगीतकार व समाजसेवी थे। उनके पिता हिमाचल पथ परिवहन निगम से चीफ इंस्पेकटर के पद से सेवानिवृत थे। उनकी माता गृहणी हैँ।
सुशील पुंडीर के छोटे भाई डॉ. सतीश पुंडीर हेल्थ डिपार्टमेन्ट से टी. बी. विशेषज्ञ सेवानिवृत हुए हैं। उनके सबसे छोटे कर्नल महेश पुंडीर भारतीय थलसेना से सेवानिवृत होकर वर्तमान में आईजीएमएस मेडिकल अस्पताल शिमला में आपातकालीन चिकित्सक के पद पर कार्यरत हैं।
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