‘धर्म शिला’ : दुर्वासा ऋषि ने धर्मशाला में पत्थर की शिला पर बैठ कर की थी कठोर तपस्या

धर्म शिला’ : दुर्वासा ऋषि ने धर्मशाला में पत्थर की शिला पर बैठ कर की थी कठोर तपस्या
विनोद भावुक/ धर्मशाला
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला मुख्यालय धर्मशाला में कभी दुर्वासा ऋषि ने कठोर तपस्या की थी। योगी महाजन अपनी पुस्तक ‘ द टेंथ इनकारनेशन’ के खंड 1, अध्याय 14, पृष्ठ 89 में लिखते हैं कि प्राचीनकाल में यह स्थान ‘धर्म शिला’ के नाम से प्रसिद्ध था। दुर्वासा ऋषि अपने कठोर तप और क्रोध के लिए विख्यात थे। वे महाराष्ट्र से यात्रा करते हुए इस स्थान पर आए थे। यहां वे अपने शरीर के दाहिने हिस्से को ठंडा करने के लिए रुके और एक पत्थर की शिला पर कठोर तपस्या की थी।
दुर्वासा ऋषि की तपस्या के प्रभाव और उपस्थिति के कारण इस स्थल को ‘धर्म शिला’ कहा जाने लगा, जिसका अर्थ है ‘धार्मिकता की चट्टान’ या ‘पुण्य का स्तंभ’। यह नाम केवल प्रतीकात्मक ही नहीं था, बल्कि उस आध्यात्मिक ऊर्जा और तप की शक्ति को भी दर्शाता था जो इस देवभूमि में समाहित थी।
धर्म शीला से बना धर्मशाला!
कालांतर में जब अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया तो उन्होंने इसे अपनी उच्चारण शैली के अनुसार धर्म शिला का नाम ‘धर्मशाला’ में बदल दिया। यह नाम अब एक आधुनिक नगर का परिचायक बन गया है, परंतु इसकी जड़ें आज भी उस पत्थर की शिला में हैं, जिस पर कभी दुर्वासा ऋषि ने तप किया था।
धौलाधार की गोद में शांत वातावरण में बसा धर्मशाला बेशक आज तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के चलते विश्वविख्यात हो, लेकिन पौराणिक परंपराओं के अनुसार यह स्थान ऋषि दुर्वासा के कारण भी उतना ही पावन और ऐतिहासिक है।
साधना और धार्मिकता का प्रतीक
ऋषि दुर्वासा की उपस्थिति मात्र से किसी भी भूमि का महत्व कई गुना बढ़ जाता था। उनके जीवन से जुड़े कई प्रसंगों में वे अलग-अलग स्थानों पर तपस्या करते हुए दिखाई देते हैं। पुराणों में उनका संबंध अनेक कथाओं से है।
जरूरी है हम इस शहर की आध्यात्मिक विरासत को पुनः पहचाने और सम्मान दें। धर्मशाला केवल एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि यह उस तप, साधना और धार्मिकता का प्रतीक है जिसे हमारी संस्कृति ने युगों से संजोया है।
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